ध्वस्त तोप में चिड़िया का घोंसला / जयप्रकाश चौकसे

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ध्वस्त तोप में चिड़िया का घोंसला
प्रकाशन तिथि : 05 अप्रैल 2013


हॉलीवुड की सुपर सितारा एंजेलिना जोली शौकिया तौर पर गहनों के डिजाइन बनाती हैं और उनका चैरिटी ट्रस्ट इन गहनों को लगभग सौ दुकानों के माध्यम से पूरे विश्व में बेचता है। इसके लाभ से आम जनता की भलाई के काम किए जाते हैं। हाल ही में एंजेलिना के ट्रस्ट ने वर्षों से संकट से जूझते अफगानिस्तान में कन्याओं के लिए एक स्कूल की स्थापना की है और निकट भविष्य में इस तरह के कुछ और स्कूल खोले जाएंगे। विगत वर्ष वे सीरिया के दौरे पर गई थीं और वहां के हालात देख रो पड़ी थीं। ज्ञातव्य है कि एंजेलिना पहले भी अफगानिस्तान का दौरा कर चुकी हैं और राजनीतिक षड्यंत्र के शिकार लोगों से मिल चुकी हैं। यह संभव है कि आहत मानवता के लिए कुछ करने के प्रयास में एक कलाकार की संवेदनाओं को धार मिलती है और इस तरह के अनुभव उनके अभिनय में उनकी मदद करते हैं। इसका यह अर्थ नहीं कि एंजेलिना स्वयं के अभिनय को मांजने के लिए आहत लोगों की मदद करती हैं। नेक इरादों पर संदेह नहीं किया जा सकता।

इस प्रकरण में गौरतलब बात यह है कि अमेरिकी सरकार बम बरसाती है और वहां के कलाकार जख्मों पर मरहम लगाते हैं। इसे मिलीभगत का खेल नहीं कह सकते। एंजेलिना के कामों का रिकॉर्ड उनके पक्ष में है। अमेरिका की सरकार अमेरिका के जनसमूह की भावनाओं का प्रतिनिधित्व नहीं करती। हमारा हॉलीवुड फिल्मों के द्वारा अमेरिका के आम आदमी की पसंद-नापसंद को समझने का तरीका उतना ही गलत होगा, जितना किसी भी देश के द्वारा भारत को उसके सतही सिनेमा से समझने का दावा करना। क्या विगत 65 वर्षों में भारत की सरकारों द्वारा किए गए कार्य भारत के अवाम की आकांक्षा का प्रतिनिधित्व करते हैं। जनता द्वारा चुनी हुई सरकारें जनभावना के अनुरूप आचरण करती हों - यह संदिग्ध है। यह संभव है कि एंजेलिना जोली ने बुश को वोट दिया हो और उसे इसका अफसोस भी न हो, परंतु वे आहत अफगानिस्तान को राहत देने का प्रयास भी करती हैं अर्थात लोकप्रिय लहरों से प्रभावित हमारा राजनीतिक मत हमारी संवेदनाओं का प्रतिनिधित्व नहीं करता। चीन का अवाम अपने देश के नेताओं का समर्थन नहीं करता। चीन में युवा वर्ग अंडरग्राउंड क्लब में रॉक संगीत के मजे लेता है, जबकि चीन की कम्युनिस्ट सरकार अमेरिकन जीवन-शैली का विरोध करती है। क्या पाकिस्तान का आम आदमी यह चाहता है कि उसकी सरकार पड़ोसी देश में आतंक मचाने वालों की मदद करे? पाकिस्तान का आम आदमी तो अपने ही देश में हिंसा के तांडव से परेशान है। सारांश यह कि अवाम के मतों से ही चुनी हुई सरकारें, उसी अवाम की संवेदनाओं का प्रतिनिधित्व नहीं करतीं। यह काम साहित्य करता है, विशेषकर कविता करती है। कभी-कभी यह काम सिनेमा भी करता है। कोई भी सरकार के आला अफसर या मंत्री साहित्य से कतई जुड़े नहीं हैं, इसलिए आम आदमी की संवेदना से अनभिज्ञ हैं। इतना ही नहीं तमाम शिक्षण संस्थाओं में साहित्य के छात्रों की संख्या विज्ञान या कॉमर्स के छात्रों से बहुत कम है। शिक्षण संस्थाओं में लोग वही विषय पढ़ते हैं, जिससे उन्हें नौकरियां मिलें या दहेज लाने वाली पत्नियां मिलें। नौकरी और छोकरी सोच का केंद्र हो तो साहित्य भला कौन साधे और क्यों साधे?

एंजेलिना जोली ने अपने वक्तव्य में 'चिल्ड्रन ऑफ काइसिस' कहा है अर्थात युद्धरत या लगभग युद्ध जैसे माहौल को भुगतने वाले देशों के बच्चों की उन्हें चिंता है। उनकी सरकार ने इराक या अफगानिस्तान में इतने बम बरसाए हैं कि शायद ही कोई उद्यान वहां सुरक्षित हो या सड़कें सुरक्षित हों। इन मुल्कों में संकट के समय पैदा हुए बच्चे संभवत: चली हुई कारतूस के खोल से खेलते होंगे। उनके खेलने के लिए शायद ही कोई उद्यान बचा हो। उनके फेफड़ों में बारूद भर गई होगी। उनका लालन-पालन ध्वस्त इमारतों के बीच हो रहा है। उन्हें लोरियां सुनने के बदले खतरे के सायरन सुनने पड़े हैं। रोती-बिलखती मां के आंचल में दूध कहां से आता, वे नीर पीकर पल रहे हैं। अगर ये बच्चे जवां होकर स्वयं हथियार हो जाएं तो कोई आश्चर्य नहीं। अमेरिका को नहीं मालूम कि वह क्या बो रहा है? एंजेलिना द्वारा खोले गए स्कूल कोशिश कर सकते हैं कि ये बच्चे हथियार न बनें। एक तरह से वे ध्वस्त तोप के दहाने में चिडिय़ा का घोंसला बनाने का प्रयास कर रही हैं। कविता इस तरह जीवित रहती है। वही मनुष्य का आखिरी संबल है। यह सच है कि कविता से पेट नहीं भरता, परंतु पेट भरने से ही कोई जीता भी तो नहीं।

एंजेलिना जोली ने बच्चे गोद भी लिए हैं। प्रचारित तौर पर युवा केंद्रित दुनिया में बच्चों और बूढ़ों के लिए स्थान नहीं होता, परंतु प्रचार कब सच होता है। मानवीय करुणा की धुरी पर ही संसार चल रहा है। इस प्रकरण से यह भी ज्ञात होता है कि अभिनय से प्ाप्त लोकप्रियता का उपयोग सामाजिक कार्यों के लिए कैसे किया जा सकता है। रमेश तलवार के नाटक 'काबुलीवाला की वापसी' में रवींद्रनाथ टैगोर की कहानी 'काबुलीवाला' जिस पर बंगाली और हिंदी में फिल्में बन चुकी हैं, के आगे की घटनाओं की कल्पना है कि किस तरह काबुलीवाला की प्रिय बालिका की डॉक्टर बेटी अफगानिस्तान जाकर घायलों की सेवा करते हुए उस दयामय काबुलीवाले की अपनी बेटी या उसके वंशजों को खोजती है, जिसने उसकी मां के बचपन में अपनी बेटी की छवि देखकर अपार स्नेह दिया था। स्वार्थहीन कार्य अनजान दुर्गम स्थानों पर कोंपलों के रूप में उगते हैं।