नटुआ दयाल, खण्ड-3 / विद्या रानी
सुग्गी कहलकय तों ठीके कहै छौ। चलो मतरकि मौथरिया ढोल खूब बढ़िया बजावे छै। '
सुग्गी आरू मैनी दुनु मौथरी के बात करते-करते आपनो घर चल्ली अइलय।
हुंऽ बहुरा मौथरी के भेजी के घर-दुआर बोढ़ै लगलो छेलय। ओकरो मोंन तेॅ प्रफुल्लित छेलय, जेना कत्ता नी धन पावी गेलो रहै। एतना सुन्दर लड़का ओकरो दमाद बनी गेलय, जेकरा पैसा कौड़ी नय छेलय। अंगना में ठन-ठुन केरो आवाज सुनि के कोठरी में नटुआ आरू अमरौतिया दुनु जगी गेलो छेलय।
अब तेॅ अमरौतिया के सोहाग होय गेलो छेलय नटुआ। ओकरा तेॅ माय केरे डैयनी वाला खिस्सा सताय रहलो छेलय कि आपने जमाय के जीभ काटी के सात सौ जमाय के जिलाय देतय। उ आपनो सोहाग पर कोय आँच नय आवे देय ला चाहे छेलय।
वें ने नटुआ सें कहलकय, -'तोहं एतनाय सुन्दर छौ कि तोरा तेॅ इ गामो में लोग नजर लगाय देथों।'
नटुआ अपनो खपसुरती पर इतराय के कहलकय-' ऐन्हों की बात! ढेरी आदमी सुन्दर छै, एकटा हम्मीं थोड़े छिये आरू तोहं की कम सुन्दर छौ अमरौतिया? तोहं तेॅ आपनो नामे जुकां सुन्दर छो, अमृत
समान छौ। '
अमरौतिया खुश होय गेलय मतरकि ओकरा तेॅ दोसरो बात कहना छेलय। उ कहलकय कि-'तोहं गामों में हिन्ने-हुन्ने नय घुमवो। दू-तेॅ ीन दिन यहाँ रही के सीधे आपनो गाँव जैइभो। इ गामो में केकरो पता नय चलना चाहियो कि तोरो यहाँ बियाह होय गेलो छौं।'
नटुआ कहलकय-' कैन्हें? जब बिहाय होइये गेलो छै तेॅ कैन्हें
नय कहबै। '
अमरौतिया बोललकय-'सब्भै हमरो माय सें डरै छै। जबे पता चलतय कि हमरो बिहाय होय गेलय तेॅ कत्ता तरह के बात उठतय यही-ल आरू तोहें कोय ओझा सें अपना-ला एकठो जंतर ज़रूर बनवाय लीहो। तोरा हमरे किरिया छौं।'
नटुआ बोललकय-'आज तॉय हमरी माय ने हमरा जंतर पिन्हावै छेलय, अब तहूँ जंतर पिन्हैभो?'
अमरौतिया बोललकय-'की करबो तोरो किस्मत ऐन्हों छौं। ऐन्ही औरत के बेटी से तोरो बिहा होय गेलो छौं कि पग-पग पर डर छै। सौ ठो दुश्मन छै हमरो माय के आरू जखनी सभै के पता चलतय कि तोहं जमाय छौ तखनिये सब मिली के तोरे पिछू पड़ी जैथौं। एही-ला कहे छियों अपनो बचाव ला जंतर ज़रूर बनवाय लीहो। अब तेॅ जेना भी तोहं हमरो जीवन साथी बनी गेलो छौ। तोरो चिन्ता तेॅ हमरा होइबे करतै।'
नटुआ बोले लागलय कि पहिने तेॅ इ बिहा के की मान्यता मिलै छै इ भी देखे के छै। हम्में तेॅ मंतर मारलो रंग मौथरी काका संग यहाँ आवी गेलिहों, आरू बिहा भी करी लेलिये, मतरकि हमरो माय-बाप जबे जानतय तेॅ की होतय तोहं समझे नय पारवो। '
अमरौतिया के आँख डबडबाय गेलय। प्रगट होय के बोललकय-'जेभी हुअ अबऽ तोहीं हमरो सभै कुछ छौ। हमरा पर धियान देभो तेॅ ज़िन्दगी खुशी से कटतय नय तेॅ रामे मालिक छै।'
नटुआ की कहतिये, जे बात सच छै से सच छै। माय बाबू एतना आसानी से एकरा तेॅ नहिये बहू मानतय। मतरकि ऐकरा कही के दुखी करना ठीक नय छै। प्रगट में बोललकय कि-'जे होतय से ठीके होतय। अब तोहं हमरा मिली जइबो इ हम्में कहाँ जाने छेलिये।'
इ रंग बात करते-करते दुनु नेॅ देखलकय कि माय उठी गेली छै। ऐंगना बुहारी रहलो छै। नटुआ बाहर आवी के बोललकय कि-'माय इ रंग बिहा करी तेॅ देलहो। हम्में करिये लेलिये, मतरकि अब की होतय। माय बाबू तेॅ खोजते ही होतय की करिये।'
बहुरा बोललकी-'पाहुना चिन्ता नय करो। घरों में ही रहो। दू-तेॅ ीन दिनों में हम्में सब इंतजाम करी लेबय आरो डाला सौगात ले के नौआ के साथ तोरा घोर भेजी देभों। हुनका सिनी तेॅ मानवे करतय फिकिर कैन्हें करे छौ।'
नटुआ अमरौतिया के साथे इ तीन दिन तांय रहलै आरू ओकरा बाद तीसरे या चौथे दिन नटुआ, नौआ आरू संदेश के साथ आपनो माय-बापो के दुआरी पर पहुँची गेलय। बहुरा नेॅ संदेश में गमकौआ चूड़ा, दही के कंतरी आरो खाजा मिठाय भी देले छेलय।
जब नटुआ नौआ के संगे दुआरी पर अइलय तेॅ ओकरो बाप दुखरन नेॅ दौगी के ओकरा आपनो करेजा से लगाय लेलकय। कहे लागलय-'कहाँ चललो गेलो छेल्हैं रे बेटा। तीन दिनो से घरो में हड़िया नय चढ़लो छौ। माय कानी-कानी के बेहाल होलो छौ। संउसे गाँव में तोरा खोजी-खोजी के हारी गेलिये।' दुखरन के आँखों सें झर-झर लोर चुव लागलो छेलय। नटुआ भी कनमुँहों होय गेलय।
संउसे भरोड़ा गाँव में हल्ला मची गेलय कि नटुआ आवी गेलय। नटुआ आबी गेलय। दुखरन के दुआरी पर ढेरी भीड़ लागी गेलय। नटुआ के साथे के छै, ओकरा सब धियान से देखे लगलय। हिन्नें बाप-बेटो के मिलन होय हुन्हें नौआ संदेश के माथा पर से उतारी के हाथ जोड़ी के खड़ा होय गेलो छेलय।
इहाँ अमरौतिया गंगा गोसाँय मनाय रहलो छेलय। 'हे कमला माय! कोय अनहोनी नय हुअ। माय-बाप सब्भै ज़्यादा गुस्सा नय करी के नटुआ के बिहाय कबूली लीये हे दुर्गामाय!'
हिन्हें नौआ कही रहलो छेलय कि-'हे मालिक! गोड़ लगी रहलो छियों आशीर्वाद दै दहू।' ऊ कहलो भी जाय छेलय आरू थर-थरैलो भी जाय छेलय।
दुखरन ने जबे आपनो बेटा के अलग करी के नौआ के देखलकय तेॅ पूछलकय, 'कन्डें सें अइलो छौ हो भाय, कौन गाँवो के वासी छौ। एतना संदेश पान खाजा-लड्डू इ सब की छै, कौनें भेजलो छौ। हमरो बेटा के साथे तोहं केना अइलो छौ सब बात साफ-साफ बतावो।'
नौआ हाथ जोड़ी के बोले लागलय, 'हे मालिक हम्में तेॅ बखरी गाँव के नौआ ठाकुर छिहौं। इ सब्भे तोरे बेटा नटुआ के बियाह के संदेश छौं। जखनी तोहं आपनो बेटा के खोजी-खोजी के हलकान होय रहलो छेल्हौ तखनी तोरो बेटा बियाह करी रहलो छेलय।'
दुखरन के तेॅ माथा ठनकी गेलय। नटुआ के माय माथा ठोके लगलय चिकरी-चिकरी के काने लगलय। लगै जेना कि घरो में कोय मरी गेलो रहे।
दुखरन गुस्सा में आवी के नौआ के पकड़ी के झकझोरे लगलय। 'कहाँ मिललो हमरो बेटा तोरा-सिनी के. हमरा सिनी तेॅ खोजतें-खोजतें हलकान होय गेलो छेलियै। कहाँ बिहा करवाय के आनी रहलो छैं?'
नौआ के साँप-छुछुंदर केरी गति होय गेलो छेलय। नय तेॅ ठहरलो जाय सके छेलय नय भागलो जाय सके छेलय। हाथ जोड़ले-जोड़ले बोललकय-'हे मालिक तोरो बेटा के बिहा बहुरा मलकायन के बेटी सें होलो छौं। परसुए तेॅ जबे हम्में बिहा करवाय के जाबे लगलियै तेॅ इ संदेश पहुँचावे के भार मलकाइन नेॅ हमरे ऊपर थोपी देले छेलय से हम्में अयलो छियौं। मलकाइन ने कहलो छौं कि हुनका माफ करी दहू आरू ऊ आपनो तरफो सें यही बिनती करी रहलो छौं।'
बहुरा केरो नाम सुनी के दुखरन तेॅ दुखरने नय। एकदम्मे अगिया बैताल होय गेलय। ओकरो वश चलतियै तेॅ ऊ नौआ के वहीं फाड़ि के सूखे ला दै देतिये, ओकरो मुंडी मोचारी देतियै, ओकरो खाल खींची के भुसो भरवाय देतियै, ओकरो हड्डी पीसी के चूर-चूर करी देतियै, ओकरो बोटी-बोटी करी के चील कौआ सिनी के खिलाय देतिहै। दुखरन के आँखो एतनाय लाल हिंगोर होय गेलो छेलै कि लगे छेलय आँखि सें खून निकली जैतै। ओकरा है तेॅ अनुमान होइये गेलो छेलय कि ओकरे बेटा के हथपकड़ा बिहाय करवाय देलो गेलो छै मतरकि बहुरा के बेटी सें बिहाय होलो छै इ सुनि के उ आपा से बाहर होय गेलय। चिकरी के बोलकय-' खबरदार लौआ, बहुरा केरो नाम नय ले। ओकरो इ हिम्मत कि वैं-नेॅ हमरो बेटा सें बिहा करी के संदेश भेजवैले छै? अरे एहनो दही लड्डू हम्में संउसे गाँव में आपने बाँटे छियै। बहुरा केरो हाथो के पानी भी लोग पीयै में डरै छै। ऐहनो छै खल बल आरू ओकरे बेटी हमरो एकलौती पुतोहू बनतय। इ हरगायं नय हुअ पारै छै।
नौआ ठाकुर केरो तेॅ बोलतीये बंद होय गेलय। फिनु हिम्मत करी के कुछ आरू बोले ला चाहे लगलय तेॅ दुखरन चिकरी के कहलकय, 'बस कुछो नय बोल भला चाहै छैं तेॅ चुपचाप भाग यहाँ सें। है अपनो दही, चूड़ा भी लेले जो नय तेॅ खलरी उतारी के बर्बाद करी देवो।'