नटुआ दयाल, खण्ड-1 / विद्या रानी
सदा भवानी दाहिनी सम्मुख रहे गणेश,
तीन देव मिली रक्षा करे ब्रह्मा विष्णु महेश
नटुआ दयाल केरो कथा कहला सें पहिने आपनो सबटा देवी-देवता के सुमिरन करना ज़रूरी छै, केन्हेंकि बेचारा नटुआ दयाल जेना डयनी केरो चक्कर में पड़लो छै कि ओकरो जिकिर करला सें, जिकिर करे वाला के भी टोना करी दै छै।
हम्में जे कुछु कथा कहे केरो हिम्मत करी रहलो छी, सेहो माय कमला के भरोसे। देखियौ, हे कमला माय! गंगा गोंसाँय, कुलगुरू, कुलदेवी, आरू सब्भे डायनी-जोगिनी केरो बड़का ठो ओझा-बाबा भोलानाथ, माता पार्वती, तोरे-सिनी के भरोसे इ ठो कथा लिखी रहलो छी, मतर-कि है डायनी से हमरा ज़रूर बचैइहो। जय-जयकार करी के विनती करै छीये, जेना नटुआ दयाल कऽ मंतर सिखाय-सिखाय के गुनी बनाय देले छेलो, वैन्हें हमरो बनईहो।
नटुआ एतनाय सुन्दर छेलय कि जे देखै, से देखते रही जाय।
लम्बा, छरहरा, सांवरो रंगो के आकर्षक लड़का, जेकरो माथो पर भौंरा रंग कारो-कारो केश छेलय, जे घुँघराय के आरू सुन्दर बनाय दै छेलय। केशो-तेॅ खूब्बे लम्बा। जखनी वैं-नेॅ बाँसुरी बजाय छेलय, तेॅ सीधे कन्हैये जी के याद आवी जाय छेलय। जखनी कहूँ भी माँजर, ढोल, झाँझ बजे लगै, नटुआ एकदम्मे आपने नामो के सार्थक करे छेलय। झूमि के नाचै छेलय, छौड़ा रंगरसिया। ओकरो करधनी झमझम झमकै, आरू ऊ छम-छमा-छम नाचले जाय, जब तायँ कि ढोल बजवैया आरू ऊ अपने थकी के चूर-चूर नय होय जाय। एह देखे वाला के तेॅ ठठ्ठ के ठठ्ठ भीड़ लगी जाय छेलय। कमला मैया ने नटुआ के खाली रूपे नय देले छेलय, गुणों एतनाय भरी देले छेलय कि केकरो भी वें-नेॅ आपना तरफ देखे-ल विवश करी दै छेलय। नटुआ केरो बाप के नाम छेलय दुखरनमल, जे भदौरा गाँव के निवासी छेलय आरू नटुआ में ओकरो परान बसै छेलय। धन सं परिपूर्ण ओकरो घर आरू एक्केटा बेटा, कैन्हें नय बसतिये।
ऊ नटुआ अपनो रंग में डूबलो, जबे नाचे लगै, तेॅ ओकरा कुछु घियान नय रही जाय छेलय। नाचते-कूदते ऊ ढोल-बाजा केरो साथें कहाँ से कहाँ चल्लो जाय छेलय।
ऊ दिन वही होलय। जखनी ढोलकिया मौथरी फगुआ के पुआ मांगे ला ओकरो दुआरी पर अइलय, तखनी नटुआ ने आपनो माय से कहलकय-'माय पौनिया अइलो छै पुआ ल। क्षणे में जाय के पुआ नय दै दीहें, तनटा गाय-बजाय दीहें, तब्भे दीहें।'
माय कहलकय-'ठिक्के छै। मतर कि तोहं नाचभैं नेॅ तब हम्मूं देखवय। बाद में भरी सूप पुआ देवय ओकरा।'
नटुआ बोललकय-' यही-ला कहै छियो। हमरो मोन भी नाचै-
के छै। '
मौथरी नेॅ खूब झमकौआ फगुआ गैलकय। नटुआ संग ढेरी छौड़ा-सिनी नाचे लगलो छेलय। खूब रंग जमलो छेलय। आरू अपना दुआरी पर नाचला के बाद, नटुआ मौथरी के पीछू-पीछू जावे लगलो छेलय।
ओकरा की पता छेलय कि मौथरी कुछ विशेष बात सोची के ओकरा लै-जाय रहलो छै। ऊ तेॅ गाबे-बजावे में मस्त चल्लो जाय रहलो छेलय। वहाँ जखनी ओकरो बियाह केरो तामझाम हुअ लगलय तेॅ ऊ-तेॅ भौउचक् रही गेलय-' अगे माय! कहाँ से कहाँ आवी गेलिये कहाँ बियाह
हुअ लागलय? '
लड़की के माय तेॅ खुशी से नाचे लगलय। एतना सुन्दर लड़का
धनुष रंग भौं, तिरछो आँख, लकपक देह। एक नजर देखला के बाद पाप-पुण्य दुनु के हरन होय जाय छै।
असल में लड़की अमरौतिया केरो माय भौरा (बहुरा) गोढ़िन आपनो एकसरी बेटी के बियाह भै-के फिकिर करै छेलय। की संयोग, की दुर्योग होलो छेलय कि संउसे गाँव ओकरा डाइने कहै छेलय। अब डायनी केरी बेटी सें कौने बियाह करतय। एही-ला बहुरा नेॅ मौथरी से कहने छेलय कि कोय बढ़िया लड़का देखी-क लै आभो जेकरा से अमरौतिया केरो बियाह करी देवय कैन्हैकि सगरे ढोल बजाय के डैयनी केरो बेटी से बियाह के करतय। सभै तेॅ डरवे करै छै।
आरू बहुरा सच्चे-मुच्चे डाइन छै इ-तेॅ जग जाहिर होइये गेलो छै। जखनी भदौरा राज केरो सात सौ बेटी केरो दुल्हा-सिनी मरी गेलय तखनी सब्भै के बहुरे पर शक होलो छेलय। इ डायनी-नेॅ सब्भै केॅ संउसे निगली गेलय। अगर ऐकरो ऊपाय नय करलो गेलय तेॅ इ-तेॅ एक्को-ठो आदमी के नय छौड़तय। सातो सौ बेटी-सिनी के उद्धार करै-ला ज़रूरी होय गेलय कि जे डाइनी नेॅ इ काम करले छै, ओकरा बुलाय केॅ उपाय पूछलो जाय। सब्भै गाँव के लोग-सिनी एकठियाँ जमा होलय। मसूदन मडर के दुआरी पर गाँव भरी के लोग जमा छेलय। मांगन भाय के ससुर, जे बड़का ओझा छेलय, हुनका सब्भै निहोरा करलकय कि वैं कम-से-कम इ-तेॅ पता करी दौक कि के छेकै डाइन, केकरो इ काम छै? जे सात सौ दमाद एक्केबार मं मरी गेलय।
ओझा नँदृ अगर-मगर शुरू करी देलकय। उ तमाशा नय करै-ला चाहे छेलय मतर-कि जब गामो के सब्भै लोग खुशामद करै लगलय तेॅ ऊ भी तैयार होय गेलय।
पूरा ताम-झाम सजाय के जखनी ओझा नेॅ आगिन में धुमना फेंकते हुए मंतर पढ़े लगलय, तखनिये वहाँ रखलो नयका कनतरी में आग सुलगी गेलय आरू थोड़े देरो में लांगटी बहुरा जबै आवी केॅ नाचे लगलय तेॅ सब्भै तेॅ भौउचक्कें रही गेलय।
जेतनाय लोग उतने तरह के बात। ठीकै बहुरा डाइन छै कि नय, इ बातो पर जे मतभेद छेलय, उ सब्भै खत्म होय गेलै। लांगटी बहुरा नाचते जाय रहलो छेलय, आरू गिड़-गिड़ैतै जाय-'हे बाबू! हे भैया! हे ओझा जी! तोरो गोड़ लगै छियों, अब हमरा सें ऐन्हों काम नय होतों, हमरा छमा-करी दहू।'
बहुरा नाचली जाय, कानली जाय, गोड़परिया करली जाय-'ओझा जी! आपनो बान संभारो। अवह तेॅ बात खुलिये गेलय, मतरकि हम्में जे इ-रंग नाची रहलो छिये, इ हमरा अच्छा नय लगी रहलो छै। लाज आवि रहलो छै।'
ओझा नेॅ चिकरी-चिकरी केॅ कहलकय कि-' तोहें नय जाने छैं। यहाँ तोरो नचावे वाला बड़का-बड़का ओझा गुनी बैठलौ छै। तौहें इ जवार भरी में डैनपनो करभैं, तोरा-तेॅ ऐन्हों दागवो कि सब मंतर-वंतर भुतलाय जैभैं। '
गाँवो के लोग हँसै भी, आरू तुनकावे भी।
जब बहुरा खूवै काने-धूने लगलय तेॅ सब्भै के विचार होलय कि अबकि बार एकरा माफ करी देलो जाय आरू एकरा से जमाय-सिनी के जिन्दा करै के उपाय पूछी लेलो जाय।
जब बहुरा से पूछलो गेलय कि इ चौदहो पट्टी के सात सौ बेटी फेनू केना सुहागिन बनतय तेॅ वें-नेॅ कहलकय कि-'हे भाय! हमरो बेटी अमरौतिया के बियाह हुए दहु। हम्में आपने जमाय के जीभ काटी के सात सौ बेटी के सिंगार लौटाय देभों।'
ओझा जी के तेॅ ओकरो बातों पर विश्वासे नय होय छेलय मतर-कि सब्भै लोग-सिनी कहे लागलय कि-' गामो के छिकै रांड औरत, एक बार तेॅ माफ करी दहूँ। एकरा बाद इ कहियो तिरिया-चरितर चलैतय त, एकरा
बांधिये-क किल्ला में गाड़ि दिहो। '
बहुरा उहाँ से छूटी केॅ भागलि, घर गेली। लुंगा-कपड़ा पिहनी-क कोना में घुसी-क खूब कानलकी-'हे भगवान! कौउन कुबुद्धि होलो छेलय कि हम्में डैनपनो सिखलिये। यहे में अमरौतिया केरो बाबु भी चल्लो गेलय आरू आय इ गामोभरी में हमरो कोय इज्जत नय रहलो छै। केना मुँह दिखेवो, केना जीवो, केना खैयवो, केना पीवो, केना रहवो।'
आपनो परिस्थिति से बेजार बहुरा, अमरौतिया लेली भी छटपटाय छेलय-'के करतय एकरा सं बिहाय हो बाबू! सब्भै तेॅ दुश्मने छै। अब तेॅ डैयनी केरो बात परगट होला के बाद तेॅ आरू कोय नय ठाड़ा होतय। एही-ला बहुरा नेॅ मौथरी सं कहले छेलय कि-' तोहें कहीं सें एकठो लड़का उपराय केॅ लानो, जेकरा से अमरौतिया केरो चुपका वियाह करी देवय। कौन भरोसा छै। '