धोख़ेबाज़ सियार / नारायण पण्डित

Gadya Kosh से
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तीसरी कथा धोख़ेबाज़ सियार पर आधारित है। कौआ और हिरन दो दोस्त थे। भोले हिरन को धूर्त सियार अपना दोस्त बना लेता है।

सियार हिरन को एक हरे-भरे खेत में ले जाता है। हरी घास के लालच में आकर हिरन किसान द्वारा फैलाए जाल में फंस जाता है। जब हिरन सियार से मदद की गुहार करता है तो सियार व्रत धारण का बहाना बनाकर चमड़े के जाल में मुँह लगाने से इन्कार कर देता है। तभी हिरन का मित्र कौआ वहाँ आ जाता है। कौआ हिरन को मर जाने का स्वांग करने को कहता है। तभी वहाँ किसान लाठी लेकर आता है। कौआ भी हिरन के शरीर में चांेच मारने का नाटक करता है। किसान हिरन को मरा हुआ समझ कर जाल खोल देता है। हिरन झट से उठ कर भाग पड़ता है। किसान हिरन पर लाठी फेंकता है। लाठी झाड़ी में छिपे सियार पर जा लगती है। सियार दम तोड़ देता है।