ध्यान नहीं आया कि तुम लड़की हो / विनीत कुमार
"अरे नीर, तुम अचानक? फोन पर बताया नहीं कि तुम आ रहे हो? और तुम तो बुरी तरह भीग गए..जींस से इतना पानी टपक रहा है...रुको मैं अभी तुम्हारे लिए कपड़े लेकर आती हूं...लेकिन तुम्हें तो मेरे कपड़े आएंगे नहीं...आइडिया! खादी का कुर्ता-पायजामा आ जाएगा तुम्हें...अभी लाती हूं"
नीलिमा कपड़े लाने दूसरे कमरे चल देती है...जब तक कपड़े लेकर वापस आती तब तक नीर अपना काम कर चुका था.
"ये क्या पागलपंती है नीर? तुमने मेरी पोल्का डॉटवाली लोअर पहन ली और ये टीशर्ट. टीशर्ट पहनते वक्त पढ़ा भी तुमने कि इस पर क्या लिखा है? पागल तो नहीं हो. इसे पहनकर मेट्रो से वापस अपने घर जाओगे? लोग हंसेंगे नहीं कि ये कौन लड़का है जो स्कीनी पोल्का डॉट लोअर में; लड़की के कपड़े पहने घूम रहा है?"
"अरे नहीं, कुछ नहीं कहेंगे. किसकी मजाल है कि मुझे कोई कुछ कह दे. फिर कह भी दिया तो कह दूंगा- लड़की के कपड़े नहीं पहने हैं मिस्टर, इसी बहाने एक चुटकी नीलिमा को अपने साथ लेकर घूम रहा हूं और अगर लड़कियों ने ठहाके लगाए या एटीट्यूड में स्माइल पास की तो जोर से कहूंगा- जलन होती है देखकर? तेरे उन घोंचू, बकरे-सी दाढ़ी रखनेवाले से तो अच्छी ही दिख रहा हूं. और पढ़ लिया क्या लिखा है- इट्स माइ शो. वैसे एक बात कहूं, तुम्हें इस तरह की चीजें लिखी टीशर्ट नहीं पहननी चाहिए... इट्स माइ शो... आखिर तुम खुद अपने को मेल चावइज्म की कॉमडिटी बताती हो."
"बस-बस रहने दो. अब नुक्कड नाटक की रिहर्सल यही मत करने लगो. लेकिन तुम्हें पता है ये लोअर और टीशर्ट मैं पहले दो बार पहन चुकी हूं और धोने के लिए इसे खूंटी पर टांग रखी थी."
नीर बिना कुछ बोले ड्रेसिंग टेबल की तरफ बढ़ता है और स्पिंज को इतनी जोर से दबाता है कि एक बूंद भी डियो उसके भीतर न रहे.
"लो अब तो कोई नहीं कहेगा न कि एक तो लड़की के कपड़े पहन लिए और उपर से इतने गंदे की स्मेल आ रही है. अरे पागल, ये तो उससे भी ज्यादा नौटंकी हो गई...कपड़े के साथ-साथ डियो भी लड़की की?"
"आखिर तू चाहता क्या है, रुक जाता दो मिनट तो क्या बिगड़ जाता? मैं तो कुर्ता पायजामा ला रही थी न?"
"कुछ भी तो नहीं. बस ये कि मैं इस इलाके से गुजर रहा था तो इतनी तेज बारिश होने लगी कि मुझे समझ नहीं आया कि क्या करुं? पिछले दो घंटे से भीग रहा था. मन में आया कि कुछ कामचलाऊ कपड़े लेकर किसी रेस्तरां के वाशरुम जाकर बदल लूं लेकिन फिर तुम्हारा ध्यान आया कि अरे नीलिमा भी तो इधर ही रहती है, वहीं चलते हैं. यकीन मानो, जब तुम्हारे यहां चलने का मन बनाया तो दिमाग में ये बात बिल्कुल नहीं थी कि अगर तुम्हारा ब्ऑयफ्रैंड होगा तो इसे किस तरह से लेगा? मेरे दिमाग में ये भी नहीं आया कि अगर तुम्हारी खूसट मकान मालकिन ने दूसरे कपड़े में बाहर निकलते देख लिया तो क्या सोचेगी? मैं तो बस ये सोच रहा था कि निखिल की कोई न कोई टीशर्ट और लोअर तो होगी ही, पहन लूंगा... कौन पैसे फसाए... नहीं तो तुम्हारी ही जिंदाबाद. मुझे तुम्हारे लड़की होने के पहले दोस्त होने का ख्याल आया और मैं बस चला आया. एनीवे, मैं ये तुम्हारे कपड़े लौटा दूंगा या फिर उस बारिश और मौके का इंतजार करुंगा जब तुम फ़ोन करके कहोगी- यार नीर ! मेरे कपड़े होंगे न तेरे पास... देख न आज मैं इधर जंगपुरा आयी थी और बारिश में बुरी तरह फंस गई."