धार्मिक आख्यान प्रेरित राजनीतिक फैसले / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :29 दिसंबर 2017
अनेक देशों में फिल्म निर्माण के प्रारंभिक वर्षों में धार्मिक आख्यानों से प्रेरित फिल्में बनीं और कालांतर में फिल्म माध्यम ने अपनी मायथोलॉजी भी गढ़ी जैसे 'जय संतोषी मां'। मुंबई के फुटपाथ पर पुरानी किताबें सस्ते में मिल जाती हैं। एक फिल्मकार ने आधी-अधूरी फटी हुई किताब खरीदी। उसने इसी आधार पर कम बजट की 'जय संतोषी मां' बनाई। गौरतलब है कि हॉलीवुड के तकनीशियनों के सहयोग से रची, भव्य बजट की सितारा जड़ित 'शोले' और नौसीखियों द्वारा रची फिल्म 'जय संतोषी मां' लगभग साथ-साथ प्रदर्शित हुई परंतु लागत के अनुपात में मुनाफे के आर्थिक दृष्टिकोण से 'जय संतोषी मां' अधिक सफल मानी जाना चाहिए। इस घटनाक्रम में आप भारत को भी देख सकते हैं, जहां आधुनिक टेक्नोलॉजी के साथ ही पुरातन परम्पराएं भी जारी हैं।
इस अजब-गजब देश में एक रेल पुल से गुजर रही है और पुल के नीचे बैलगाड़ी चल रही है तथा आकाश में जेट उड़ रहा है गोयाकि अनेक शताब्दियां एक ही क्षण में मौजूद रहती हैं। इसीलिए भारत को निरंतरता का देश कहते हैं जहां कुछ भी सदैव के लिए समाप्त नहीं होता। अपने नए स्वरूप में बार-बार लौट आता है। यह रबर की गेंद है जिसे जितनी शक्ति से फेंकों, उतनी ही तीव्रता से यह आपके पास लौटकर आती है।
मौजूदा हुक्मरान इसी मायथोलॉजी का जाप करते हुए सफल हुए और अब वे अपने मिथ गढ़ रहे हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि मिथ-मेकर के शासन काल में तर्कहीनता का उत्सव मनाने वाली 'बाहुबली' सबसे अधिक धन कमा चुकी है। अगर कोई व्यक्ति नींद से जागना ही नहीं चाहे तो आप उसे कैसे जगा सकते हैं? हमारे एक देवता समुद्र के बीच नागशय्या पर बिराजे हैं तो दूसरे कैलाश की चोटी पर धूनी रमाए बैठे हैं। अवाम कभी नीचे, कभी ऊपर देखता है, वह कैसे जाने कि उसे दाएं चलना है या बाएं चलना है। साहिर साहब फरमा गए हैं, 'आसमां पर है खुदा और जमीं पर हम, आजकल वह इस तरफ देखता है कम'। आगे साहिर साहब कहते हैं 'जेबें हैं अपनी खाली, क्यों देता वरना गाली, वो संतरी हमारा वो पासबां (नौकर) हमारा'।
एक युद्ध फिल्में बनाने के लिए प्रसिद्ध फिल्मकार प्राय: कहता था कि जो भी उसके विरुद्ध खड़ा होगा, उसे ईश्वर दंडित करेंगे गोयाकि ईश्वर के पास बस एक यही काम है। संकीर्णता वाला व्यक्ति अपने बौनेपन से अपने ईश्वर का कद भी कम कर देता है। अगर आप उदारवादी हैं तो आपका ईश्वर आकल्पन भी विराट होगा अन्यथा आप अपनी संकीर्णता को अपने ईश्वर आकल्पन पर थोंप सकते हैं। एक व्यक्ति व समुदाय का ईश्वर आकल्पन, दूसरे व्यक्ति के आकल्पन से भिड़ रहा है। इसे समझिए रामानंद सागर के आख्यान प्रेरित सीरियल के युद्ध दृश्य से जिसमें एक पक्ष का अग्नि बरसाता तीर दूसरे पक्ष के पानी फेंकते बाण से टकराकर टूट जाता है। धार्मिक आख्यानों को धर्म समझने की भूल की जा रही है और यह योजनाबद्ध ढंग से प्रायोजित भी है।
दूसरे विश्वयुद्ध में हिटलर ने यहूदियों को मारा। उनके समय बहुत अन्याय हुआ। स्टीवन स्पिलबर्ग की फिल्म 'शिंडलर्स लिस्ट' इसी अन्याय को प्रस्तुत करती है। यह भी गौरतलब है कि स्टीवन स्पिलबर्ग ने विज्ञान फंतासी फिल्में गढ़ी हैं और मानवीय करुणा के दस्तावेज नुमा 'शिंडलर्स लिस्ट' भी बनाई है। विज्ञान और धर्म, फंतासी और यथार्थ सब गलबहियां करते घुलमिल जाते हैं और यही धुंध हुक्मरानों को पसंद भी है। दूसरे विश्वयुद्ध के पश्चात अपने इतिहास में पहली बार यहूदियों ने एक देश की मांग की तथा अमेरिका की दादागिरी ने उन्हें 'इजरायल' का तोहफा दिया। सैकड़ों वर्षों से बसे फिलिस्तीनी लोगों की जमीन पर इजरायल की स्थापना हुई। नेहरू ने विरोध दर्ज किया कि एक धार्मिक आख्यान के आधार पर एक राजनीतिक फैसला लेना गलत है।
आतंकवाद का मौजूदा स्वरूप इसी से जन्मा है। फिलिस्तीनी लोगों ने अपनी जमीन की लड़ाई गुरिल्ला ढंग से लड़ने की शुरुआत की। हाल ही में अमेरिका ने येरुशलम को इजरायल की राजधानी बना दिया है। एक बार फिर एक आख्यान से प्रेरित राजनीतिक फैसला लिया गया है। आतंकवाद के सिलसिले को अमेरिका जारी रखना चाहता है।
महाभारत के अनेक संस्करण हैं, अनेक व्याख्याएं हैं। यदि कोई व्यक्ति महाभारत के भूगोल से स्थापित करे कि वॉशिंगटन ही वह जगह है जहां से भीम हिडम्बा को वर के लाए थे, तो क्या मेरिका भारत के वॉशिंगटन पर कब्जे की मांग को स्वीकर कर लेगा?