नई शर्त / दीपक मशाल
Gadya Kosh से
अब की शर्त यह नहीं थी कि कछुआ उस दौड़ को जीते बल्कि चालाक खरगोश ने शर्त यह रखी थी कि 'विकास नाम की जिस मंजिल तक मैं पहुँच चुका हूँ तुम उस तक पहुँच कर ही दिखा दो'।
कछुए ने हामी भर दी थी, वो विकासशील जीव धीरे-धीरे मंजिल की तरफ बढ़ रहा था। मगर धूर्त खरगोश कभी रास्ते में दूसरे कछुवों से उसकी टांग खिंचवा देता तो कभी मंजिल नाम की तख्ती को थोड़ा और आगे कर देता। कछुआ फिर भी चलता जा रहा था।