नटुआ दयाल, खण्ड-14 / विद्या रानी
नटुआ एक के बाद एक नया गीत गावे लगलय आरू सब्भै छवारिक सिनी झूमि-झूमि के नाचलकय। सब कुछ सम्पन्न होला के बाद जबे सभे जाबे लगलय तेॅ प्रायः सब्भे लोग दुखरन सें कहलकय, 'हे दुखरन भाय अब गुस्सा थूकी दहू, आरू नटुआ के कनियाइन के गौना करवाय के लै आनो। बितलो बातो के बिसारी द।'
दुखरन आरू नटुआ माय दुनु के भी इ बात ठीक लगे लगलय। एतनाय दिन जे बेटा के वियोग रहलय से अबे लगी रहलो छेलय कि इ जे जमो के दुआरी सें हमरो बेटा घुरी के अइलो छै से ओकरा में ओकरो कनियाइन के सत्त छै ओकरो सेनूर केरो जोर से नटुआ बचलो छै। बची गेलय डैयनी वाला बात तेॅ कमला माय छेवे करै। हुनी जबे उतना संकट सें उबारले छै तेॅ एकरा सें नय उबारतय? ज़रूरे उबारतय। गाम समाजो के बड़ो-बड़ो लोग भी सपरी के दुखरन के समझावे लगलय कि तोहें गौना लै लहू। इ रंग बिहा कत्तानी होय छै तेॅ कि कोय लड़की के
छोड़ी दै छै?
हिन्ने भागोमंती जिदे ठानी लेले छेलय कि अब कुछ नय, अब गौना होतय। ऊ बेचारी ने बारह बरस तपस्या करले छै। कहै छै कि बारह बरसो में घुरो के भाग पलटी जाय छै अबे ऊ कत्ता दिन माय कन रहतय, ओकरा आने के तैयारी करो।
दुखरन आरू नटुआ माय भी भीतरो सें तेॅ चाहिए रहलो छेलय, कैन्हें कि गेलो परान लौटलो छेलय तेॅ ओकरो सात खून माफ छेलय। ओकरा पर सभे के कहला पर ओकरा आरू बल मिली गेलय। वैं-नेॅ े ठानी लेलकय कि ठीक छै अब लगन देखी के नटुआ केरो गौना
करवैये दै छीयै।
भागोमंती ने जबे देखलकय कि माय-बाबू तैयार होय गेलो छै तेॅ खुश होय के बोललकय, 'जबे बिहा अनमुन जतरा में होलो छै, तबे गौना करे ला लगन देखे के की काम आरू सुनल्हो नय नटुआ कौन गीत गावी रहलो छेल्हौं? नय देखो पोथी आ पतरा। ऐकरो माने की छै कि बिना दिन साइत देखले हमरो गौना तोहं करवाय दहू।'
नटुआ माय बोललकी, 'धुर गाना वाना छोड़ नी आरू बिहा भी जेना होलय तेना होलय मतरकि अब जल्दिये बढ़िया रंग साइत देखी के एकरो गौना करवाय देवै। बिहा में तेॅ कुछ नय होलो छेलय मतरकि गोना में हम्में आपनो सबटा अरमान पूरा करवै। आपनो नैहरा के लोगो के बुलैवै, गीत-नेॅ ाद, भोज-भात सब करवै। भागे से एकटा तेॅ बेटा छै, से हम्में कोनो अरमान बाकी नय रहे देय ला चाहे छिये।' दुखरन सुनिये रहलो छेलय वैं-नेॅ े मुंडी हिलाय केॅ कहलकय, 'ठीके कहे छौ नटुआ माय, भगवानो के किरपा छै कि इ दिन देखै लय मिललो छै, नय तेॅ हम्में निराशे होय गेलो छेलिये। यही से बढ़िया सें सबकुछ तैयार करी के गौना करौ। ऊ लछमी छै ओकरे संग जुड़ला के कारण नटुआ बचलो छै। ओकरो माय जे छै से छै, ओकरा सें की मतलब। हम्मे आपनो आदमी के लै आनवय।'
नटुआ नेॅ भी जबे सुनलकय कि माय-बाबू गौना करै ला तैयार छै तेॅ ओकरा अमरौतिया के याद आवी गेलय। ऐह एतनाय दिनों में उ तेॅ सूखी के कांटा होय गेलो होतय। खाली कुमरपत उतारी के हम्में चललो गेलो छेलयै। एतना दिनो में तेॅ ऊ जवानो होय गेलो होतय ओकरो रूप आरू बढ़ि गेलो होतय। हे कमला माय अब हमरा सिनी केरो मिलन ही बाकी छै एकरो भार भी तोरे ऊपर छौ जौं तोहें सहाय होय जेइभौ तेॅ इ संकटो से भी हम्में उबरी जैइवय। जैय माय कमला, जय गंगा गोसाय, जय भोला बाबा, जय माता दुर्गा। सब्भै के रक्षा करिहो सब्भै के
सहाय होइहौ।
दुखरन ने जे पंडित सें दिन पुछलकय तेॅ वैं-नेॅ े एक महीना केरो दिन देलकय। अब एक्के महीना में सब तैयारी करी लेना छेलय। कनियाइनी ला लुंगा-कपड़ा, जर-जेवर, सौगात के सामान, डाला कुंडा, भोज-भात सब केरो तैयारी हुअ लागलय।
भागोमंती ने कहलकय, ' अबे हम्में जाय छियो। गौना के दस दिन पहले आवि जैयभो कैन्हें कि घरो देखना छै आरू एतना दिन रही के
की करवौ। '
माय ने कहलकय, 'रहतियै तेॅ बढ़िये होतियै मतरकि अगर ज़रूरी छौ तेॅ चल्लो जो। ज़्यादा कचकच नय करना छै जेना काम सुभीता से होय जाय ओना ही करलो जाय।'
दुखरने आपनो बेटा ला पाँचो पोशाक बनावे ला दै देलकय। नटुआ माय ने कहलकय, 'बाराती जाय ला तोरा पास भी नया कपड़ा नय छौं। तोहें आपना ला भी बढ़िया कपड़ा बनवाय ला।'
दुखरन बोललकय, 'धुर हमरा की ज़रूरत छै, आरू समधियाना कत्ते सुन्दर छै कि नया कपड़ा पिन्हीं के वहाँ जैयलो जाय, समधी सोजन छेवे नय करे।'
नटुआ कहलकय, ' नय छै तेॅ की, बढ़िया कपड़ा पिन्हला से की दिक्कत छै। संउसे गाँव समाज जैयतय, सब बढ़ियां कपड़ा पिन्हतय तेॅ तोहें नय पिन्हवो? हम्मेें तेॅ कहे छिये कि माय, दीदी सब्भै ला बढ़िया कपड़ा कीनी लेना चाहियो, आखिर गौना बिहा में नया कपड़ा नय मिलतय तेॅ कहिया मिलतय?
यही रंग सोची विचारी तर्क कुर्तक करी के सब्भै ला नया कपड़ा कीनलो गेलय। अमरौतिया ला पाँच ठो सोना के, आरू दस ठो चाँदी के जेवर कीनलो गेलय। भागोमंती के नेग ला भी झुमका कीनलो गेलय। कमला माय ने ऐन्हों दिन देलकय कि सबटा आस-अरमान पूरे लगलय। एक महीना तेॅ जल्दिये बीती गेलय आरू बारात जाय के समय आवी गेलय। फेरू शुरू होलय धूम-धाम, गाजा-बाजा, नाच-गाना, न्योता-पेहानी, सब गीत-नेॅ ाद खूब हुआ लगलय। सब्भै के बारात जाय ला कहलो गेलय।
गामों के लोगें कहलकय, 'दुखरन बाराती जाय के तैयारी करी रहलो छैं तेॅ आपनो समधियाना में भी खबर करी दही नय तेॅ उहाँ हमरा सिनी के स्वागत केना होतय।'
दुखरन कहलकय, 'कोय स्वागत केरो ज़रूरत नय छै हम्में तोरा सब के स्वागत करभों, कैन्हें कि वहाँ बात फैलला के बाद आरू दोसरो संकट आवि जैयतय तोरा सिनी जानवे करै छौ,' गाँव वाला सिनी चुप रही गेलय।
हुन्ने बारह बरस में बखरी सलोना के लोग सिनीं कत्ता बार बहुरा के जमाय वाला बात लैके घेरले छेलय।
बहुरा के पास एक्के जबाव छेलय, 'हमरा तेॅ आपने पता नय छै ऊ कहाँ चललो गेलो छै मतरकि यदि ऊ आवि जैइतय तेॅ हम्मे अपनो कौल से नय हटवो, हम्में गामो सें बाहर थोड़े छिये जे बात एक बार कही देलिहों तेॅ बात पूरा करवौं।'
गाँव वाला सिनी तेॅ निराश होइये गेलो छेलय मतरकि अबे की कहलो जावे पारै छेलय? बहुरा के जाने मारी देलो जइतय? तेॅ कि इ समस्या के समाधान होय जैइतय यही रंग समय जाय रहलो छेलय।
नटुआ जब बाराती सिनी के लै केॅ बखरी सलोना गाँव के तरफ बढ़लय तेॅ कमला माय आगू-आगू पताका लैके जाय रहलो छेलय सब्भै लोग नटुआ के साथे पाल पर चढ़ि के उड़लो जाय रहलो छेलय। सब्भै के अद्भुत नजारा देखे में आवि रहलो छेलय। उड़ते-उड़ते जब सब तुलसीपुर के मैदान में पहुँची गेलय तेॅ कमला माय ने पाल के
उतारी देलकय।
वहाँ उतरी के नटुआ नेॅ हँसी-हँसी के कहलकय, 'चूंकि लड़की वाला सिनी के खबर नय करलो गेलो छै एही ला अचानक जबे बारात पहुँचथौं तेॅ ऊ सब अचकचाय जैयतय एही से गाँवों के बाहर जे बड़ के गाछ छै ओकरे नीचां सब लोग बैठी के सुस्ताय ला। बखरी सलोना यहाँ से नजीके छै से सब लोग यहाँ आराम करी के जलखय खाय ला, पानी पीवी ला, ओकरो बाद सांझ होलो के बाद बाराती साजी के बखरी सलोना के तरफ चललो जैयतय।'
दुखरन ने तेॅ बराती के रास्ता में खाय ला जलखय आनवे करले छेलय। कचौड़ी, सूखलो तरकारी बुनिया आरू चूड़ा दही भी जेकरो जे मोन छै से खैयतय, यही ओकरो विचार छेलय। मैनमा खबासें एकठो झाड़ू लै के संउसे गाछ के नीचलका जमीनो के बोढ़ि देलकय आरू सब्भै ला बड़के पत्ता केरो आसनी आरू जलखय ला बड़ केरो पत्ता बिछाय देलकय। ओकरा तेॅ सब्भै सरंजाम मालुमे छेलय कि की खाना देना छै, की जलखय अइलौ छै। ऊ सब्भै के बढ़िया सें खिलावे ला चाही रहलो छेलय ओकरो तैयारी में तेॅ कोय कमी नय छेलय। मतरकि पत्ता बिछैला के बाद ओकरा याद अयलै कि पानी तेॅ नहिये लानले छियै। वैं-नेॅ े वाल्टी आरू रस्सी लै के पानी खोजे ला गेलय कि पानी आनी के पत्ता पर भी छींटी दीयै आरू सब्भै लोग के पिये में भी बनतय। चारो तरफ निहारला के बाद जबे ओकरा कन्हौं कुइयाँ तालाब नय देखाय पड़लय तेॅ वैं-नेॅ े कहलकय, जय कमला माय अब पानी कहाँ से लानवो, जय कमला माय अब पानी कहाँ से लानवो। पोखर जे छै तेॅ सूखले छै। कुइयां तेॅ छेवे नय करै आरू सब ठीयां बालु-बालु छै। अबे की करौं। वैं आपनो मालिक सें कहलकय, 'बलिहारी माय कमला, मालिक पानी केरो की करिहों कहीं तेॅ देखाय में नय आवी रहलो छै।'
एतना सुनथैं नटुआ ने मैया के याद करी के कहलकय, 'मैनमा! मैया के इच्छा के बिना एक ठो पत्ता नय डोलय छै। वही नाव केरो खेवेवाली छै न? यहाँ चौदह पट्टी के राज छै, एतना-एतना लोग छै आरू एकठो कुइंया नय होतय इ तेॅ नय हुअ पारे छै, यही से तोहें पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण चारों तरफ देखैं पानी तेॅ ढेरी मिलतौ।'