धूप का एक टुकड़ा / सुधांशु गुप्त
वह सोकर उठा है। उसने महसूस किया कि कमरे में धुआं है। सुबह का समय है। सुबह का धुआं। वह दोबारा लेट गया है। धुआं फिर भी आंखों में लग रहा है। लगता है, पूरे कमरे में धुआं भर गया है। जब तक अंगीठी नहीं आ जाती धुआं रहेगा। कुछ देर और सो लिया जाए। जब धुआं खत्म होगा तब उठेंगे। वह सोच रहा है, ऊपर पंखा घूम रहा है। धुआं घूम रहा है। पंखा बंद कर देना चाहिए। धुआं घूमना बंद कर देगा। एक जगह रुक जाएगा, आंखों में नहीं लगेगा। अभी तक अंगीठी नहीं आई। उसने आंखें जोर से बंद कर ली हैं। जो घूमता है उसे घूमने दो।
उसने चादर मुंह के ऊपर खींच ली है। अब ठीक है। अब धुआं आंखों में नहीं लगेगा। घूमता है तो घूमने दो। उसने धीरे-धीरे आंखें खोल दी हैं। उसे फिर धुआं नजर आने लगा। चादर में कुछ छेद हैं। धुआं साफ नजर आ रहा है। धुआं चादर के ऊपर इकट्ठा हो रहा है। ऐसा लगता है बादल कमरे में कैद हो गये हैं। नहीं, बादलों का एक छोटा-सा टुकड़ा। बादल? समुद्र से पानी भाप बनकर उड़ जाता है....भाप उड़ती रहती है...ऊपर...और ऊपर....। जब तक उड़ सकती है। जब थक जाती है तो रुक जाती है। इकट्ठी होती रहती है, बादलों का रूप ले लेती है। भाप बादल बन जाते हैं। बादल पानी के रूप में दोबारा नीचे आ जाते हैं। गड्ढों में, नदियों में...नालों में ना जाने कहां कहां से गुजरकर पानी फिर समुद्र में आ जाता है। भाप से बादल...बादल से पानी....पानी से फिर भाप....। अजीब चक्र है। हमेशा इसी तरह चलता है। कभी गड़बड़ नहीं करता। ना बादल....ना पानी....ना भाप। बादलों के बिना कैसा लगेगा। गर्दन ऊपर उठाओ और देखते जाओ....दूर तक...जहां तक देख सकते हो....कोई रोक-टोक नहीं। सब स्वतंत्र होंगे। सब आसमान के पार देख सकेंगे, क्या है.... धुएं के पीछे। सिर पर आसमान ना होना!
उसने चादर उतार दी है।
वह लेटा है। ऊपर देख रहा है। पंखा घूम रहा है। घूमता हुआ पंखा। पंखा छत पर लटक रहा है। हमारी छत पर। हमारी छत पर कोई रहता है। हमारी छत उसकी धरती है। यदि हम अपनी छत हटा लें? उसकी धरती खत्म हो जाएगी। उसके पैरों के नीचे से धरती खिसक जाएगी....और हमारे सर से आसमान। नहीं, ऐसे ही ठीक है।
धुआं अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है, पर कम हो रहा है। लगातार। अंगीठी आने वाली है। आ रही है। धीरे-धीरे। सब सो रहे हैं। लाइट बंद है। कमरे में हल्का अंधेरा है। खिड़की से आती रोशनी कमरे के अंधेरे का मजा बिगाड़ रही है। कोई भी रोशनी को अंदर आने से नहीं रोक रहा। रोशनी बेहिचक कमरे में घुस रही है। खिड़कियों पर मोटे परदे लगे होने चाहिए। उनकी खिड़की के शीशे टूटे हुए हैं। बच्चों ने तोड़ दिये। क्रिकेट खेलते रहते हैं हमेशा। गेंद लग गयी। शीशा बिखर गया। ”वो” लोग सही हैं। खिड़की पर हमेशा मोटे परदे लगाये रखते हैं। सब शीशे सही सलामत हैं। कोई नहीं टूटा। कोई क्रिकेट नहीं खेलता। कोई
बाहर की रोशनी भीतर के अंधेरे का मजा नहीं बिगाड़ती। कोई बाहर का अंधेरा भीतर की रोशनी....। क्या तालमेल है अंधेरे का रोशनी से। तालमेल भी नहीं कहना चाहिए। क्या समझौता है अंधेरे का रोशनी से।
अभी सब सो रहे हैं।
उसने आंखें खोल दी हैं। धुआं खत्म हो गया है। रोशनी बराबर अंदर आए चली जा रही है। सुबह हो रही है। कमरे में रखी सब चीजें अब दिखाई देने लगी हैं। धुंधली। पर पहचाना जा सकता है। उनकी जगह देखकर। घड़ी, रेडियो, मशीन...किताबें सब कुछ। बस किताबों के नाम पढ़ना मुश्किल है। कोई बात नहीं। कुछ ही देर की बात है। कोई उठकर लाइट जला देगा। फिर सब कुछ दिखाई देगा। किताबों के नाम भी। नाम बारीक अक्षरों में लिखे होते हैं। ज्यादा रोशनी मांगते हैं।
समय पता नहीं क्या हुआ होगा? घड़ी सामने ही अलमारी में रखी है। उल्टी। उल्टी रखो तभी चलती है। सीधी रखने पर रुक जाती है। चलना जरूरी है। इसलिए उल्टी रखी है। उठाओ, समय देखो और चुपचाप रख दो। पता नहीं सब इतनी देर तक क्यों सोते हैं। अब तक तो उठ जाना चाहिए। घड़ी टिक टिक कर रही है। चारों ओर खाटें बिछी हैं। उठने का अभी मन नहीं कर रहा।
उसने चादर दोबारा सर के ऊपर तान ली है। चादर का कुछ हिस्सा पैरों से दबा लिया है और कुछ सिर से। वह एकदम सीधा लेटा है। ऊपर चादर तनी हुई है। ऐसा लग रहा है मानो कोई “डैड बॉडी” पड़ी हो। उसे हल्का सा डर लगा है। उसने चादर ढीली छोड़ दी है। सोता हुआ आदमी। उसने आसपास झांककर देखा है। सबने चादर गर्दन तक ओढ़ी हुई है। सोते हुए लोग। “डैड बॉडीज”।
उसने चादर फिर सिर के ऊपर तान ली है।
उसे रात को सोने में काफी देर हो गयी थी। देर तक जागते रहो तो नींद जल्दी आ जाती है। वह अक्सर ऐसा ही करता है। देर तक जागता रहता है। उसके बाद बिस्तर पर लेटते ही दूसरी दुनिया में। उसका कल ”इंटरव्यू” है। वह तैयारी कर रहा था। ना जाने क्या पूछ डालें। विकास मीनार जाना है। इतनी ऊंची बिल्डिंग। 24 मंजिल। कोई ऊपर से नीचे गिरे तो देर तक स्पेस में रहेगा। कलाबाजियां खाता रहेगा। मर जाएगा। सो जाएगा। डैड बॉडी। चौबीस मंजिल। वह एक बिल्डिंग के सामने खड़ा है। बहुत ऊंची बिल्डिंग है। आसमान को छूती हुई। कैसे बना लेते हैं लोग इतनी ऊंची-ऊंची बिल्डिंग्स। पूरी की पूरी गर्दन उठा कर देखना पड़ता है। कौन देखे...चलो अंदर चलते हैं। एक फ्लोर चढ़ेंगे, देख लेंगे। चढ़ते जाएंगे...देखते जाएंगे। यह तरीका ठीक है। एक बार में पूरी बिल्डिंग देखना मुश्किल है। पता नहीं कौन-सा फ्लोर है। बताया तो था उसने। हां, पर कुछ याद नहीं आ रहा। चलो कोई बात नहीं। पूछ लेंगे किसी से। नहीं, पूछेंगे किसी से नहीं। खुद ही पता करेंगे। वह अंदर आ गया। उसने इधर उधर देखा। कोई नहीं है। सारी की सारी बिल्डिंग खाली पड़ी है। ना जाने कहां चले गये हैं सारे के सारे लोग। वह भी पता नहीं मिलेगी या नहीं। उसने कहा था ”घर मत आना।” पर फिर
भी वह आ गया। नाराज ना हो जाए....। इतनी ऊंची बिल्डिंग के सामने से वापस नहीं लौटा जा सकता। बड़ी मुश्किल से तो पता मालूम हुआ है। कितनी प्रार्थनाएं की थीं उसने पता देते समय, ”देखो, प्लीज मेरे घर कभी मत आना।” फिर भी वह आ गया। बिना बताये। वापस चला जाए? नहीं, अब वापस जाना संभव नहीं है। अब तो वह उसे देखकर ही जाएगा। पता नहीं क्या कर रही होगी? अचानक मुझे देखेगी तो चकित रह जाएगी। नाराज भी हो सकती है। नाराज हो गयी तो वापस आ जाएंगे। एक बार दिख गयी तो ठीक है। वरना वापस आना पड़ेगा। अकेले। अकेले चलते हुए वह डरता है। इसके बावजूद एक बार उसने कहा था, अगर डर लगता हो तो मैं छोड़ दूं?
”नहीं, मैं उतना नहीं डरती” उसका जवाब था।
वह सोचता रहा कि शायद वह नहीं चाहती कि मैं उसके घर आऊं। पर अब तो वह उसके घर आ गया है। उसके घर के सामने खड़ा है। उसने गर्दन एक बार फिर आसमान की ओर उठा दी है। उफ्फ...कितने ऊंचे घर में रहती है। तो? कैसे रह लेते हैं लोग इतने ब़डे़ और ऊंचे घरों में। इतने सारे कमरे...दो चार प्राणी। टुकड़ों में बंटकर रहते होंगे। वह भी टुकड़ों में बंटी होगी। नहीं....वह सिर्फ एक कमरे में रहती है।
वह लोहे का जालीदार गेट खोलकर अंदर आ गया है। उसे किसी ने नहीं देखा। उसने किसी को नहीं देखा। उसे बड़ा आश्चर्य हो रहा है। उसने इधर उधर देखा....आसपास कोई नहीं है। ”लिफ्ट से चला जाए” उसने सोचा। लिफ्ट खाली पड़ी है। एकदम खाली। उसे थोड़ा डर लगा है। कहीं गलत पते पर तो नहीं आ गया। नहीं...नहीं पता कैसे गलत हो सकता है? उसने खुद दिया है। वह झूठ नहीं बोलती। ये लिफ्ट मैन कहां चला गया। सीढि़यों से ऊपर चला जाए। वह सीढि़यां चढ़ने लगा। एक...दो....तीन...चार....चौबीस सीढि़यां। पहली मंजिल.....। पहला कमरा। वह कमरे के सामने पहुंच गया। कमरा बंद है। पर ताला नहीं लगा है। वह कमरे के बाहर रुक गया। उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा है। क्या पता यही कमरा हो उसका। नहीं ये कमरा उसका नहीं हो सकता। वह इतना नीचे नहीं रहती। उसने किवाड़ों पर कान लगा दिये हैं। भीतर से कोई आवाज नहीं आ रही। हो सकता है वह सो रही हो। सोती हुई वह खूबसूरत लगती है। सोती हुई लड़की...सोता हुआ आदमी...डैड बॉडी। उसे डर लग रहा है। उसने एक किवाड़ खोल दिया है। अंदर झांककर देखा, कोई नहीं है। ना कोई व्यक्ति ना सामान। कमरा एकदम खाली है। इतना खाली कमरा उसने आज तक नहीं देखा। उसने किवाड़ बंद कर दिये। वह और ऊपर चढ़ने लगा। चलो अच्छा हुआ पहले कमरे में नहीं मिली। पहले ही कमरे में मिल जाती तो ढंग से बात नहीं हो पाती। वह सीढि़यां चढ़ रहा है.... एक... दो.... तीन... चार.... चौबीस....। वह दूसरी मंजिल पर आ गया। दूसरे फ्लोर पर। दूसरे कमरे के सामने। कमरा बंद है। अब क्या किया जाए? कमरा खोलकर देखो। यदि इस कमरे में भी ना हुई? उसने कमरे के एक किवाड़ को अंदर की ओर धकेल दिया है। अंदर झांककर देखा। कमरा खाली है। वह नहीं है। अजीब बात है। वह और ऊपर चढ़ने लगा। अगले फ्लोर पर... अगले कमरे में.... कमरा खाली है... उसका डर बढ़ रहा है। वह तेजी से ऊपर चढ़ने लगा। फ्लोर दर फ्लोर.... कमरा दर कमरा। सब खाली हैं। ना कोई आदमी ना सामान। हर फ्लोर पर एक कमरा है, हर फ्लोर पर एक खिड़की है। उसने नीचे
खिड़कियों में से तेज धूप आने लगी है। हवा जोरों से चल रही है। वह ऊपर की ओर भाग रहा है। किवाड़ खुद ही खुल रहे हैं। तेज आंधी चल रही है, धूल भरी। कुछ नजर नहीं आ रहा। वह बुरी तरह हांफ रहा है। भाग रहा है? एक... दो.... तीन... चार.... चौबीस। फ्लोर खत्म.... कमरा खाली..... एक... दो.... तीन... चार.... चौबीस... फ्लोर खत्म... कमरा खाली। वह बराबर भागता जा रहा है। ऊपर.... और ऊपर...। उसे डर लग रहा है। उसका डर बढ़ रहा है। वह आखिरी फ्लोर पर पहुंच गया है। चौबीसवें फ्लोर पर। आखिरी कमरे के सामने। आंधी अब एकदम रुक गयी है। खिड़की खुली है। उसमें नीचे देखने का साहस नहीं है। वह हांफ रहा है। पसीना बढ़ रहा है। आखिरी फ्लोर.... आखिरी कमरा। अगर इसमें भी नहीं हुई तो...? नीचे जाना मुश्किल काम है। इतनी ऊंची बिल्डिंग से सीढि़यों द्वारा....। असंभव है... बिलकुल असंभव। लिफ्टमैन भी नहीं है। खिड़की खुली है....खिड़की से कूद कर नीचे पहुंचा जा सकता है। बहुत होशियार होते हैं ये ऊंची बिल्डिंग्स में रहने वाले...एक बार ऊपर पहुंच गये तो फिर खुद ब खुद खिड़की खुल जाएगी।
यह आखिरी कमरा है। इसमें तो निश्चित ही होगी। अगर इसमें भी नहीं हुई तो? खिड़की खुली है। देखी जाएगी। उसने एक झटके से किवाड़ को परे धकेल दिया है। किवाड़ खुल गये। वह सामने ही बैठी है.....। खुले बाल किये हुए....मेज पर पैर रखे हुए है...पीठ कुर्सी से लगी है। कितने लंबे बाल है। सिर्फ बाल ही दिखाई दे रहे हैं। उसका मुंह दूसरी तरफ है। उसने पैर मेज से उतारे और घूम कर देखा। उसकी बड़ी बड़ी आंखें गुस्से से लाल हो गयीं। कोई कुछ नहीं बोला। फिर से धूल उड़नी शुरू हो गयी है। तेज आंधी चल रही है। कुछ दिखाई नहीं दे रहा है। वह ना जाने कहां चली गयी है। वह इधर उधर भाग रहा है। कमरे का दरवाजा खो गया है। खिड़की खुली है। वह नीचे उतर गया। एक जोर का धमाका हुआ। उसकी नींद खुल गयी। वह हड़बड़ाकर उठ बैठा। उसने देखा सब सोकर उठ चुके हैं। सुबह पूरी तरह हो चुकी है। उसने देखा है। धूप का एक टुकड़ा सामने वाली दीवार पर आकर चिपक गया है।