धारावी झोपड़पट्‌टी से बकिंघम पैलेस तक / जयप्रकाश चौकसे

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धारावी झोपड़पट्‌टी से बकिंघम पैलेस तक
प्रकाशन तिथि : 03 अप्रैल 2020


खबर है कि इंग्लैंड के प्रिंस चार्ल्स भी कोरोना से पीड़ित हैं और इलाज से उन्हें लाभ हो रहा है। इंग्लैंड के मेडिकल कॉलेज में अंतिम वर्ष के छात्रों को पास घोषित करके अस्पतालों में तैनात किया गया है। दशकों पूर्व टी.एस.इलियट ने विलक्षण कविताएं लिखी थीं। उन्हें साहित का नोबेल पुरस्कार दिए जाने के समय उनके काव्य ‘वेस्टलैंड’ का उल्लेख किया गया। ज्ञातव्य है कि विष्णु खरे ने ‘वेस्टलैंड’ एवं अन्य कविताओं का अनुवाद हिंदी में किया था और उस समय विष्णु खरे की आयु मात्र 20 वर्ष थी।

टी.एस.इलियट पर पूर्व की संस्कृति का गहरा प्रभाव था। वे एकमात्र अंग्रेज कवि हैं, जिन्होंने अपनी रचनाओं में हमेशा ‘गंगा’ और ‘हिमवत’ लिखा, जबकि अन्य साहित्यकार ‘गेनेजीस’ और ‘हिमालय’ लिखते रहे। जब बामनों ने यह फतवा जारी किया कि देव भाषा संस्कृत का अध्ययन अन्य वर्गों के लोग नहीं कर सकते, तब से ही विश्व की एक महान भाषा का विलोप होने लगा। संस्कृत इतनी समृद्ध भाषा है कि उसमें प्रकृति का विवरण देने के लिए आठ हजार से अधिक शब्द हैं।

बहरहाल, टी.एस.इलियट ने एक अलग संदर्भ में लिखा कि अप्रैल क्रूरतम मास है जब बकाइन के पत्ते खून से लाल होने लगते हैं। दरअसल, अप्रैल में बकाइन के पत्ते लाल रंग के होे जाते हैं। कोई महीना क्रूर या दयालु नहीं होता। महीनों को महत्व मनुष्य ही देता है।

इंग्लैंड का प्रिंस हेनरी और बैकेट गहरे मित्र थे। सिंहासन पर विराजमान होते ही हेनरी ने अपने बचपन से मित्र बैकेट को चर्च का उच्चतम अधिकारी नियुक्त किया। उस दौर में प्रशासन और सेना पर राजा का अधिकार था और न्यायालय चर्च के अधिकार में थे। हेनरी अपने मित्र को चर्च का अधिकारी नियुक्त करके निरंकुश शासक बनना चाहता है। तानाशाह बनने की प्रक्रिया एक आंकी-बांकी रेखा की तरह होती है। बैकेट ने अपने मित्र को आगाह किया कि चर्च के शिखर पर बैठते ही वह निष्पक्ष हो जाएगा और वर्षों की मित्रता समाप्त हो सकती है। इस चेतावनी के बाद भी हेनरी ने बैकेट को नियुक्त किया। उनमें टकराहट भी हुई और हेनरी ने बैकेट का कत्ल करा दिया।

उपरोक्त घटना से प्रेरित होकर टी.एस.इलियट ने ‘मर्डर इन कैथ्रेडल’ नामक काव्य की रचना की और उससे प्रेरित फिल्म भी बनी, परंतु इसी विषय पर बनी अन्य फिल्म ‘बैकेट’ में रिचर्ड बर्टन और पीटर ओ टूल ने अभिनय किया। रिचर्ड बर्टन ने राजा की भूमिका और पीटर ओटूल ने बैकेट की भूूमिका अभिनीत की थी। इस फिल्म में अपनी भूमिका के कारण पीटर ओटूल छा गए। टी.एस. इलियट की ‘मर्डर इन कैथ्रेडल’ में टेम्पटर दृश्य अभूतपूर्व बन पड़ा। घटनाक्रम है कि राजा ने चार व्यक्तियों को बारी-बारी से बैकेट के पास भेजा। उसे भांति-भांति के प्रलोभन दिए गए। वह टस से मस नहीं हुआ। चौथे ने बैकेट से कहा कि वह जानकर शहीद हो जाना चाहता है और शहादत के माध्यम से अमर हो जाना चाहता है। वह जानता है कि शहादत के बाद उसका निर्वाण दिवस एक महान उत्सव बन जाएगा। उसकी महानता पर साहित्य रचा जाएगा। सरकारी छुट्‌टी घोषित होगी। इस तरह टी.एस.इलियट शहादत के खोखलेपन को उजागर करते हैं। यह बात सभी शहीदों पर लागू नहीं होती। मसलन शहीद भगतसिंह और साथियों पर यह लागू नहीं होती।

ज्ञातव्य है कि ऋषिकेश मुखर्जी ने फिल्म ‘बैकेट’ से प्रेरित अमिताभ बच्चन और राजेश खन्ना अभिनीत ‘नमकहराम’ बनाई थी। बाबू मोशाय की ‘आनंद’ में दोनों कलाकार अभिनय कर चुके थे। आनंद तो पूरी तरह राजेश खन्ना की फिल्म मानी गई, परंतु ‘नमक हराम’ में अपनी भूमिका में निहित सीमाओं के बावजूद अमिताभ ने बहुत प्रभावित किया।

कोरोना ने एक अजीबोगरीब किस्म के समाजवाद को रेखांकित किया है, उसने मुंबई के स्लम धारावी से लंदन के बकिंघम पैलेस तक किसी को नहीं छोड़ा। टी.एस.इलियट की एक कविता में इस आशय की बात प्रस्तुत की गई है कि मनुष्य, देवता व राक्षस हिमवत पर दिशा-निर्देश के लिए जाते हैं। बादल घिर आते हैं। दा दा दा की गर्जना होती है। एक ही ध्वनि तीन बार होती है और सब अपनी-अपनी रुचियों के अनुरूप अर्थ निकालते हैं। दानव दमन के मार्ग पर, देवता धर्म के मार्ग पर, मनुष्य दया के मार्ग पर चल पड़ते हैं। कोरोना कालखंड में मनुष्य केवल दया करे- स्वयं पर और अपने हमसफर पर। एक शेर याद आता है- ‘दरिया में तलातुम (तूफान) हो तो बच सकती है कश्ती?’ ‘आवारा’ में शैलेंद्र का गीत है- ‘सावधान सावधान तेरी कश्ती में है तूफान..’।