नई दिशाएँ / नीरजा हेमेन्द्र

Gadya Kosh से
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प्रातः घड़ी के अलार्म के स्वर के साथ निकिता की आँख खुल गयी। वह उठी और प्रति दिन की तरह घर के कार्यों में व्यस्त हो गयी। थोड़ी देर के उपरान्त उसने अपने दोनों बच्चों को भी जगाया। उनके विद्यालय जाने का समय होने वाला है। वे उठेंगे तथा विद्यालय जाने की तैयारियों में व्यस्त हो जायेंगे। वह उनके लिए नाश्ता बनाएगी। टिफिन तैयार करेगी। बच्चों को विद्यालय के लिए तैयार करने के पश्चात् वह अमिताभ को उठाएगी। अमिताभ भी उठ जाएंगे तथा वह भी उसके साथ घर गृहस्थी के कार्यों तथा आॅफिस की तैयारियों में व्यस्त हो जाएंगे। यह लगभग प्रतिदिन की दिन की दिनचर्या है। निकिता और अमिताभ अपने दानों बच्चों के उज्ज्वल तथा सुखी भविष्य के लिए अत्यन्त लगन और परिश्रम से घर-गृहस्थी की गाड़ी को आगे बढा़ रहे हैं।

बच्चों को विद्याालय भेजने के उपरान्त वह अमिताभ के साथ चाय पीने बैठ गयी। सब कुछ व्यवस्थित ढंग से होते देख वह प्रसन्न थी। प्रसन्नता के इन क्षणों के साथ उसके मस्तिष्क में पुराने दिनों की वो स्मृतियाँ भी सजीव होने लगीं, जब वह और अमिताभ एक ही कॉलेज में पढ़ते थे। निकिता की प्रखर बुद्धि तथा सादगीयुक्त सौन्दर्य से अमिताभ प्रभावित थे। अमिताभ अत्यन्त धनाढ्य, उच्च कुल के थे। यद्यपि निकिता का परिवार भी उच्च शिक्षित था। माता-पिता दोनों सरकारी विभाग में अच्छे पद पर कार्यरत थे। किसी प्रकार का अभाव न था, किन्तु जातिगत् विषमता अवश्य थी।

कॉलेज में अमिताभ अन्य लड़कियों से बहुत कम बोलते, निकिता से बातचीत के अवसरों की तलाश में अधिक रहते। कॉलेज में जब भी आवश्यकता हुई, अमिताभ उसकी मदद को सदैव तत्पर रहते। श्नैः श्नैः उसकी और अमिताभ का मित्रता प्रगाढ़ होती चली गयी।

शिक्षा पूर्ण करने के उपरान्त निकिता अनेक कार्यालयों में नौकरी के लिए आवेदन-पत्र भेजने लगी। लगभग एक वर्ष के अन्दर उसका चयन बैंक में आॅफिसर के पद पर हो गया। शिक्षा पूर्ण करने के उपरान्त अमिताभ भी अपने पिता के बिजनेस में हाथ बँटान लगे। व्यस्तताओं के बीच भी यदा-कदा अमिताभ से मुलाकात होती रहती।

समय धीरे-धीरे व्यतीत होता रहा। उसे नौकरी करते हुए छः माह हो गए थे। अब उसके माता-पिता को उसके विवाह की चिन्ता होने लगी थी। उन्होने उसके रिश्ते की बात अपने परिचित के पुत्र से चलाई जो डाॅक्टर था। उन्हाने प्रथम बार देखते ही निकिता को पसन्द कर लिया तथा वे विवाह के लिए उत्सुक हो गए थे। अमिताभ कभी-कभी बैंक में आकर निकिता से मिल लेते थे। उस दिन अपने विवाह की बात जब निकिता ने अमिताभ को बतायी तो अमिताभ के चेहरे पर उदासी फैल गई।

सर्दियाँ खत्म हुईं। मौसम धीरे-धीरे करवटें ले रहा था। प्रकृति अपने अनुपम सौन्दर्य को देख कर झूम रही थी। ऋतु राज वसन्त का आगमन जो हो रहा था। पौधे, वृक्ष नव-पल्लव, नव-पुष्पों से अपना ऋंगार कर रहे थे। वतावरण में पक्षियों के कलरव मुखर हो रहे थे। सड़क के किनारे खड़े पलाश तथा गुलमोहर के वृक्ष लाल-पीले फूलों से भर गए थे। निकिता को ये दिन-रात अत्यन्त सुखद लग रहे थे। अकस्मात् एक दिन सब कुछ परिवर्तित-सा हो गया, जब अमिताभ ने उसके समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा। निकिता समझ नही पा रही थी कि वह क्या उत्तर दे? अमिताभ उसे भी अच्छे लगते थे। लम्बा कद, इकहरा शरीर, चेहरे पर एक ठहराव तथा तेज देखने से ही उच्च कुलीन प्रतीत होते थे। अमिताभ को पा कर तो कोई भी लड़की स्वंय को सौभाग्यशाली समझेगी। किसी की भी कल्पनाओं के अनुरूप था अमिताभ का व्यक्तित्व, कुल तथा परिवारिक पृष्ठभूमि। वह जानती थी कि अमिताभ उसे उसकी बुद्धिमत्ता व आकर्षक व्यक्तित्व के कारण पसन्द करते हंै, किन्तु वह उस जातीय विषमताओं का सामना कैसे करेंगे तो हमारे समाज में सदियों से व्याप्त है। जो अर्थहीन होते हुए भी हमारे समाज में अपनी जडे़ गहराई तक जमा चुकी हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि अमिताभ इन सबसे अनभिज्ञ हैंै। यही करण है कि अमिताभ द्वारा रखे गये विवाह प्रस्ताव पर उसे प्रसन्नता की अनुभुति नही हुई। उसके चेहरे पर उदासी व बेबसी की रेखाएँ उभर आयीं। वैसी ही रेखायें जो निकिता का विवाह तय हो जाने की बात सुन कर अमिताभ के चेहरे पर फैल गयी थीं। निकिता अपनी इस समस्या को अमिताभ से कैसे कहेगी? वह समझ नही पा रही थी कि यह जानकर अमिताभ कैसा महसूस करेगें। उनकी क्या प्रतिक्रिया होगी? कुछ पलों के लिए उच्चशिक्षित परिवार तथा सर्वगुण सम्पन्न, शिक्षित व आफिसर के पद पर कार्यरत वह स्वयं होते हुए भी निकिता खुद को अत्यन्त तुच्छ व असहाय समझने लगी। मानों उसकी समस्त योग्यताओं पर प्रश्न चिन्ह लग गये हों।

विवाह प्रस्ताव का उत्तर कुछ समय बाद देने की बात कह कर निकिता भारी ह्नदय से घर आ गई। अमिताभ याचक की तरह उसे देखते भर रहे।

अत्यन्त संघर्षपूर्ण चार रातें काटने के उपरान्त निकिता ने यह सोच लिया कि वह अमिताभ को सब कुछ स्पष्ट बता देगी। यह भी बता देगी कि इस जातीय विषमता से उपजी समस्या का सामना अमिताभ को करना है, सिर्फ अमिताभ को। उसे अपनी योग्यता, अपने व्यक्तित्व पर गर्व है। वह किसी से कमतर नही है। यह समस्या उसकी नही, अमिताभ की है। वह आज अमिताभ को समाज द्वारा निर्धारित की गयी अपनी पहचान( जाति वर्ग ) से अवगत करा देगी। फिर अमिताभ से कभी नही मिलेगी। यूं भी वह अमिताभ से नही मिलती। अमिताभ ही उससे मिलने को तत्पर रहते हैं। अमिताभ के प्रति उसके ह्नदय में भी आर्कषण का बोध होने के पश्चात् वह जानती है कि वह और अमिताभ एक दूसरे के लिए नही हैं। सदियों पुरानी समाज की अर्थहीन रूढि़याँ उसे और अमिताभ को एक नही होने देंगी। कदाचित् अमिताभ में इतना साहस न हो कि वे सामाजिक व पारिवारिक विरोध का सामना कर सकें। अमिताभ को इन सबसे अवगत कराने का दृढ़ निश्चय कर वह घर से कार्यालय जाने के लिए निकल पड़ी। आज उसके ह्नदय में शान्ति तो थी किन्तु अमिताभ से दूर हो जाने तथा एक सच्चे मित्र को खो देने की पीड़ा भी थी।

शाम को कार्यालय से बाहर निकलने उसकी दृष्टि अमिताभ को ढूँढने लगी। अमिताभ हमेशा की तरह अपनी गाड़ी के पास खड़े हो कर उसकी प्रतीक्ष करते मिले। उन्होने गाड़ी का दरवाजा खोला और वह गाड़ी के अन्दर बैठ गयी। अमिताभ ड्राइविंग सीट पर बैठ कर गाड़ी चलाना चाह ही

रहे थे कि उसने गाड़ी न चलाने का संकेत दिया। अमिताभ से कहीं भी न चलने के लिए कह वह अति शीघ्र अपनी बात कह देना चाह रही थी। अमिताभ से उसने कहा कि “आपसे कुछ बातें करनी हैं।” अमिताभ के हाथ रूक गये और उन्होने एक प्रश्नवाचक-सी दृष्टि उस पर डाली। उसने अमिताभ से कहा कि- “कुछ बातें हैं जो चलते हुए मार्ग में नही कही जा सकतीं। उन्हें चलने से पूर्व बता देना उचित रहता है। मुझे आगे बढ़ने से पूर्व अभी कुछ कहना है।” उसने अपने शब्दों पर जोर देते हुए कहा।

“अति आवश्यक बात है तो मैं अभी सुनने को तैयार हूँ। आपके आदेश को न मानूँ ऐसा मेरा साहस कहाँ?” अमिताभ ने चेहरे पर तथा बातों में हास्य का समावेश करते हुए कहा। मैंने भी दृढ़ता से अपनी जातिगत् सच्चाई से उन्हे अवगत् कराया तथा पुनः न मिलने की बात कही। अपनी बात कहने के पश्चात् उसने अमिताभ के चेहरे को ध्यानपूर्वक देखा। उसे अमिताभ के चेहरे पर गम्भीरता तथा चिन्ता की लकीरें स्पष्ट दिखाई दीं। कुछ देर तक दोनों चुपचाप बैठे रहे, तत्पश्चात् अमिताभ ने मुस्कराते हुए कहा कि-” बस! इतनी सी बात.....और तुमने मेरे चार दिन और चार रातें और खराब की। मैं इन तुच्छ बातों को नही मानता। मैं सब ठीक कर लूंगा। सिर्फ तुम मेरे साथ रहना! सिर्फ तुम....! अमिताभ की आँखें आत्मविश्वास से भरी थीं।

जीवन की धूप-छाँह भरी डगर पर चलते हुए मेरे व अमिताभ के विवाह को नौ वर्ष हो गए हैं। सहसा तंद्रा टूटी। मेरी चाय खत्म हो चुकी थी। मैं उठी व कार्यालय जाने की तैयारियों में व्यस्त हो गयी। अमिताभ को और मुझे एक साथ कार्यालय के लिए निकलना होता है। अचानक अमिताभ के मोबाइल फोन की घंटी बजी। अमिताभ फोन पर बातें करने लगे। बातों से आभास हो रहा था कि फोन अमिताभ के पिताजी का था। बातें करते-करते अमिताभ के चेहरे पर चिन्ता की लकीरें उभर आयीं।

अमिताभ ने बताया कि उनकी मम्मी की तबियत अचानक रात में खराब हो गयी है। उन्हे अस्पताल में भर्ती कराया गया है। इस समय अमिताभ के दोनो बड़े भाई काम के सिलसिले में शहर के बाहर हंै। उनकी पत्नियाँ भी बच्चो के साथ मायके मे है, स्कूलों में शीतकलीन अवकाश जो हंै। अमिताभ के दोनों भाई अपने माता-पिता के साथ रहते हैं। परिवार में मुझे ले कर किसी प्रकार का तनाव न हो इसलिए मैंने व अमिताभ ने अपनी अलग दुनिया बस ली है।

इस समय मेरे व अमिताभ के समक्ष सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि माता जी अस्वस्थ हैं। उनकी देखभाल का पूरा उत्तरदायित्व अमिताभ के पिताजी के कंधें पर आ गया है। इस उम्र में कैसे वह घर से अस्पताल तक दौड़-भाग की जिम्मेदारी अकेले उठा पायेंगे? अमिताभ ने अपने कार्यालय में कुछ दिनों के अवकाश की सूचना भिजवा दी तथा मुझे भी अवकाश लेने के लिये कहा। मैंने तथा अमिताभ ने घर तथा अस्पताल का पूरा उत्तरदायित्व अपने कंधों पर ले लिया। माताजी को सघन चिकित्सा कक्ष में रख गया था। मैंने अमिताभ के पिताजी के खाने-पीने व स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखने के साथ-ही साथ उनकी माँ की देख-भाल की तरफ पूरा ध्यान दिया। उनकी माँ तथा पिता को किसी प्रकार की तकलीफ न होने दी। धीरे-धीरे माता जी के स्वास्थ्य में सुधार होता गया। छः दिनों के उपरान्त माता जी को अस्पताल से घर जाने की अनुमति मिल गयी। डाॅक्टरों ने उन्हे ह्नदय सम्बन्धी रोग बताया था। अतः घर में भी माता जी को पर्याप्त आराम की आवश्यकता थी। अभी तक उनके दोनो पुत्र व पुत्र बधुएँ नही आ पायीं थीं। अमिताभ के पिताजी मेरे अथक परिश्रम व सेवा से अत्यन्त प्रसन्न थे। वह बार-बार इस बात को कहते कि “बेटा! आज तुम व अमिताभ समय पर न आते तो न जाने क्या अनर्थ हो जाता।

माता जी की आँखों में भी कृतज्ञता का भाव होेता। वे मुझे स्नेहपूर्ण दृष्टि से देखतीं तथा नजरें मिलते ही दृष्टि झुका लेतीं। एक सप्ताह बाद जब मैंने उन्हे बताया कि-”मैं अब कार्यालय जाना चहतीं हूँ, किन्तु मै प्रति दिन कार्यालय से यहाँ आ कर आपकी देखभाल करूँगीं। यदि आपकी आज्ञा हो तो मैं जाऊ?

मेरी बात सुन कर अमिताभ की माता जी की आँखों से आँसू बहने लगे। उन्होने मुझे अपने पास बुला कर स्नेह से मेरे हाथों को पकड़ा तथा बोलीं-”बस बेटा, बस! मुझे माफ कर दो। मैं संकुचित विचारों के कारण तुम्हे पहचान नही पायी। मनुष्य जन्म से नही कर्म से महान बनता हैं, यह शिक्षा तुमने मुझे दी है। इस घर में तुम रहो या न रहो, मेरे ह्नदय में तुम अवश्य रहोगी।” यह सुन कर मेरी आँखों से अश्रु बहने लगे। गर्म आँसुओं की तरलता में पुरानी कटु स्मृतियाँ बहने लगीं। कमरे में दूर खड़े अमिताभ की आँखों में मेरे लिए स्नेह तथा चेहरे पर गर्व उभर आया।