नजरिया / पद्मजा शर्मा

Gadya Kosh से
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कॉलेज की पढ़ाई खत्म होते ही मेरा विवाह हो गया था। विवाह को तीन साल हो गए थे। एक बेटा था। एक दिन एक सहपाठी घर आया। उसकी बहन को नोट्स चाहिए थे। हम बरामदे में बातें कर रहे थे। बीता समय याद करते हुए एक घंटा कब बीत गया, पता ही नहीं चला। मैं ससुराल में हूँ इसका सचमुच मुझे भान नहीं रहा। यहाँ मुझे सब प्यार से रखते थे। खैर, मैंने उसे नोट्स दिए. वह चला गया। उसके जाते ही पति ने मुझे सख्त हिदायत दी-'आज तो यह लड़का आ गया। आगे से नहीं आना चाहिए. तुम्हारे यहाँ सब चलता होगा। हमारे यहाँ नहीं चलता। अपने दायरे में रहोगी तो सुख पाओगी, वरना ठीक नहीं होगा।'

पति की यह चेतावनी सुनकर मुझे अपने कानों पर बड़ी मुश्किल से विश्वास करना पड़ा। यह क्या, पति अपनी दोस्तों से रोज बातें करते हैं। मुझे उनके घर ले जाते हैं। तब कोई बात नहीं। मुझे ड्राइंग रूम में बिठाकर खुद उनके साथ भीतर जाकर बात करते हैं। तब कोई बात नहीं। मैं सबके बीच में क्लासमेट के साथ हँस-बोल ली तो तकलीफ हो गई. वह भी आज पहली बार। इतना भी सहन नहीं हुआ। इतना भी विश्वास नहीं मुझ पर।

इस बात से पति ही नहीं सारे ससुराल वाले ही मुझ से पूरे दिन खिंचे-खिंचे रहे। मैंने अपने पति और ससुराल वालों का यह रूप पहली बार देखा। देखा तो देखती रह गई. बाहर कुछ, भीतर कुछ और। मेरे भीतर बहुत उठा-पटक चल रही थी। मैं बहुत कुछ कहना चाह रही थी उनसे पर कह नहीं पा रही थी। मैं चुप रही। एक ही दिन में मेरे साथ ऐसा बर्ताव आखिर किया क्या है? पर किससे करूँ सवाल। मेरे भीतर अजीब-सी उथल-पुथल मची थी। रात को देर तक नींद नहीं आई. पति तो रोज की तरह कभी के सो गए थे।

मेरे भीतर के शोर के साथ ही धीरे-धीरे बाहर का शोर खिड़की से भीतर आने लगा। मैंने खिड़की से बाहर झांका। पुलिस की गाड़ी खड़ी थी। लगा किसी चोर को पकड़ा है। यह सोचकर मैंने अपने पति को जगाया। वे बाहर भागे।

पुलिस अफसर ने इनको लगभग झिड़कते हुए कहा-'देखो इसे, पहचानते हो?'

'हाँ, यह तो मेरा भाई है। क्या किया इसने? क्यों इसके बाल पकड़ रखे हैं और क्यों हो रही है इसकी पिटाई. यह कोई चोर नहीं है।' ये एक सांस में बोल गए.

तभी अफसर ने कहा, 'ए भाई, ज़रा धीरज रखो और ध्यान से सुनो। आपका भाई इसी गली की लड़की के साथ संदिग्ध अवस्था में पाया गया है। इसको कपड़े अभी पहनाए हैं। लड़की उस घर में घुसी है। (उसने एक घर की ओर इशारा करते हुए कहा) हमारा मुंह मत खुलवाओ. घाघरा ऊंचा करोगे तो आप ही नंगे दिखोगे। अबकी बार आपकी इज्जत का ख्याल करते हुए हमारी गाड़ी खाली जा रही है पर अगली बार ऐसा नहीं होगा।'

ये अपने भाई को घर लेकर आए. घर के सारे सदस्य यह नजारा देख रहे थे। डर भी रहे थे। इनके भीतर आते ही दरवाजे की कुंडी चढ़ाई. कोई कुछ नहीं बोला। बोलने को कुछ बचा ही नहीं था। रात ने जैसे खामोशी पहन ली थी। बाहर और भीतर का सारा शोर जैसे चुप्पी में उतर गया था। इन्हें काटो तो खून नहीं। ये कमरे में आए तो मुझसे नजरें नहीं मिला रहे थे।