नकलची नाई / गिजुभाई बधेका / काशीनाथ त्रिवेदी
एक ब्राह्मण था। उसके पड़ोस में एक नाई रहता था। नाई की आदत थी कि जो ब्राह्मण करे, वही वह भी करता था। ब्राह्मण नहाए, धोए, पूजा-पाठ करे, संध्या करे और माला फेरे, तो नाई भी वैसा ही करे। ब्राह्मण तिलक लगाए, तो नाई भी तिलक लगाए। इस तरह ब्राह्मण की नकल करके नाई ब्राह्मण को चिढ़ाया करता था। ब्राह्मण ने सोचा कि इस नकलची नाई की अक़ल कभी ठिकाने लगानी चाहिए। सोचते-विचारते दीवाली आ पहुंची। दीवाली के दिनों में भी ब्राह्मण जो कुछ, जिस तरह करता, नाई भी वही सब, उसी तरह करने लगा। ब्राह्मण ने सोचा, ‘अब कोई तरकीब करना ही होगी।’
ब्राह्मण ने अपनी स्त्री को अकेले में बुलाकर कहा, "सुनो, यह नाई रोज-रोज़ मेरी नकल करके मुझको चिढ़ाता रहता हैं। इसलिए इसकी अक़ल दुरुस्त करने के इरादे से मैंने एक तरकीब सोची है। आज शाम मैं तुमसे कहूंगा, आज हम सबको राज बारह बजे अपनी-अपनी नाक काट लेनी है और कल नई नाक के साथ दीपावली मनानी है। तुम कहना, वाह! नई नाक से दीवाली तो हम हर साल मनाते हैं। इस साल हमें बहुत मज़ा आयेगा।"
खाने के बाद रात को ब्राह्मण ने बिस्तर पर लेटे-लेटे ही ब्राह्मणी से कहा, "सुनती हो!कल दीवाली है, और हम सबको नई नाक के साथ दीवाली मनानी है। आज रात बारह बजे तुम सबकी नाक कट जायगी और कल सवेरे सबको नई
और बढ़िया नाक मिल जायगी। तुम सब इसके लिए तैयार रहना। बात समझ ली है न?"
ब्राह्मणी बोली, "बहुत अच्छा। हम सब तो तैयार ही हैं। नई नाक के साथ दीवाली मनाने में बड़ा मज़ा आयेगा।"
ब्राह्मण दिखावा तो ऐसा कर रहा था, मानो वह ब्राह्मणी से अकेले में ही सारी बात कह रहा हो, पर वह इतनी ऊंची आवाज में बोल रहा था कि नाई भी सुन सके।
नाई तो पूरा-पक्का नकलची था ही। इसलिए उसने मन-ही-मन सोचा, ‘फिकर की कोई बात नहीं। मैंने सबकुछ सुन लिया है। अगर ब्राह्मण नई नाक से दीवाली मनायेगा, तो हम भी वैसे ही मनायेंगे। ब्राह्मण को तो किसी उस्तरा मांगकर लाना होगा। लेकिन मेरे पास तो अपना बढ़िया उस्तरा है ही। कल ही धार लगवाकर लाया हूं। ब्राह्मण के मुक़ाबले मैं बहुत अच्छी तरह नाक काट सकूंगा। इसलिए ब्राह्मण के घर में सबकों जो नई नाक आयेगी, उससे मेरे घर में कहीं ज्यादा बढ़िया और अच्छी नाक आवेगी।’
सब सो गए। आधी रात होने पर ब्राह्मण जागा और खटिया में लेटे-लेटे ही उसने ब्राह्मणी से कहा, "सुनो, तुम इधर आ जाओ, इधर! मुझे तुम्हारी नाक काटनी है।"
ब्राह्मणी भी खटिया में लेटे-लेटे ही उसने ब्राह्मणी से कहा, "सुनो, तुम इधर आ जाओ, इधर! मुझे तुम्हारी नाक काटनी है।"
ब्राह्मणी भी खटिया में लेटे-लेटे ही बोली, "लो, मैं आ गई। सब नाक काट लो।"
मानो नाक कट चुकी हो, इस तरह तुरन्त ही ब्राह्मणी ‘हाय-हाय’ कहकर जोर-ज़ोर से रोने-चीखने लगी।
ब्राह्मण ने लेटे-लेटे ही कहा, "रोओ मत। मेरे पास आओ। मैं तुम्हें पट्टी बांध देता हू। सबेरे दूसरी बढ़िया नाक आ जावेगी।"
ब्राह्मणी ‘ऊं-ऊं-ऊं’ करती हुई सो गई। बाद में ब्राह्मण ने अपने बच्चों की नाक काटने का भी ऐसा ही दिखावा किया। थोड़ी देर बाद सब ‘ऊंब-ऊं-ऊं’
करते हुए चूप होकर सो गए।
अब नाई नाक काटने के लिए तैयार हुआ। उसने सोचा, ‘ब्राह्मण ने तो सबकी नाक काट ली है, अब हमें भी काट ही लेनी है।’ नाई ने अपनी पेटी में से नया तेज उस्तरा निकाला और दबे पांव अपनी घरपवाली की खाट के पास पहुंचकर बड़ी सफाई से उसकी नाक उड़ा दी। नाक कटते ही नाईन अपने बिछौने में उठ बैठी और रोने-चीखने लगी। नाई ने उसका हाथ पकड़कर कहा, "सुनो चुप हो जाओ। चुपचाप सो जाओ। लाओ, मैं तुम्हें पट्टी बांध देता हूं। सबेरे दूसरी बढ़िया नाक आ जायगी। ब्राह्मण ने अभी-अभी सबकी नाक काटी है, और वे लोग नई नाक के साथ दीवाली मनाने वाले है। हमें भी उसी तरह दीवाली मनानी चाहिए।"
नाईन की नाक से लहू बराबर बह रहा था। लेकिन अब और इलाज ही क्या था? बाद में नाई ने बड़ी सिफत से अपनी भी नाक काट ली। नाई के भी दर्द तो बहुत हुआ, पर नई नाक के साथ दीवाली मनाने के उत्साह में अपनी नाक पर पट्टी बांधकर वह भी सा गया।
बड़े तड़के ब्राह्मण ने ऊंची आवाज में ब्राह्मणी से पूछा, कहो, "सबकी नई नाक कैसी आयी है?"
सब एक साथ बोले, "बहुत बढ़िया, बहुत बढ़िया!"
ब्राह्मण ने पूछा, "किसी को कोई तकलीफ तो नहीं हुई?"
सब बोले, "नहीं, नहीं। तकलीफ कैसी? हम सब तो बहुत आराम से सोए।"
सूरज उगा। धूप चढ़ी। लेकिन नाई और नाईन के नई नाक नहीं आई। उसने यह कहकर अपने मन को समझाया कि हमने देर में नाक काटी थी, इसलिए शायद कुछ देर बाद आवेगी, और ब्राह्मण के मुकाबले अच्छी आने वाली है। इसलिए कुछ देर तो लगेगी ही!
सूरज चढ़ने लगा। पर नाई और नाईन की नाक नहीं आई। इसी बीच
राजा का सिपाही नाई को बुलाने आया। बोला, "अरे, अभी तक तुम पहुंचे क्यों नहीं? राजा साहब तो तुम्हारी बाट देख रहे हैं।"
नाई नाक-ही-नाक में बोला, "राजा साहब से कहना कि आपके नाई ने नई नाक से दीवाली मनाने के लिए नाक काट ली है, और नई नाक की बाट देखता हुआ वह लेटा है। नई नाक आने पर ही मैं आ सकूंगा।"
पर नाई के नई नाक नहीं आई। उस दिन से वह ब्राह्मण की नकल करना भूल गया।