नए बॉस / हरिशंकर राढ़ी
ऑफिस में नए बॉस से नए कर्मचारियों को नई उम्मीदें होती हैं। यहाँ पुराने लोग उम्मीदें नहीं करते। उन्होंने ऐसे दर्जनों बॉस देख रखे हैं। इसी का नाम तजुर्बा होता है। हमारे सरकारी ऑफिस में नए बॉस आए तो ऐसी उम्मीदें जगीं जैसी नई सरकार बनने पर लोग-बाग करने लग जाते हैं। अब सुधार होगा, पुराने वाले ने देश का बेड़ा गर्क कर रखा था। कोई नया विचार नहीं, नया तरीक़ा नहीं, नया जोश नहीं। गोया आॅफिस न होकर कोई पुराना श्मशान घाट हो। कुछ करने का उत्साह ही नहीं।
नए बॉस आए तो उनकी त्योरियाँ चढ़ी हुई थीं। नई जगह ज्वाइन करने पर त्योरियाँ चढ़ाना बॉस का संवैधानिक अधिकार एवं कर्तव्य होता है। शुरुआत में ही हँसता हुआ चेहरा लेकर गए तो मातहत क्या ख़ाक भाव देंगे? चेहरा ऐसा अबूझ होना चाहिए कि लाल बुझक्कड़ भी न समझ पाएँ कि साहब चाहते क्या हैं? किस बात पर नाराज हैं? तकलीफ क्या है? डाँट ख़ाकर आए हैं या डाँट खिलाने वाले हैं। वैसे ज़्यादा चांस डाँट खिलाने के ही होते हैं। साहब नए आए हैं तो कुछ करेंगे। ऊपर से गणेश परिक्रमा वालों ने समझा दिया होगा कि दफ़्तर के हाल बुरे हैं। अनुशासन है ही नहीं। कोई किसी से डरता नहीं। किसी से न डरना बॉस और देश के लिए ख़तरे की घंटी है।
बॉस ने बोल दिया- ऐसे नहीं चलेगा। बदलाव लाना पड़ेगा। वे ख़ुद बदलाव करेंगे। अब वे दिन गए। आमूल-चूल परिवर्तन होगा। वे केवल कहते नहीं, करके दिखाते हैं। दिखाया। अगले दिन बॉस की मेज कमरे की दूसरी दीवार की तरफ़ लगाई गई। पहले यह दरवाज़े के सामने थी। जो भी गुजरता था, बॉस के दर्शन पा जाता था। बॉस कोई प्रदर्शन की वस्तु नहीं है। उसके दर्शन दुर्लभ होने चाहिए। यहाँ से खिड़की पीछे की तरफ़ थी, जिस पर पर्दे नए लगवाए। दरवाज़े का पायदान बदलवाया। पता नहीं पिछले पायदान पर किन-किन लोगों ने पैर रखा होगा! कहाँ-कहाँ की मिट्टी आई होगी! यहाँ से बाथरूम सही दिशा में है। बॉस का मानना है कि वास्तुशास्त्र का ध्यान रखना चाहिए, खासकर सरकारी दफ्तरों में। भगवान भरोसे चलने वाले देश में न जाने कब क्या हो जाए!
नए बॉस मॉडर्न मानसिकता के हैं। पुराने बॉसने कमरे के बाहर गेंदे-गुलाब के ग़मले लगवा रखे थे। नए बॉस ने उसको आते ही उठवाया, फेंकवाया। उसकी जगह कैक्टस और नागफनी के बोनसाई लगवाए। शायद पुराने डीलरों में से किसी ने साहब की पसंद का ध्यान रखा। बाहर बरामदे में तीन-चार बेंचें पड़ी थीं। आते-जाते लोग बैठ जाते। निठल्ले और शिकायती हर जगह बैठने की जगह ढूँढते हैं। नए बॉस ने ये बेंचें दूसरे दिन हटवा दीं। इससे बरामदे में टहलने वालों को सुभीता हो गया। अब बेंच नहीं तो निठल्ले नहीं। जग्गू चपरासी साहब के दरवाज़े पर कुरसी डालकर बैठता था, उसे स्टूल दिलवा दिया। चपरासी है तो चपरासी की तरह रहे। कुरसी केवल साहब के लिए होती है। इमारत के मुख्यद्वार पर स्थित अशोक पाम के पेड़ों को छँटवाया। बहुत अँधेरा कर रखा था। अब बॉस नए हैं तो अँधेरा छँटना चाहिए। उनका सिद्धांत है कि वे जहाँ जाएँ, नया उजाला आना चाहिए।
इन आमूल-चूल परिवर्तनों से ऑफिस की स्थिति में बहुत सुधार हुआ। मातहतों को लगने लगा कि कुछ बदलाव हुआ है। इन भौतिक बदलाओं के बाद बॉसने कुछ रासायनिक बदलाव किए। कुछ मान्यताप्राप्त चमचों को हटाकर नए चमचों को स्थापित किया। हालाँकि पुराने चमचे परिधि पर अभी भी हैं। अपने कक्ष में परिक्रमा देना जारी रखे हैं। पुराने दलालों, जिन्हें ससम्मान डीलर कहते हैं, उनके विकल्प तलाशे गए। इन लोगों ने ऑफिस की छवि को खराब कर रखा है। यहाँ-वहाँ बोलते रहते हैं। साहब ने अपने पुराने डीलरों को स्थान दिया। पुराने डीलरों से नए ऑफर मिले। बड़े लोग अपने पुराने मित्रों-सहायकों को नहीं भूलते। जीवन में और रखा ही क्या है?
साहब सौंदर्यप्रेमी होंगे। उन्होंने हर ऐरे-गैर मातहत का प्रवेश वर्जित कर रखा है। जब तक नहीं बुलाएँ, जाना नहीं है। एक-दो सुदर्शनाओं को ही अंदर जाने का वीजा लगा है। कोई नवागंतुका सुदर्शना हो तो उसके लिए वीजा ऑन अराइवल जैसी सुविधा है। जग्गू ने एक ऐसी ही नवागंतुका को जाने से रोक दिया था। साहब ने उसे देखा तो जग्गू को जो खुराक दी, उससे एक कंपकपी को छोड़कर उसकी सारी बीमारियाँ दूर हो गईं। आखिर, वे बैठे ही सेवा के लिए हैं। किसी योग्य मिलनार्थी को दिक्कत नहीं होनी चाहिए।
कौन कहता है कि एक चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। फोड़ सकता है, बशर्ते फोड़ने की चाहत हो। अब व्यवस्था को सुधरने से कोई नहीं रोक सकता।