नई जानकारी / रमेश बतरा
सर्दियों का धुपहला दिन था। हम सपरिवार पिकनिक मनाने शहर से कुछ दूर स्थित सरोवर-तट पर पहुँचे हुए थे। हम कुछ लोग ताश खेलने में मस्त थे कि हमारी बिटिया भागी-भागी आई और कुछ ही फ़ासले पर खिल रहे गुलाब के फूलों की तरफ़ इशारा करके बोली — दादी-दादी, फूल के साथ काँटे क्यों होते हैं?
दादी ने उसे बड़े प्यार से समझाया — फूल और काँटे साथ-साथ होने का मतलब है ... जीवन में सुख और दुख संग-संग चलते रहते हैं। इसलिए इनसान को सुख में इतराना नहीं चाहिए और दुख में घबराना नहीं चाहिए।
मगर बिटिया के पल्ले कुछ नहीं पड़ा। उसने बड़े असमंजस से माँ को देखा तो माँ ने तपाक से सास को शह देने वाले आन्दाज़ में बोलना शुरू कर दिया — फूल बहुत सुन्दर होता है ... इसके साथ काँटे होने का मतलब है ... हर सुन्दर चीज़ को सम्भाल कर रखना चाहिए, जैसे तुम और तुम्हारा भैया बहुत सुन्दर हो, इसलिए दादी, मम्मी-पापा, सब तुम दोनों को ख़ूब सम्भालकर रखते हैं।
— रामू ! आप कोई काँटा हैं क्या ? — बिटिया सन्तुष्ट नहीं हुई और मेरे पास आकर लाड़ जताती हुई बोली — किसी को मालूम नहीं, सिर्फ़ मेरे पापा को मालूम है।
मेरी इज़्ज़त ख़तरे में पड़ गई ... मगर तभी मुझे एक चालाकी सूझी और मैंने बड़े गर्व से कहा — यह तो हमारी बिटिया को भी मालूम है। सोचो और अच्छी तरह सोचकर बताओ कि फूल के साथ काँटे क्यों होते हैं?
— बता दूँ। — बिटिया आँखें मटकाकर सचमुच सोचने लगी और कुछ देर सोचने के बाद ताली बजाती हुई बोली — पता चल गया ... पता चल गया ... काँटे इसलिए होते हैं कि जब परियाँ इस झील में नहाने आती हैं तो अपने कपड़े इन पर टाँग देती हैं।
— बिल्कुल ठीक ! — हम इस तरह चहक उठे मानो हमें एक नितान्त नई जानकारी मिल गई हो।