धूप के रेशे मुलायम हैं / महेश कुमार केशरी

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"बाबा मैं , तुम्हारी तरह ऐसे ही मज़बूत कट्टे बनाऊँगा l जैसे तुम बनाते हो l जैसे तुम्हारे बनाये कट्टे फायर करते समय नहीं फटते l ठीक ऐसे ही कट्टे मैं भी बनाऊँगा बाबा l बिल्कुल तुम्हारी तरह तुम्हारे बाद !"

करमजीत कार के स्टेयरिंग वाले पाईप को काटकर तराशते हुए अपने बाप गुलाब सिंह की तरफ़ देखते हुए बोला l

हाँलाकि, गुलाब सिंह, करमजीत के सामने ही कट्टे बनाने का काम करता है l लेकिन, उसका लड़का बड़ा होकर कट्टे बनायेगा l उसके बाद उसकी तरह l ये बात सुनकर गुलाब सिंह के कान खड़े हो गये थें l उसके सीने में लगा जैसे किसी ने बर्छा मार दिया होl ये बात इस छोटे से मात्र तेरह साल के लड़के के मुँह से सुनकर उसे बेहद अचरज हुआ था l लेकिन वह सोच रहा था कि आख़िर करमजीत भी कट्टा बनायेगा l उसको भी पुलिस दबिश देकर खोजेगी ? उसे भी जँगलों में महीनों रहकर रात बीतानी पड़ेगी l पाईप मोड़ते - मोड़ते उसके हाथ वहीं कहीं जम गये l कबसे कट्टा बना रहा है , वह l यादों

के धुँधलके में कहीं वह गहरे उतरता जाता है l पैतन पुर गाँव जहाँ उसका जन्म हुआ था l बचपन से ही वह इस माहौल में पला - बढ़ा l उसके पिताजी भी कट्टे ही बनाते थें l कोई तीन चार सौ लोग रहते हैं l उस गाँव में l सबका यही व्यवसाय है l कट्टा बनाने काl लीगल तरीके से यहाँ कुछ नहीं होता l सब कुछ पर्दे के पीछे से होता है l बहुत कम मेहनत और बहुत कम लागत में बन जाता है , कट्टा l फिर , इसे बाहर ले जाकर बेचने का भी टेंशन नहीं है l दूर - दराज के अपराधी क़िस्म के लोग अपनी सुविधा के अनुसार उससे कट्टे खरीदकर ले जाते हैं l

खासकर , छोटे - मोटे दूर - दराज के इलाकों में इसकी बहुत डिमाँड रहती है l और चुनाव के समय तो इन देशी कट्टों की माँग बहुत बढ़ जाती है l नेता लोग भी अपने गुर्गों की मदद से यहाँ इस गाँव से माल ले जाते हैं l चुनावों में दबिश देने के लिये l बूथ कैप्चरिंग के लिये l लेकिन, पैतनपुर से इन नेताओें का केवल चुनाव तक ही नाता रहता है l चुनाव के बाद वह इधर झाँकते भी नहींl इस कट्टे वाले धँधे में एक तो युवाओं में खासा पैशन दिखता है l इतना पैशन की , पूछो ही मत ? एक किशोरावस्था की बनैली क्रूरता उनके आँखों में दिखाई देती है l जिसे देखकर वह डर जाता है l एक ऐसा पैशन जिसे उसने करमजीत के आँखों में अभी- अभी देखा है l

एक ऐसा पैशन जिसका इस्तेमाल वहाँ के नेता इन युवाओं और किशोरों का

कार के स्टेयरिंग वाले पाईप की तरह कट्टा बनाने में करते हैं l हाथ युवाओं का जलता है l और ये नेता युवाओें को एक सपना दिखाकर उसमें अपना हाथ सेंकते हैं l एक क्रूर हिंसक सपना l ऐसा सपना जो कभी पूरा नहीं हो सकता l नशाखोरी और हिंसा ने इस पैतन पुर को अपनी गिरफ्त में ऐसे कसा है l जैसे अजगर , आदमी को अपने जबड़े में कसता है l गुलाब सिंह को लगा कि उसके बेटे करमजीत को भी कोई बहका रहा है l कोई ऐसा सब्ज-बाग दिखा रहा है l जिसमें करमजीत कल को उस क्षेत्र का कोई रसूखदार आदमी बन जायेगा l या कोई भाई वाई टाइप का आदमी ! लेकिन, करमजीत एक कट्टे बनाने वाले का बेटा है l उसको कोई कैसे सब्ज- बाग़ दिखा सकता है ? लेकिन हो भी तो सकता है l आख़िर , छोटे - छोटे बच्चे ही तो अपराधियों के साॅफ्ट - टारगेट होते हैं l बिल्कुल कार के पाईप की तरह l जिनसे कट्टा बनता है l लचीले और नाज़ुक !

उन्हें केवल तपाना भर होता है l फिर अपने हथौड़े से ठोंक- पीटकर मन चाहा आकार ले लो l आख़िर जिन राज्यों में शराब बैन है l वहाँ के अपराधी , बच्चों का सहारा लेकर ही तो शराब एक जगह से दूसरे जगह तस्करी करते हैं l पुराना माड्यूल बदल गया l आज कल पुलिस भी तो इन तस्करों और अपराधियों की सारी टेक्नीक समझ गयी है l फिर थोड़े से पैसों के लालच में ये युवा भटक जाते हैं l ये वही समय होता है l जब ये बच्चे हाथ से बेहाथ हो जाते हैं l आज कल जो स्मगलरी होती है l उसमें इन युवाओं को ही तो टारगेट किया जाता है l नशा करने वाला भी युवा l नशा बेचने और खरीदने वाले भी युवा l फिर आज कल तो बेब सीरीज का ज़माना है l उसने नेट-फिलीक्स पर कुछ बेब - सीरीज देखीं हैं l गालियों से नहाते संवाद l फूहड़ पटकथा और घटिया संवाद l बात- बात में गाली - गलौज l छोटी - छोटी बात पर ठाँय से पिस्तौल चलती है l और आदमी ढेर हो जाता है l बँदूक का साम्राज्य l हर तरफ़ दिखाई देता है l फिर इस देश में ऐसी फ़िल्में क्यों

बन रहीं हैं l और , अगर बन रहीं हैं तो , फिर सेंसर बोर्ड का अब क्या काम बचा है ? पता नहीं चलता l फ़िल्मों में अब संवाद और नायक केवल बँदूक से बात करता है l और उसकी बात सुनी भी जा रही है l ठेका नहीं मिलता है l तो बँदूक चल जाती है l सामाजिक दायरा कितना विकृत होकर सामने आ रहा है l इन फ़िल्मों में l एक ही औरत के तीन - तीन लोगों से सम्बंध हैं l ससुर से भी , पति से भी और बेटे से भी ! सामाजिक सम्बंधो की बखिया उघेड़ती आज की ऐसी बेब सीरीजें युवाओं के अंदर एक ज़हर भर रहीं हैं l फिर आज का युवा भी तो इन चीजों से बहुत इंस्पायर हो रहा है l और इन बेब- सीरीजों में सबसे बड़ी चीज जो दिखाई जा रही है l उसमें इन दबंगों को राजनीतिक तौर पर भी सत्ता का संरक्षण प्राप्त है l

बात - बात में गाली- गलौज l छोटे - बड़े को तरजीह ना देना l समाज का पूरा - ताना बाना बिखर गया है l इन बेब सीरीजों से l इन बेब-सीरीजों को देखकर ही तो युवा ड्रग्स ले रहें हैं l जैसे किसी फ़िल्म में टुन्ना भ ईया को ड्रग्स लेते दिखाया गया है l और सबसे ज़्यादा खराब बात इन बेब-सीरीजों में नायक का खलनायक हो जाना है l किसी भी राह चलती लड़की का दुप्पटा खींच लिया जानाl उसे सरेआम छेड़ा जाना l उसका सामूहिक बलात्कार l और नायक के रूप मे़ आज का युवा अपने आपको टुन्ना की जगह पाता है l बहुत ख़ुश है l आज का युवा अपने आपको उस खलनायक के रूप में देखकर l उसे टुन्ना भ ईया की तरह का बोस बनना है l पूरा ज़िला उसका है l

उसके पास पावर है l तो वह सब-कुछ हासिल कर सकता है l यहाँ नायक किसी अपने पर भी विश्वास नहीं करता l बस उसे गद्दी चाहिए l चाहे जैसे मिले l बाप को मारकर भी l

गिलास के गिरने की आवाज़ से गुलाब सिंह की तँद्रा टूट ग ई l उसने हो - हो की आवाज़ दी l लेकिन बिल्ली नहीं भागी l ढीठ की तरह खड़ी है , अब भी खिड़की पर l वह उठकर खिड़की तक गया l इस बार बिल्ली भाग गई l सामने गुरविंदर को देखकर वह चौंक जाता है l वह किसी लड़के से खड़ा होकर हँस - हँस कर बातें कर रहा है l उसके हाथ में एक पैकेट है l काले रँग की पाॅलीथीन l उसका दिल फिर से बैठने लगता है l गुरविंदर , उसके सगे भाई लखविंदर का बेटा है l वह पिछले साल जेल से होकर आया है l ड्रग्स बेचने के आरोप में l उस पर खालीस्तानी होने का आरोप भी लगा था l पाकिस्तानियों और आतंकवादियों से उसके सम्बंध हैं l ऐसी चर्चा मुहल्ले में हो रही थी l पुलिस कह रही थी l बाहर देश से ये जो अफीम , कोकिन और हीरोईन आती है l वह हमारे दुश्मन मुल्क पाकिस्तान से आती है l ठीक है l ये बात भी समझ आती है l गुविंदर के साथ एक और लड़का पकड़या था l वह ,माजीद था l एक पाकिस्तनी लड़का l पेशावर से था शायद , माजीद l जैसा कि गुरविंदर बता रहा था l उम्र कोई बीस-बाईस साल थी l उसका बाप कसाई था , रहमत शेख l दो - दो शादियाँ कर रखीं थी उसके बाप ने l वह उसकी सगी माँ को बहुत मारता पीटता था l उसके आठ - आठ भाई बहन थें l किसी तरह उसने सातवीं पास की l उसका बाप पाकिस्तान में एक बार इमरान खान की तहरीर सुनने गया था l फिर उसी रैली में गोली लगने के कारण उसका बाप मर गया था l एक तो छोटी उम्र l फिर , आठ आठ लोगों की जिम्मेदारियाँ सिर पर l एक अकेला माजीद भला अकेले क्या-क्या करता ? लोग मँहगाई से उस देश में पहले ही बदहाल थें l साग - सब्जी खरीदने के पैसे तो पास में होते नहीं थें l गोश्त कौन खरीदता ? ऐसा नहीं था कि माजीद बेवकूफ़ था l वह अख़बार पढ़ता था l चीजों को समझता था l उसने अखबारों में ही पढ़ा था l कि कुछ सालों पहले देश के पूर्व प्रधानमंत्री जिन पर भ्रष्टाचार के गंभीर मामले थें l वह देश छोड़कर अभी लंदन में रह रहा है l और अब अपने मुल्क में इमरान खान के अपदस्थ होते ही वापसी की तैयारी में है l चुनाव नज़दीक आ रहें हैं , वहाँ l ऐसा तो उसके ख़ुद के देश में भी हो रहा है l यहाँ के नामचीन भगौड़े बैंकों का पैसा लेकर लंदन , यू. के. , अमेरिका, यूरोप में बिजनेस को सेटल कर रहें हैं l आख़िर जो दूसरे मुल्क में हो रहा है l वह तो उसके देश में भी हो रहा है l पड़ौसी देश का पूर्व भगोड़ा या देश निकाला प्रधानमंत्री सोने की थाली में बैठकर मेवों का आनंद ले रहा है l वह जो एक भ्रष्टाचारी है l माजीद जैसे लाखों लोग जो मेहनत करते हैं l सरकार को टैक्स भरते हैं l उनके टैक्स के पैसों से ही ये सरकारें भ्रष्टाचार करती हैं l बड़ी - बड़ी गाड़ियों में घूमतीं हैं हैं l फाॅरेन देशों में हवाई यात्रायें करतीं हैं l बावजूद इसके कि वह सफेदपोश हैं l और माजीद जैसे लोग जरायमपेशा ! क्या जो लोग हथियार , या ड्रग्स बेचते हैं l वह इग्गे- दुग्गे लोग हैं l सारे काम इन सफेदपोश और बड़े लोगों की इच्छा-शक्ति और सत्ता के संरक्षण के बिना आख़िर कैसे हो सकता है ? इसको ऐसे समझना चाहिए कि हमारे देश के उन हिस्सों में जहाँ शराब बैन है l वहाँ शराब बिकती है l स्थानीय थाना को सेट कर लिया जाता है l आबकारी को उनका हिस्सा जाता है l इसका एक बड़ा नेटवर्क है l सियासतदानों से लेकर अफसरशाह तक सब के सब बिके होते हैं l तभी इतनी तादात में शराब बनती और बिकती है l कभी जनता की आँखों में धूल झोंकने के लिये दीपावली और दशहरे में दुकानों में दबिश दी जाती है l छोटे - छोटे पाॅलीथीन और ताड़ी बेचने वालों को पकड़कर जेल में बँद कर दिया जाता है l अख़बार का काॅलम भरने के लिये l कमीशन खाने वाला अधिकारी ही अपने जिले के अफसरों को डाँटता फटकारता है l साल में दस लोग भी नहीं पकड़े जाते l आखिर, जेल - मैनुअल और उसकी डायरी को मेंटेंन भी तो करना होता है l यहाँ हर बड़ी मछली छोटी मछली को निगल जाती है l

थोड़ा बहुत गुलाब सिंह भी राजनीति समझता है l वह देख रहा है , कि इधर कुछ सालों में हमारे देश से क ई उधोगपति ग़ायब हो गये हैं l बैंकों से बड़ा - बड़ा कर्जा लेकर l हज़ार , दो- हज़ार , पाँच हज़ार करोड़ l कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ सका l क्या ये सब बिना मिली भगत के होता है ? क्या बड़े - बड़े एम. पी. , एम. एल. ए. , मिनिस्टर से उनकी कोई साँठ गाँठ नहीं है ? बिना साँठ- गाँठ के बैंक इनको इतना बड़ा- बड़ा कर्जा दे देती है l ऐसा कैसे हो सकता है ? नहीं एक बहुत बड़ी लाॅबी होती है , इनकी l मिनिस्टरों से बड़ा-बड़ा क़रार होता है , इनका l बाहर के देशों में ये उधोगपति इन मिनिस्टरों के लिये बैंकों में इनके नाम से पैसे जमा करवा देते हैं l उनके बच्चों के लिये शाॅपिंग माॅल , जिम , काॅम प्लेक्स बनवा देते हैं l इन पैसों से इन मिनिस्टरों के लिये विदेशों में जन समर्थन जुगाड किया - करवाया जाता है l ताकि , उनकी राजनीति वहाँ भी चमकायी जा सके l उधोगपति वहाँ भी अपनी ज़मीन ले सकें l कारखाने लगा सकें l अपना व्यवसाय विदेशों तक फैला सकें l उनके प्रोडक्टस विदेशों में भी ज़ोर - शोर से बिके l उनकी आमदनी लगातार बढ़ती जाये l फिर वहाँ की सरकार में वे एक मुकाम हासिल करें l अपने लोगों के लिये लाॅबिंग करें l चुनाव में सरकार को फंँड दिये जाते हैं l जो करोड़ो रुपये के रूप में होते हैं l ये पैसे उधोगपति सत्ता में बैठे सरकार और विपक्ष दोनों को बारी - बारी से देती है l अनुकूल -प्रतिकूल परिस्थितयों को देखकर ! सरकारें आती- जाती रहतीं हैं l जनता वही रहती है l जो उनके प्रोडक्ट खरीदती है l

गुलाब सिंह का छोटा भाई संतन विकलांग है l उसका एक हाथ नहीं है l घर में बैठे - बैठे उसका मन नहीं लगता था l सोचा कोई छोटा - मोटा कुटीर उधोग ही लगा ले l इसके लिये कुछ कर्ज़ बैंक से ले ले l वह कई बैंकों के चक्कर लगाता रहा l लेकिन हाल वही था l जब तक हाथ पर कुछ रखोगे नहीं l फाईल आगे नहीं बढ़ती l आज कल गुलाब सिंह के बनाये कट्टों पर संतन पाॅलिश करने का काम करता है l

सरकार इन उघोगपतियों के प्रत्यर्पण की बात करती है l लेकिन, लंदन और दूसरे देशों के प्रत्यर्पण कानूनों का मसौदा और उसकी जटिलतायें भी अलग - अलग हैं l जो चीज हमारे देश में अपराध है l ज़रूरी नहीं कि दूसरा देश भी उसे अपराध मान ले l बैंकों से पैसे लेकर भागे लोग उस देश में जाकर वहाँ अपने शाॅपिंग माॅल्स , खोलते हैं l कारखाने लगाते हैं l वहाँ काम लंदन, यू. के. और अमेरिकियों को मिलता है l अब कोई आदमी बाहर से आकर उनके देश के लोगों को काम देगा l उसके देश को कमाई देगा l तो ऐसा कौन-सा ऐसा देश है , जो हमारे देश की बात मानेगा l और उन उधोगपतियों को हमारे सुपुर्द कर देगा ? सभी अपने- अपने स्वार्थ से जुड़े हैं l

क्या हमारे देश के लोग नहीं चाहते कि हमारे देश में बड़ी - बड़ी कंपनियाँ लगें l लोगों को रोजगार मिले l बेकारी ख़त्म हो l दर असल दुनिया के सभी मुल्कों में रोजगार एक प्रमुख समस्या के रूप में उभरकर सामने आयी है l एक ही देश के दो राज्यों के भीतर बाहरी-भीतरी की लड़ाई छिड़ी हुई है l कुछ सालों पहले आस्ट्रेलिया में एक आई. टी. के एक छात्र की हत्या हो गई थी l उस देश के लोगों को लगता है कि भारतीय छात्र उनकी नौकरियाँ खाते जा रहें हैं l विदेशों में भारतीय छात्रों पर हाल के वर्षों में हमले बढ़े हैं l इसका कारण केवल और केवल रोजगार का छिन जाना है l अपने देश में भी महाराष्ट्र में बिहारियों और यू. पी. के लोगों को मारा और भगाया जा रहा है l सब प्राथमिकता सूची में आगे रहना चाहते हैं l अपने लोगों को सब जगह काम मिलना चाहिए l दूसरे लोग हाशिये पर धकेल दिये जाते हैं l

फिर , माजीद या गुरविंदर जैसे लोग थोड़ा बहुत हेर - फेर कर लेते हैं l तो इन सरकारों का क्या जाता है ? ये तो जीने और खाने के लिये हेर - फेर करते हैं l लेकिन, ये सत्ता में फेर बदल या हेर - फेर नहीं करते ? चुनाव के बाद विधायकों को खरीदकर विपक्षी- पार्टी अपना सरकार बनवाती है l ये लोकतंत्र की हत्या नहीं तो और क्या है ? वकील पैसे लेकर अपराधी को बचाता है l बनिया अनाज में कंकर- पत्थर मिलाता है l ग्वाला दूध में पानी मिलाता है l सब अपने - अपने स्तर से हेर - फेर करते हैं l अपनी- अपनी सुविधा के अनुसार l फिर देश के इस पार और उस पार सियासतदान एक तरफ़ हमारी कौम को ख़तरा है l तो दूसरी तरफ़ हमारी कौम को ख़तरा है का राग अलापते हैं l और शिक्षा , मँहगाई, बेरोजगारी के मुद्दे पर चुप्पी साध लेते हैं l दोनोें देशों की सेनायें और जनता आपस में लड़ती और मरती रहती हैं l कभी देखा है इस पार के या उस पार के किसी नेता के बच्चे या नेता को मरते हुए l उनके लिये तो वी. वी.आई. पी. सुरक्षा की व्यवस्था होती है l किसी हँगामे में सिक्यूरिटी फोर्सेज नेताजी को सुरक्षित बाहर लेकर निकल जाती है l अख़बार के पृष्ठ पर किसानों और मजदूरों के बच्चे जो या तो फोर्सेज में या सेना में होते है़ , मारे जाते हैं l सरहद पर या वी. वी. आई. पी. की सुरक्षा में जो गोली खाता है , वह , मज़दूर या किसान का बेटा ही होता है l

"अजी , सुनते है l आज शाम का खाना नहीं बनेगा क्या ? जाओ जाकर जँगल से लकड़ियाँ बीन लाओ l" लाड़ो ने हाँक लगाई तो गुलाब सिंह की तँद्रा फिर से एक बार टूटी l

उसने पाईप को आग पर गर्म करने वाले पँखे को बँद किया और चल पड़ा जँगल की ओर लकड़ियाँ चुनने l

थोड़ी देर बाद वह एक बोरे में थोड़े से पत्ते चुनकर जँगल से ले आया l पैतन पुर छोटा-सा गाँव है l लेकिन उसके गाँव घर में उज्जवला का अबतक कोई कनेक्शन नहीं आया है l राशनकार्ड भी नहीं बना है , उसका l सिगड़ी में आग सुलग रही थी l उसने पतीली चढ़ाई चाय बनाने के लिये l उस आग में उसको अपना भविष्य भी धू - धू करके जलता दिखने लगा था l उसमें अब उस आग से आँख मिलाने का ताव नहीं बचा था l वह , क्या करेगा जब उसका बच्चा भी अपराधी बन जायेगा ?

उसके दादा-पड़दादा आज़ादी के आँदोलन में स्वतंत्रता सेनानियों के लिये तलवार , फरसा , गँडासा और भाला बनाते थें l अंग्रेजों से लड़ाई के लिये l लेकिन उन दिनों दूसरे लोग या विदेशी हमारे दुश्मन थें l अब अपने लोग हैं l जो सत्ता में बराबर की भागीदारी रखते हैं l लेकिन, हमारे हक़ की बात कभी नहीं करते l

फिर , कौन अपने और कौन बेगाने लोग ? जो अपने हैं , घोटाले कर रहें हैं l हमारे हिस्से का सब कुछ सफेदपोश बनकर हमारे ही सामने खा जा रहें हैं l भेंड़ों का शिकार कुछ भेंडिये कर रहें हैं l भेंड़ों का एक भरा पूरा झुँड़ है l भेंडिये, शेर की तरह भेंड़ के पुठ्ठों को नोच खाना चाहते हैं l और भेंड़ों का झुँड असहाय होकर एक-दूसरे को ताक रहा है l इससे भले तो ब्रिटिशर थें l कम से कम आज़ादी के इतने दिनों के बाद भी बने पुल - पुलिया , साबुत बचे हैं l यहाँ तो उदघाट्न के दो दिन बाद ही पुल - पुलिया गिर जा रहें हैं l क्या हुआ आज़ादी के पचहत्तर -छिहत्तर सालों के बाद भी ? विकास , गुलाब सिंह के गाँव का रास्ता जैसे भटक-सा गया है l उसके गाँव में आज भी पक्की सड़क नहीं बनी है l चापाकल तो हैं , लेकिन उनमें पानी नहीं आता l सिस्टम की तरह विकास भी अंँधा हो गया है !

"बाबा काम हो गया क्या ? कार वाली पाईप समेट कर रख दूँ ?" करमजीत सिगड़ी पर चढ़ी चाय को देखते हुए बोला l

"नहीं बेटे , कार की पाईप बाद में रखना l इधर आ मेरे पास आकर बैठ l" करमजीत वहीं पास में आकर ज़मीन पर बैठ गया l

"बेटा, कोई भी बाप ये नहीं चाहेगा कि उसका बेटा बड़ा होकर कट्टा बनाये l कल से ये कट्टा बनाने का काम मैं छोड़ दूँगा l क्या करूँगा , तुम्हें अपराधी बनाकर ! कल बाहर चला जाऊँगा l तुझे और तेरी अम्मा को भी साथ ले चलूँगा l चेन्नई तेरे मामा के पास l तेरा मामा वहीं पोर्ट पर काम करता है l वहीं कोई काम खोज लेंगें l ना तो अब कट्टा बनाऊँगा l ना ही बेचूँगा l अब कभी इस गाँव में नहीं लौटेंगें हम l तुझे अपने सामने ख़त्म होते हुए नहीं देख सकता , बेटा l"

और गुलाब सिंह ने अपने बेटे करमजीत को अपने से चिपटा लिया l वह लगातार रोये जा रहा था l

करमजीत को अब भी ये समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर हुआ क्या है ?

लेकिन; क्या इतने भर से ये समस्या ख़त्म हो जानी थी ? उस गाँव में जब सैकड़ों की संख्या में गुलाब सिंह जैसे लोग थें l सैकड़ों की संख्या में करमजीत सिंह और सीमा के उस पार माजीद जैसे लड़के थें ? ...