नई काॅलोनी / इन्दिरा दाँगी

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आधुनिक देह में दकियानूसी दिल की तरह, पाॅश काॅलोनी के भव्य प्रवेश-द्वार पर सबसे ऊपर एक काला नज़रबट्टू टँगा है।

पब्लिक स्कूलों को जाती ए.सी. बसों में मोटे बस्ते लिए बच्चे चढ़ रहे हैं। उनकी नये चलनदार गृहणी-माँयें कैपरी-टीशर्ट के ऊपर पहने अपने दुपट्टे सम्हालतीं बाॅय कर रही हैं। कारें दफ़्तरों-कारोबारों की तरफ़ रवाना हो रही हैं। पिछली सीट पर अपने सेलफ़ोन में व्यस्त साहब लोग गार्ड्स के सलाम ठोकने को आँख उठाकर नहीं देखते। ग्यारह, तेरह और पंद्रह बरस की महरियाँ काम पर आ रही हैं और काॅलोनी के सुरक्षा-गार्ड्स उन्हें छेड़ रहे हैं।

पाॅश काॅलोनी के सामने हाईवे-सड़क की झाड़ियों पर फूल-सी कोमल धूप खिल ही रही है कि उसमें आज फिर धूल के तेज़ गुबार आ-आकर मिल उठे हैं। उस पार काॅलोनाइज़र की मशीनी-फ़ौज उधर के बचे जंगल को मैदान में बदल रही है। हाईवे-सड़क के आर-पार दो ऊँचे बोर्ड हैं: …निर्माणाधीन नील जंगल सिटी, …नवनिर्मित नील झरना सिटी।

काॅलोनी द्वार के सजीले पाॅम वृक्षों की चिड़ियाँ न जाने क्यों अचानक चुप लगा गई हैं; बाक़ी सब ठीक चल रहा है। दूसरी क़तार के तीसरे बंगले में रहने वाली गृहिणी अपने दोनों बच्चों को स्कूल बस में, और पति को कार में विदा कर, ऊपरी बेडरूम में काँच के सजीले जग में पानी रख चुकी; अब दोनों जर्मन शेफर्ड कुत्तों को खाने को उबला मीट दे रही है। वो चुप और उदास दिखती है। हिन्दुस्तानियों को ऐसी स्त्रियाँ हमेशा ही बहुत पसंद हैं जो सिर्फ़ देती, देती हैं; और बदले में चुप रहती हैं। अलसुबह उठकर सबके जाने की तैयारी, जाने के बाद उनके जूठे बर्तन और बिस्तर पर छूटे गीले तौलिये, बासी कपड़े समेटना, आने पर सबका सत्कार और गै़रमौजूदगी में घर की सुव्यवस्था …परिचित-पड़ोसी, नाते-रिश्तेदार कौन नहीं जो इस गृहिणी की मिसाल अपनी स्त्रियों को न देता हो!

कवर्ड कैम्पस काॅलोनी के बीचोंबीच के गार्डन-पार्क, स्याह-रेशम सड़कों के किनारे के फूलों वाले बौने पेड़ों, और कुल जमा प्राकृतिक माहौल ने जाने क्यों एकाएक दम साध लिया है; बाक़ी सब अच्छा चल रहा है। पहली कतार के पहले ही बंगले में रहने वाले अतिवृद्ध दंपति अपनी बालकली में बैठे हैं। वे नये प्राप्त स्मार्टफ़ोन पर, इतनी ऊँची आवाज़ में, अपने बेटों से बतिया रहे हैं जैसे बिना फ़ोन के भी वो उनकी बात सुन लेंगे—आस्ट्रेलिया या कि नार्वे या कि लंदन में!

पर्शियन बिल्ली पता नहीं क्यों रो उठी है जबकि उसकी बूढ़ी, एकाकी, रिटायर्ड मालकिन उसके पास ही, पार्क में, पलाश के दो पेड़ों तले जाॅगिंग कर रही है; ये पेड़ अपने टेढ़-मेढे़पन की कलात्मकता के कारण कभी बख्श दिए गए थे।

पूरा जीवन अपनी पसंद की सर्वोच्चता के साथ बिताने के बाद अब सफल स्त्री के पास बात करने को सिर्फ़ यह पर्शियन बिल्ली ही बची है। अपने शरीर की अतिस्थूलता से आप थकती वो योगा करने बैठी है और सोच रही है कि बिल्ली को आज डाॅक्टर के पास ले जायेगी।

एक डुपलेक्स के बाहर से हवा की तरह गुज़र गए किसी को, किसी ने नहीं देखा। इस घर में बड़ी व्यस्तता है। परसों ब्याही गई दुल्हन बेटी पगफेरे के लिए मायके लौटेगी आज। बेटी से ज़्यादा दामाद के स्वागत की तैयारियाँ हैं। पिता अलसुबह ही निकल गए हैं फूल लाने के लिए। माँ कितने ही पकवान बनाते नहीं थक रही और छोटा भाई पटाखों की पेटी लिए बाहर आ रहा है। …उसने दीदी से कभी नहीं कहा कि वो उनसे, मम्मी जितना ही प्यार करता है।

बहती हवा ठहर गई है जैसे …जैसे किसी अदृश्य की साँसें आ घुली हों; बाक़ी सब हर दिन की तरह ठीक—ठाक दिख रहा है। दूसरी कतार के दूसरे बंगले वाली कामकाजी युवा माँ आज फिर लेट हो गई है ऑफ़िस जाने को; आया को आने में देर हो गई आज भी। टिफ़िन, लैपटाॅप, फ़ाइलें साधती-समेटती वो दौड़कर कार तक आई है। अपनी अतिव्यस्तताओं में आज भी वो पलटकर बाॅय करना भूल गई है, आया की गोद में से, उसे देख रही दस माह की बेटी से। ‘लिव-इन’ रिश्ते से पैदा इस संतान की बेहतर परवरिश के लिए ही युवा माँ ने कभी शादी न करने का निर्णय लिया है और उसे अपने आप में लगता है कि यों इस संतान की अकेले परवरिश, एक महान पथ है जिस पर वो चल पड़ी है।

जैसे कोई है; कोई जो इंसानी ताक़तों से बेख़ौफ़ रहता है! कुछ घटित होने वाला है, ईको चुप होकर चीख़ रहा है जैसे; और तो सब, हर दिन की तरह बढ़िया चल रहा है काॅलोनी में। अड़ोसी-पड़ोसी दोनों लड़के वार्षिकोत्सव के बहाने स्कूली छुट्टी होने से, सेलफ़ोन में डूबकर ऑनलाइन गेम खेल रहे हैं; नाश्ता लेकर, माँ को भी उन्होंने कमरे के दरवाज़े से ही लौटा दिया है …निजता का आग्रह इतना प्रबल है कि माता-पिता भी मौक़ा देखकर ही सलाह देते हैं।

यहाँ का जीवन अपनी तात्कालिकताओं में इतना खपा हुआ कि छठी इंद्री की प्राकृतिक शक्ति सुन्न हो चुकी है। कुछ भाँपा नहीं जा सका है। सुरक्षा के भ्रम में बेपरवाह लोग दैनिक कामों बाबत आवाजाही कर रहे हैं। काॅलोनी के मुख्य द्वार पर एक जाने-पहचाने-से आगन्तुक की लंबी कार की ओर सलाम करते गार्ड्स आज भी बंद होठों में मुस्करा रहे हैं।

हर दिन की तरह पाॅश काॅलोनी अपने ऐश्वर्य में व्यस्त दिखाई दे रही है;

अब …

एक डुपलेक्स के सजीले ड्राइंगरूम में ग्यारह साल की महरी वैक्यूम क्लीनर चला रही है। सोफ़े के कोने में भूसा भरी हिरन देह सजी है; ऐन उसके पीछे बैठे तेंदुए पर उसकी नज़र पड़ती है। चलता वैक्यूम क्लीनर उसकी ओर बढ़ाने से पहले एक पल को उसका मन उससे खेलने को हुआ -मालिक दम्पति के बेटों ने अबकी जो सजावटी सामान डिलेवर करवाया है, लाश है कि खिलौना? कि लाश से बना खिलौना? नन्ही मेहरी का मन उससे खेलने को हुआ; पर माँ समझाती है, किसी तरह के लालच में न आना कामवाले घर में!

‘‘अरे! ये तो एकदम सचमुच का लग रहा है !’’ —वैक्यूम क्लीनर लिए वो उसकी तरफ़ अभी बढ़ी ही थी कि उसे तेंदुआ और ज़्यादा सचमुच का लगने लगा …और देखते-देखते उस खिलौने ने आक्रमण की मुद्रा बना, तब जाकर बच्ची महरी को लगा कि ये तो सचमुच का तेंदुआ ही है!

बच्ची महरी एक पल को मर गई जैसे; फिर जान छोड़कर भागी बाहर को।

‘‘तेंदुआ!! तेंदुआ!! कोई बचाओ! घर में तेंदुआ घुस आया है !’’ …माँ ने सिखाया है, किसी मुसीबत में फँस जाओ तो भागने की कोशिश करना; चीखने की कोशिश करना। बच्ची महरी की चीखों से एलीट मौनवाली काॅलोनी गूँज गई है।

‘‘तेंदुआ है! अंदर तेंदुआ है!! तेंदुआ है!!’’

सुस्ताते लोग हड़बड़ाकर गिर पड़े। हर हाथ में फ़ोन है; पर सूझा किसी को नहीं कि उसका इस्तेमाल करना है। वे सब उसी ओर को भागे जिधर तेंदुए की ख़बर थी।

बच्ची महरी भाग खड़ी हुई। भीड़ डुपलेक्स के बाहर इकट्ठी हो रही है और अतिवृद्ध दम्पति ऊपरी मंज़िल पर ही रह गए हैं; निचली मंज़िल में तेंदुआ होगा। दूर खड़े लोग मदद पर विचार-विमर्श कर रहे हैं।

‘‘कोई सौ नंबर डाॅयल करो।’’

‘‘नहीं पुलिस नहीं; वन विभाग को फ़ोन करो।’’

‘‘कोई इनके बच्चों को फ़ोन करो।’’

‘‘लंदन?’’

‘‘नहीं, नार्वे।’’

वृद्ध दम्पति कांपते हाथों से नया फ़ोन एक-दूसरे को बार-बार ले-दे रहे हैं। उन्हें समझ नहीं आता, अपने किस बेटे को फ़ोन करें इस घड़ी में। तीन बहुत सफल पुत्रों के माता-पिता से इसी घबराहट में फ़ोन छूटा और बालकनी से नीचे गिरकर छनाक से टूट गया।

‘न; ऑस्ट्रेलिया में है सबसे बड़ा वाला तो।’’

‘‘न लंदन! न नार्वे! न ऑस्ट्रेलिया ! ऊपरी बालकनी में अतिवृद्ध दम्पति और निचली मंज़िल में मौजूद तेंदुआ ही इस समय का सच है!

पाँच-आठ मिनट हो चुके लोगों को आये और तेंदुए को किसी ने देखा नहीं है सो अब तक वो सब के लिए कम यक़ीन की चीज़ होता जा रहा है। कोई तो बच्ची महरी के लिए ये भी कह रहा है कि ये ग़रीब लोग अपनी तरफ़ ध्यान आकर्षित करने के लिए किसी की हत्या भी कर सकते हैं!

बहरहाल, गार्ड्स को आगे किया गया। तीनों हौसला कर दरवाज़े से झाँकते हैं। तेंदुआ कहीं दिखाई नहीं पड़ता।

‘‘हम अंदर नहीं जायेंगे।’’

‘‘तब तुम लोग हो किसलिये ?’’

‘‘सलाम ठोकने, भिखारी रोकने-टोकने को बोला था बिल्डर सा‘ब ने। तेंदुआ पकड़ने की नौकरी थोड़े है।’’ -पिछले ही महीने शहर आया अ-प्रशिक्षित तरुण गार्ड पीछे हट गया।

‘‘तुम लोगों के नाम पर हम कितना सोसायटी मेंटनेस देते हैं!’’

‘‘साहब, हमारी बंदूकें असली नहीं हैं -एयरगनें हैं!’’

‘‘क्या ???’’

लोग चौंके। इन अप्रशिक्षित, चिड़ियामार बंदूकचियों के हाथों उनके जान-माल की हिफ़ाजत रही है अब तक !

‘‘ऐ ऐ ऐ ऽ ऽ’’

दुल्हन के छोटे भाई ने पटाखों की एक सुलगती लड़ी उस ड्राइंगरूम में उछाल दी थी। लोगों में हड़कंप मच गया …जब तेंदुआ भीतर से निकला !

…तेंदुआ ???

एक जीता-जागता, खुला, जंगली तेंदुआ अपने बीच पाकर लोगों के होश उड़ गये। वो भीतर से दौड़कर अब जो उछला है भीड़ की तरफ़ …चीखते, ख़ौफ़ज़दा लोग हड़बड़ाने-हटने में एक-दूसरे पर लद्द-फद्द गिर रहे हैं। …औंधे गिर पड़े एक आदमी के सिर पर पंजा रख वो निकला तो गंजे सिर पर पंजे से ऐसी खरोचें बन गई जैसे ख़ून से दर्ज़ कोई भविष्यवाणी …एक तरफ़ को थोड़ा ही दौड़ा तो उससे आगे दौड़ते अति स्थूलधारी को अस्थमा का दौरा पड़ गया। हमेशा ज़ेब में रहने वाला नेब्युलाइज़र कहाँ हैं; साँसे साथ छोड़ रही है! तेंदुए से पहले कहीं उसके होने का भय ही न मार डाले!! …एक कोई हड़बड़ाहट में भागती, तेंदुए से ही टकरा गई और उसी की चीख़ जैसे आसमान तक पहुँच रही थी; इससे तो तेंदुए और भी बदहवास हो उठा। …किसी ने न जाने कहाँ से एक गमला मारा, तब तेंदुए के मुँह से वो वृद्ध गर्दन छूट गई जिसे अब वो पकड़कर चीरे ही दे रहा था। जिस काॅलोनी में ऊँची आवाज़ में कोई बात नहीं करता; आज वो रहवासियों की चीखों से थर्रा उठी है। घायल और स्वस्थ लोग गिर-पड़ रहे हैं लेकिन ठीक से भाग नहीं पा रहे। सब कामों के लिए बहुत व्यवस्थित लोगों ने मौत से साक्षात्कार के बारे में कभी सोचा ही नहीं! …जबकि साक्षात् मौत आसपास है, बदहवास एकाकी मालकिन अपनी पर्शियन बिल्ली को खोज रही है। बिल्ली है कि कहीं नहीं मिलती; और मालकिन है कि उसे खोजे जाती है, खोजे जाती है !

अब, तेंदुआ इधर दो क़दम या उधर दस क़दम। चारों ओर फूलों के छोटे गमले या कि सड़कें या दूब है; वो बुरी तरह दिगभ्रमित हो चुका है – न अपना जंगल मिल रहा है न खोह!

…खोह ??

वो एक खुले डुपलेक्स में जा घुसा।

‘‘बेबी अंदर है! बेबी अंदर है !!’’

आया चीख़ रही है। बाहर शोर सुनकर वो बिना दरवाज़ा बंद किए ही चली आई थी। दस माह की बच्ची भीतर पालने में सो रही है।

हद-बेहद घबराई आया बार-बार फ़ोन लगा रही है। सिंगल पेरेन्ट युवा माँ अपनी कंपनी के बहुराष्ट्रीय क्लाइंट्स के सामने खड़ी प्रस्तुतीकरण दे रही है; अपनी समस्त प्रतिभा और योग्यता झोंककर। पानी पीने के बहाने, आधे पल को उसने फ़ोन में देखा। घर के सीसीटीवी कैमरों में बेटी सुकून से सोई दिखती है। आया का काॅल उसने फिर से काट दिया।

तेरह साल का लड़का दोस्त को अपना स्मार्टफ़ोन देकर, दौड़ता हुआ डुपलेक्स में घुस गया; सोशल मीडिया पर लाइव बहादुरी दिखाकर हीरो बन जाने का इससे अच्छा अवसर भला क्या होगा! तीन मिनिट बाद, बच्ची को गोद में उठाये वो बाहर आ गया। लोग तालियाँ बजाने लगे। अब दोस्त उससे पूछ रहा है,

‘‘क्या वहाँ तुम्हारा सामना उस तेंदुए से हुआ?’’

‘‘तेंदुआ?? क्या अंदर तेंदुआ था? मुझे तो लगा, बच्ची आग में फँसी होगी।’’

दोस्त ने लाइव वीडियो बंद कर दिया।

सब तेंदुए के पीछे एकाग्र, उधर हैं और इधर फूलों के छोटे गमलों के पीछे एकाकी मालकिन को अपनी पर्शियन बिल्ली मिल गई है। कितनी अधिक भयभीत है बिल्ली; मालकिन माँ उसे सीने से चिपटाये वहीं बैठ गई, अपनी अति स्थूल देह न सम्हाल पाकर। बिल्ली की गर्माहट ह्नदय तक पहुँचती है …बंद पड़ चले ह्नदय तक? …दूर से देखता कोई एम्बुलेंस को फ़ोन कर रहा है; मालकिन बिल्ली को चिपटाये एक ओर लुढ़क गई है।

किसी ने दौड़कर डुपलेक्स का दरवाज़ा बंद कर दिया। कुछ देर बाद तेंदुआ ऊपरी बालकनी से, पास की दूसरी बालकनी में कूद गया।

तेंदुआ एकदम से उनके सामने जा पड़ा है। एक पल को तो जोड़े की दशा ऐसी हो गई जैसे गृहिणी का पति सामने आ खड़ा हुआ हो। तेंदुए से ज़्यादा फिक्र नीचे से आती सामूहिक आवाज़ों की है; लोग षायद इधर ही को इकट्ठा हो चले हैं!

नीम लम्हा भर पहले प्रेमिका जिसकी बाँहों में ख़ुद को सुरक्षित महसूस कर रही थी; अब उसकी उपस्थिति ही तेंदुए से अधिक असुरक्षित किए देती है। अब न तो भागा जा सकता है, और न ही कपड़े पहन पाने का समय है!! …और इससे पहले कि तेंदुआ कुछ कर पाता, गृहणी ने इधर-उधर देखा; और पानी से भरा काँच का जग उठाकर दे मारा।

तेंदुआ हड़बड़ाकर बालकनी से नीचे कूदा या कि गिर गया; बाउन्ड्री में खुले दो जर्मन शेफर्ड के बीच। ऊँचे, तगड़े, भेड़ियों सरीखे हाउण्ड कुत्ते अब तक के अपने जीवन में किसी से न डरे थे। वे ख़तरनाक प्रशिक्षण पाये, और ख़ालिस गोश्त पर पले हैं। …और सामने जंगल का तेंदुआ है!

दोनों शिकारी कुत्तों ने एक साथ हमला बोला; जंगल के उस शानदार शिकारी पर जो इस समय अपने दुरुस्त हाल में नहीं है। एक ओर सर्वश्रेष्ठ प्रशिक्षित जोड़ी है तो दूसरी तरफ़ जंगल में पली प्रतिभा। …वो प्रतिभा जो कि माँ द्वारा छोड़ दिए गए अबोधों में जंगल तराशता है -किसी क्रूरतम पिता की तरह!

जबकि उन तीनों में ख़ूनी संघर्ष शुरू हो चुका है, दूर खड़ी भीड़ में बहुतेरे ऐसे हैं जिन्होंने डब्ल्यू.डब्ल्यू. ई. और एनीमल चैनल्स से बाहर सच्ची हिंसा आज पहली बार देखी है। कुछेक अपनी चरम उत्तेजना में, फ़ायर ब्रिगेड, पुलिस, वन विभाग, टी.वी. चैनल -जिसको जो नंबर याद आ रहा है, काॅल लगा रहे हैं; लोग मदद को पुकार रहे हैं जैसे। बच्चे जो चले आये हैं उन्हें खींचकर वापिस ले जाने को उनकी माँयें दौड़ी चली आ रही हैं। पाँचवे डुपलेक्स वाली को आता देख कईयों का ध्यान तेंदुए से हट गया। वो जो सबसे ग्लैमरस चेहरा है इस काॅलोनी का और सबसे फैशनेबल भी; ओह, बिना साज-शृंगार, घरेलू कपड़ों में ये कितनी साधारण दिखती है!! कुछ उम्रदराज भी …दूरियाँ जादू जगाती हैं; निकटता बहुधा उतनी सुंदर साबित नहीं भी हो पाती। काॅलोनी के सबसे बूढ़े अंकलजी भी छड़ी टेकते चले आये हैं। उन्हें महीनों बाद लोगों ने देखा है। क्या जीवन कोई घुड़दौड़ है सफलता की, जिससे उतरे हुए महज मृत्यु की प्रतीक्षा में जी रहे हैं !! …काॅलोनी का चेहरा जितना आकर्षक उतना अजनबी अपने आप के लिए भी!

कुछ देर के भीषण संघर्ष के बाद, ख़ून से तरबतर तेंदुआ खड़ा हुआ—किसी विश्व विजेता रेस्लर की तरह! दोनों शिकारी कुत्तों को उनकी अंतिम साँसों में मरणासन्न पड़ा छोड़कर वो बाउन्ड्री पर से कूदा। कवर्ड कैम्पस के बीचोबीच, बौने फूलों के बीच से गुज़रता, गार्डन की अमरीकन दूब पर आ बैठा है। लोग तेंदुआ पकड़ने के लिए आ रही रेस्क्यू टीम को फ़ोन लगा-लगाकर हलकान किए दे रहे हैं।

यों, हाईवे-सड़क के धूल-गुबारों से गुज़रकर, पाॅम वृक्षों की चिड़ियों को भयभीत करता, पर्शियन बिल्ली को अपनी मौजूदगी से आक्रान्त करता, कुल प्राकृतिक माहौल को सजग करता, हवा की तरह दौड़ता और ईको में अपनी उपस्थिति महसूस करवाता वो जो यहाँ तक चला आया; वह तेंदुआ अब शांत बैठा है। उसकी देह की खरोचों से रिसते ख़ून को दूब तले की ज़मीन सोख रही है; यही ज़मीन जिस पर कभी एक तन्वी नदी ‘नील झरना’ बहती थी। …उस वक़्त की निशानी अब बस पलाश के ये दो पेड़ बचे हैं।

और…

तेंदुए को लौटने की एकदम सही राह याद आ गई, नदी पर पानी पीकर इन पेड़ों तले से, जंगल लौट जाने की राह!

तेंदुआ दौड़ा। कूदता-फाँदता, काॅलोनी, भव्यद्वार, नज़र बट्टू, हाईवे-सड़क पार करता, नील जंगल के पेड़ों को मार डालती मशीनी फ़ौज के बीच से गुज़रता, वो बचे-खुचे जंगल में जाकर ओझल हो गया।

इधर काॅलोनी में एक कोलाहल उठकर शांत हो गया और उधर जंगल में क्या हुआ, किसे पता!