ध्यान- गैर-यांत्रिक होना ही रहस्य है! / ओशो
प्रवचनमाला
अगर हम अपनी क्रियाओं को गैर-यांत्रिक ढंग से कर सकें तो हमारी पूरी जिंदगी ही एक ध्यान बन जाएगी। तब कोई भी छोटा-सा कृत्य जैसे स्नान करना, भोजन करना, मित्रों से बातचीत करना ध्यान बन जाएगा। ध्यान एक गुणवत्ता है, जो किसी भी चीज के साथ जोड़ी जा सकती है। यह कोई अलग से किया गया काम नहीं है। लोग सोचते हैं कि ध्यान भी एक कृत्य है- जब हम पूर्व दिशा में मुंह करके बैठते हैं, किसी मंत्र का जाप करते हैं, धूप-अगरबत्ती जलाते हैं, किसी विशेष समय पर, विशेष मुद्रा में, किसी विशेष ढंग से कुछ करते हैं।
ध्यान का इन बातों से कोई संबंध नहीं है। ये सब ध्यान को यांत्रिक बनाने के तरीके हैं और ध्यान यांत्रिकता के विरोध में है। तो अगर हम होश को संभाले रखें तो कोई भी कार्य ध्यान है, कोई भी क्रिया हमें बहुत सहयोग देगी।
साधारण चाय का आनंद
क्षण-क्षण जीएं। तीन सप्ताह के लिए कोशिश करें कि जो भी आप कर रहे हैं, उसे जितनी समग्रता से कर सकें, करें। उसे प्रेम से करें और उसका आनंद लें। हो सकता है, यह मूर्खतापूर्ण लगे। यदि आप चाय पी रहे हैं, तो उसमें इतना आनंद लेना मूर्खतापूर्ण लगता है कि यह तो साधारण सी चाय है।
लेकिन साधारण सी चाय भी असाधारण रूप से सौंदर्यपूर्ण हो सकती है, यदि हम उसका आनंद लें सकें तो वह एक गहन अनुभूति बन सकती है। गहन समादर से उसका आनंद लें उसे एक ध्यान बना लें- चाय बनाना, केतली की आवाज सुनना, फिर चाय उड़ेलना, उसकी सुगंध लेना, चाय का स्वाद लेना और ताजगी अनुभव करना।
मुर्दे चाय नहीं पी सकते। केवल अति-जीवंत व्यक्ति ही चाय पी सकते हैं। इस क्षण हम जीवित हैं! इस क्षण हम चाय का आनंद ले रहे हैं। धन्यवाद से भर जाएं और भविष्य की मत सोचें; अगला क्षण अपनी फिक्र खुद कर लेगा। कल की चिंता न लें- तीन सप्ताह के लिए वर्तमान में जीएं।
(सौजन्य से : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन)