नटखट चाची (कहानी) / अमृतलाल नागर

Gadya Kosh से
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भाई, यह तो तुम्हें भी मालूम होगा कि गलती इन्सान से ही होती है, हैवान से नहीं। और ज़रा देर के लिए यह भी समझ लो कि मैं भी एक इन्सान ही हूँ। बस, इसी वजह से मैं भी गलती कर बैठा-चाचा को चोर समझ लिया, हालाँकि इसमें ख़ता चाचीजी की ज़्यादा थी। ‘बाल-विनोद’ के होलिकाँक में उम्र जानने की तालिका निकली थी। अगर ज़रा कोशिश करो, तो तुम्हें मालूम हो जाएगा कि बीस वर्ष पहले मेरी उम्र वही थी, जो आज तुम्हारी है। पिताजी मरते समय मुझे बजाय किसी अनाथालय में दान करने के, चाचा को सौंप गए थे और चाचा साहब ने मुझे चाची के हाथों सौंप दिया। मेरे चाचा के घर आने के बाद ही चाची ने नौकर को झाड़ मारकर निकाल दिया, और मुझे तीन काम सौंपे—सवेरे उठकर मण्डी से तरकारी लाना, इसके बाद उनके गोदीवाले बच्चे को खिलाना और फिर मार खाना। ये तीनों काम मैं रोज बिना किसी हीले-हवाले के कर लिया करता था। इसी से मेरी चाची अक्सर प्रसन्न होकर मुझे बड़े प्रेम से खाने के लिए गालियाँ दिया करती थीं।

हाँ, एक काम उन्होंने मुझे और सौंपा। बात यों हुई कि एक दिन चाचीजी पड़ोस में किसी के घर पचास ताले टूटने की बात सुन आई थीं। घर आकर उन्होंने मुझसे कहा—‘रमेश तू दिन-पर-दिन बड़ा कामचोर और निखट्टू होता चलाजा रहा है। दिन-भर सिवा खेलने-कूदने और दंगा करने के तुझे और कोई भी काम नहीं। आज से रात में किताब लेकर बैठा कर। और, जो तू किसी दिन भी बारह बजे से पहले सोया, तो तेरी हड्डी-पसली तोड़ दूँगी। समझा ?’’ इसके बाद चाचीजी ने बड़ी दया करके मेरे दोनों कान अच्छी तरह हिला दिए, जिससे मैं उनकी बात अच्छी तरह समझ जाऊँ। चाचीजी फिर कहने लगीं—‘‘और सुन, ज़रा आँख खोलकर आज-कल चोरों का बड़ा हुल्लड़ है। अभी-अभी पड़ोस में सुनकर आई हूँ, किदारनाथ के घर चोरों ने पचास ताले तोड़े थे। सुना ?’’ सुन तो ख़ैर लिया, मगर एक बात समझ में न आई—आँख खोलकर पढ़ने और चोरों के हुल्लड़ में आखिर क्या सम्बन्ध था। बहरहाल, जो भी हो, उस वक्त मुझे अच्छी तरह याद है, पढ़ने-लिखने की बात तो दरकिनार रही, दिमाग चोरी की बात सोचने में उलझ गया। बहुत-सी बातें दिमाग में चक्कर काट गईं। तेल अधिक खर्च न हो, इस ख्याल से चाचीजी ने लालटेन ज़रा धीमी कर मुझे पढ़ने की आज्ञा दी।। ऐसी हालत में मेरे लिए सचमुच ही आँखें खोलकर पढ़ना बहुत ज़रूरी हो गया था। याद करना शुरू किया—‘‘सी-ए-टी—कैट माने बिल्ली—’’ चाची चारपाई पर पड़ी सुन रही थी। ज़रा घुड़क कर उन्होंने पूछा—‘‘इसके माने—’’ उनकी बात काटकर मैंने घबराई हुई आवाज़ में कहा—‘‘इसके माने चाची, सी-ए-टी—कैट माने बिल्ली, चाची।’’ मारे गुस्से के चाची चुकन्दर हो गईं। कहने लगीं—‘‘अरे, तुझे मैं मना कर रही हूँ कि इसके माने मत याद कर जो कहीं मुनुआ सुन लेगा तो रात-भर नहीं सोएगा; मगर तू ऐसा गधा है कि मानता तक नहीं।’’ क्या करता !—चुप हो रहा। मगर मन-ही-मन पढ़ते-पढ़ते धीरे-धीरे नींद आने लगी। ज़रा ऊँघ गया। पता नहीं, कब तक ऊंघता रहा। मगर एकाएक अपनी पीठ पर धमाके की आवाज़ सुन आँखें खुल गईं। एक हाथ से पीठ सहलाते हुए मैंने पढ़ना शुरू किया—‘‘एस ऊँ-ऊँ-ऊँ।’’ खोपड़ी पर खड़ी हुई चाचीजी उस समय मुझे पूरे ढाई हाथ की देवी मालूम पड़ रही थीं। पीठ पर इस कदर ज़ोर से घूँसा पड़ा था कि हड्डी-पसली तक तिलमिला गई थी। आँखों से आँसू निकल रहे थे। चाचाजी कहने लगीं—‘‘अँधे, इसीलिए तुझे पढ़ने बिठाया था ? अभी ऊपर से कोई चोर चोर—’’ हलक सूखने लगा। रोना भूल गया। सारे बदन में कंपकपी होने लगी। मेरी घिग्घी-सी बँध गई। एकाएक मार खाने और नींद खुल जाने के कारण पहले से ही चौंका हुआ था। चाची की सूरत देखकर यों ही बुखार-सा चढ़ने लगता था, और इस वक्त ऊपर से चोर की बात सुनकर मेरी हालत एकदम अजीब हो गई। डरते हुए जो ज़रा छत की तरफ निगाह दौड़ाई, तो चट चाची के पैरों से लिपट गया।

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