धुआँ घाट / सुरेन्द्र प्रसाद यादव
चौमुखी चौराहा लोगे आरोॅ गाड़ी घोड़ा रिक्शा, ओटो रिक्शा सें हरदम्में चहल-पहल होतेॅ रहि छेलै। चौराहेॅ रोॅ पूरब सड़क रोॅ दक्षिण भागोॅ में एक ढावा छेलै। हौ ढाबा में एक पानोॅ रोॅ गुमटी छेलै आरो वही ढाबा में बगलोॅ में चाय रोॅ दुकान छेलै। आगू में बेंचों पर बैठे छेलै, आरोॅ चाय रोॅ चुस्की लै छेलै। चाय पाने ॅ रोॅ बिक्री अच्छा होय छेलै।
गाड़ी पर चढ़ै वाला रोॅ आरोॅ उतरै वाला रोॅ पैसेंजरोॅ रोॅ तांता लागलोॅ रहि छेलै। चौकोॅ सें आवै वाला आरोॅ जायवाला रोॅ दोनों तरफो वाला रोॅ हौ जगह डेग ठिठकी जाय छेलै, पहले चाय पीये तबेॅ पानी रोॅ खिल्ली चौआ तर दबावै, तबे आपनोॅ जहाँ जाना रहै छेलै, हौ तरफ टघरलोॅ चलोॅ जाय छेलै।
चाय दुकानोॅ रोॅ पाछु में ढाबा में, एक बेंच लागलोॅ रहि छेलै। पाँच छह आदमी स्थायी छेलै। हौसब सात से साढ़े सात बजे सुबह आपनोॅ पाठशाला में आबी केॅ आपनोॅ नाम दर्ज कराय लै छेलै। ऐकरा में कोय, ओटो रिक्शा कोय सवारी टाटा मेक्सी कोय-कोय बड़ी बस रोॅ स्टेण्ड किरानी रोॅ कामोॅ में रत छेलै कोय-कोय बड़ी बसो रोॅ स्टेपनी सें टिकट कटवाय छेलै। हे सब्भै नै आपनोॅ काम निपटावै छेलै, औरोॅ आबी केॅ ढाबा में विराम लै छै। दिनों में नाश्ता मूढ़ी कचरी रोॅ दुकानोॅ में करै छेलै, आरोॅ दोपहर रोॅ भोजन होटल में करै छेलै।
पश्चिम तरफ चन्दन नदी रोॅ किनारोॅ तक पूरब में धोरैया तक शाम के समय पर जेठ बैशाखोॅ रोॅ दोपहरी में जों पैसेंजर उतरै छेलै अकेले रिक्शा से जावेॅ लागै छेलै, साइकिल पर चढ़ी केॅ रिक्शा वाला रोॅ पाछू लागी जाय छेलै जन्हैं सुनाफड़ देखै छेलै, गमछी सें मुँह केॅ झांपी लै छेलै खड़ी हिन्दी बतियावै घूसा थप्पड़ चलाय दै छेलै, गाला-गलोजी भी करेॅ लागै छेलै, अनरझोलोॅ में काम करै छेलै।
चारो पाचोॅ ढाबा में चाय पान करै छेलै, मतरकि गांजा पाँचो बीचो-बीचो में धुआँ उड़ैतेॅ रहि छेलै। हौ ढाबा में एक बहारी आदमी आबै छेलै आरो दो तीन घंटा ढाबा में ठहरै छेलै, गांजा लै वाला आवै छेलै, खरीदी के चलोॅ जाय छेलै। तवे बेचै वाला चलोॅ जाय छेलै।
महीना में चार पाँच दिन है काम करै छेलै बड़ी लुकी छिपी केॅ, है कामोॅ केॅ अंजाम दै छेलै। पैसेंजर देखी केॅ आरोॅ पूछी लै कहाँ जाना छौन, एक आदमी यही कामों में भिड़लोॅ रहि छेलै, होकरो काम पूछना रहि छेलै, साधारण लीवासों में रहि छेलै, लोगोॅ समझते होतै, कोय रिक्शा वाला छेकै। है सब्भै में एक या दो ठो दूरो में खड़ा रहि छेलै, पैसा वाला पार्टी छेकै की ने छेकै, है पहिचान करै में पारखी छेलै, तवे होकरा पाछू में लागी जाय छेलै, पैसेंजर रोॅ अटैची जेवे खाली, अंधेरोॅ रो ॅ लाभ उठाय पलायन करि जाय छेलै।
मदन, सदन, रतन, जतन, मगन, है सब्भे वही ढाबा में गांजा सोठे छेलै आरो नजर चारोॅ ओर दौड़ाय छेलै, आई दस दिनोॅ सें एक भी बुआरी मछली नै फसलोॅ छै, भांजे नै लागी रहिलो छै, पाँचो रोॅ मन आवे उख-बिख करि रहिलोॅ छेलै। है छिनतई कामोॅ में करते आदमी केॅ मारपीट देने होतै, है गिनती करना या बताना कठिन छै। कभी कभार ऐकरा एक या दो आदमी घर चलो जाय छेले, साइकिल सें खाना खाय केॅ फेरू चललोॅ आवै छेलै। ढ़ाबा में दाखिल होय जाय छेलै।
शाम रोॅ समय कोय नया साइकिल देखै अगर दूर जाना छै तेॅ ओकरोॅ पाछू लागी जाय छैलै आरोॅ सुनसान जगह पर साइकलि वाला कोॅ गिराय दै आरो दो चार लप्पड़-थप्पड़ चलाय दै छेलै, आरो थ्रीनाट देखाय दै, हल्ला नै करिहहे नै तेॅ गोली दागी देबौं, बेचारे डर सें कुछ नै बोलै, अपनोॅ रास्ता पकड़े आरो घर चलोॅ डरलो-डरलो कही आवी केॅ मारी नै दिये। कई साइकिल छितनाई में लैलेलकै, आज वर्षों से जीत नगरवाला रोड़ों में आरोॅ धोरैया वाला रोड़ो में कहावत छै-" धन बढ़ना ठीक छै मतरकि मन बढ़ना बड़ी खराब छै। अबे सून धून होवे लागलै रोड़ो सब में छिनतई रोॅ कामो के यही पाँचो अंजाम दै छै। चौकोॅ पर के सब्भे आदमी ओकरा सब पर शंका करेॅ लागलै।
एक रिटायर्ड दरोगा बड़ी बस सें स्टैण्ड पर उतरलै है यही क्षेत्रो रोॅ छेलै, धुंधला होय गेलोॅ छेलै, पश्चिम तरफ हुनकोॅ घर पावै छेलै। दरोगा बाबू रिक्शा पकड़लकै आरो रिक्शा वाला चली देलकै, जीतनगर पहाड़ी रोॅ पास काफी अँधेरा होय गेलै" धुआ घाट वाला में सीट पीट बैठा केॅ रखने छेलै। चारो आदमी ने गमछी से मुँहो आरोॅ माथा में लपेटी लेने छेलै। रिक्शा वाला केॅ धोप-धाप आरो दो घुसा मारलकै रोकी देलकै दरोगा नें चारो से हाथापाई करेॅ लागलै, दरोगा बाबू केॅ चारो ने मारपीट लप्पड़-थप्पड़ घुसा चलैलकै। अटैची छीनी लेलकै आरोॅ फूल पेंटशर्ट सें रुपया पैसा निकाली लेलकै, हाथोॅ में अंगूठी छेलै, वहोॅ खोली लेलकै।
सुबह वेला में आम आदमी है बस जानी गेलै मतरकि राते में थाना खबर पहुँची गेलै, सवेरे रिक्शा वाला सें पूछताछ करेॅ लागलै, थाना र दरोगा ने धोप-धाप रोॅ साथ एक दो डंडा भी चलाय देलकै, रिक्शा वाला बोलै छै तीन चार आदमी छेलै सब्भै नै गमछा से मुँह माथोॅ ढकी लेने छेलै, खड़ी हिन्दी बोलै, घूसा मारे लागलै तबे हम्में रोकी देलियै, तब दरोगा बाबू सें हाथापाई करलकै, मारवो करलकै आरोॅ रुपया अंगूठी अटैची लै लेलकै, आरो बहियारे बहियार भागी गेलै।
" चौक पर दरोगा पुलिस ने मुआना करे लागलै दुकानदार स्टैण्ड किरानी से, गुमटी वाला सें पूरा छानबीन करेॅ लागलै, हकीकत में सुराग मिललै चाय दुकान ढाबा के भीतर छै पाछे में बेंच लगलो रहै छै यही बेंचो पर है पांचो बैठे छै, सीट-पीट लगायकेॅ राखै छै, आरोॅ रास्ता बाटोॅ में पैसेंजर रो साथे में नाटक रोॅ अंजाम दै छै।
हौ ढावा में दोनों भाय एक पान की दुकान आरो दूसरो भाय चाय की दुकान चलावै छेलै। यही रोजगारोॅ सें दोनों भाय परिवार रूपी गाड़ी केॅ खींचै छेलै, दोनों भाय सें पुलिसपूछै लागलै चाय वाला से अधिक पूछलके, दोनों आनाकानी करे लागलै, तबे पुलिसे नें दोनों केॅ दो चार डंा देहोॅ पर देलकै तबेॅ चायवाला नें सब बात उगलेॅ लागलै, तबे नाम ओकरे सें पूछलकै सब्भे नाम बताय लेॅ, सब्भ रो नाम नै बतावै पारलक डरो से।
तीसरो दिन ढ़ाबा केॅ घेरी लेलकै, पुलिसे नें रतन बेंच पर बैठला छेलै, ओकरा पुलिस नें पकड़ी लेलकै भागैलेॅ चहिलकै, मतरकि पकड़ी लेलकै। दो चार डंडा देलकै गाड़ी पर चढ़ैलकै थाना ले जाय केॅ पीटेॅ लागलै सब्भै साथी रोॅ नाम उगलवावेॅ लागलै सब्भै नाम बकार करि देलकै। तबेॅ पुलिस सब्भे केॅ घरोॅ पर छापा मारेॅ लगलै अन्त में सब्भै केॅ पकड़ी लेलकै, सब्भै केॅ मारपीट काफी देलकै कचूमर निकाली देलकै। दरोगा लूटकांड भारी हिनका सब केॅ पड़ी गेलै।
जबेॅ तक है सब्भे गुमनाम रहिलै, तबेॅ तक खूब चाँदी काटलकै। है केशों में इतना पीटलकै कि केकरोॅ हाथ टूटी गेलै, केकरो पैर टूटी गेलै, कोय बहिरा होय गेलै, केकरो महीना में दामी सुई लेै ले लागै छेलै। केश भी दफा भारी बैठा देलकै, सब्भै के शरीरो सें रबूदा करि देलकै, अंगिका में कहावत छै "बड़ी खोर खैने छे रे बकड़ा अबकी पड़लोॅ छौ बाघो सें पल्ला" वहे बात अबकी है सब्भै साथोॅ में होय गेलै।
भोला दादा न मदना सदन केॅ समझाय छेलै, है सब धंधा नै करें पोता, है दोनों बोलै महीना में दो तीन दिन शाम केॅ लूटपाट करै छियै, जैन्हौ भीतरिया गुमसुम करै छियै कि पुलिसो रोॅ बापोॅ ने जानै पारतै, यहे जवाब पाँचो नें दै छेलै, हमरा सब केॅ पकड़ैवाला पुलिस, दरोगा के हुनर आरो कलेजो चाहियो, आवे मदन सदन महसूस करै छै, दादा ठीके कहै छेलै।
आवे है जगह खाली पानोॅ रोॅ गुमटी छै, चाय रोॅ दुकान आवै नै रहिलै आरोॅ नै ढ़ाबा रहिलै, नै बेंच नै गंजा पीयैवाला र हुजुम छै, आवे है जगह सें "धुआ घाट" हमेशे-हमेशा वास्ते समाप्त होय गेलै।