नटुआ दयाल, खण्ड-7 / विद्या रानी
अमरौतिया बैठली हाँ हूँ करी रहलो छेलय कि ओकरा याद एैले कि घरो में लड्डू, खाजा छै। उठी के गेलय, आरू दू लड्डू एकटा खाजा एकठो छिपिया में राखीक एक गिलास पानी के साथ आनी के देलकय, 'ला भौजी खा हमरो बिहा के मिठाय।'
सोनामंती बोललकय, -'एत्ता खैयवे हे अखनी तेॅ खाइये के ऐलियै। गामों में कुछ सुनगुन तेॅ होइये रहलो छै हमरा कहे लगलय कि तोहं सब जानै छौ मतरकि बोले नय छो।'
हम्में कहलिये, 'हम्में कहाँ से जानवै माय हम्में तेॅ बाहर छेलिये मतरकि अभी जाय के जानवै की होलय केना होलय। एकटा लड्डू खाय लै छियो आरू लेले जइवे नुनु सिनी के खिलैवै।'
अमरौतिया कहलकय, 'ठीके छै भौजी ले-ले जइहो। आज कल दिन कतना उदास लगै छै भौउजी देखोनी एतनाय बेरा होय गेलय। माय नय अयलो छै तोहं नय अइतिहो तेॅ हम्में असकलले फिकिर करी-करी के मरतियै।'
सोनामंती कहलकय, 'फिकिर तेॅ होवे नेॅ करथौं इ फागुन चैत के महीना आरू पिया परदेश जेकरा मिलै छै वहीं समझे छै दरद। राति में नींन्द नय अयते होथौं हे अमरो।'
अमरौतिया की कहतिये आँखी सें लोर चुव लगलय। मनो के दुःख आरू आह आँसू बनी के निकलें लगलय, कपसी-कपसी के काने लगलय। कानते-कानते ही बोललकय, 'हे भौजी की होय जाय छै, एक्के दिनों में कि बिहा होते ऊ सब्भै से पियारा लगे-लगे छै। ओकरा बिना जीवन अंधार लगै छै।'
सोनामंती बोललकय, 'एतनाय दिनो में तोहं कत्ते होशियार होय गेलो छौ अमरो! धीरज रखो, कहै छै कि धीरज धरहु तेॅ उतरहु पारा। अबे हम्में जइभों बच्चासिनी ढन-मन करी रहलो होतय सोचे छेलिये कि चाची अइतिये तेॅ हम्में जैइतियै मतरकि लगे छै कि अखनी देर छै। फिनु अयभों।'
सोनामंती जाय ला खटिया सें उठवे करलो छेलय कि केवाड़ खट-खटाय उठलय। अमरौतिया बोललकय, 'माय आवी गेल्हों, रूको। दौड़ी के केवाड़ खोललकय। बहुरा अइली थकली मांदली आवि के खटिया पर बैठी गेली। कहलकै,' अमरो आन पानी हाथ गोड़ धोइयौ, आरू सोनामंती सें पूछे लागलय, 'तोहें कहिया अयलो हे? तोहें तेॅ यहाँ नय छेल्हो?'
सोनामंती गोड़ लागी के बोललकय, 'काल्हे अइलियै चाची, घर दुआर चार दिनो के छुटला संभारे लगलियै त, अमरो के बिहा के सुनगुन सुनलिये तेॅ चल्लो अइलिये।'
बहुरा बोललकय-'की करतियै कनियाइन जेना तेना हाथ पकड़वाय देलियै इ गामों के हाल तेॅ जानवे करै छौ। आरू हमरा तेॅ पैइसे नय छै, की करतिये।'
सोनामंती हाँ-हाँ करी के जाबे लगलय तेॅ बहुरा बोललकय, 'खाजा लड्डू देलहें अमरो कि नय?'
सोनामंती बोललकय, 'हाँ हाँ सब होय गेलो छै इ देखो नी घरो लैजाय रहलो छियों।'
बहुरा फिनु कहलकय 'अभीताँय तेॅ दुनु ठीके सें बतियाय रहलो छेलो आरू हमरा अइला पर जाबे लगलौ कैन्हें?'
अमरौतिया बोललकय, 'नय माय भौजी कखनिये सें जाय-जाय करी रहलो छेलय। तोहें अइल्हें तेॅ तनटा रूकी गेली छौ।'
बहुरा कहलकय, 'ठीकै छौ कनियाइन, जा चलली जा मतरकि एकरा देखिहो, दीन दुनिया के हिसाब किताब समझैइहो, धीरज दीहो इ जखनी मुँह अंधार करी के बैठी जाय छै नी तखनी हम्में कुछु नय कहे पारै छियै।' 'हाँ चाची अयभों।' कही के सोनामंती चल्लो गेलय।
'हिन्हें बहुरा अमरौतिया सें पुछलकय कि की रांधले छैं।'
अमरौतिया बोललकय, ' दाल-भात आरू सिम के तरकारी, आनियौ खैयभें?
बहुरा आन-खाइये लै छियै। तनटा पटैवै।
अमरौतिया खाना लै आनलकय। बहुरा खावे लगलय, खैयते-खैयते बहुरा बोललकय, 'जाने छैं आज बजारो में सब्भे तोरे बिहा के खिस्सा करै छेलय। घुराय-फुराय के पूछै ला चाहे छेलय कि केकरो बेटा सें बिहा करलहो आरू केना।'
हम्में आपनो मुँहों सें नय बतैलियै। जानै के होतय तेॅ जानवे करतय। इ दुश्मनवां सिनी नेॅ फिनु वहीं ओझा-गुनी के बात कुनमुनाय रहलो छेलय कि अबे तेॅ बहुरा के आपनो बात सिद्ध करै ला पड़तय। अब आपनो जमाय होय गेलय। '
तब अमरौतिया बोललकय-'तोहं की कहलैं?'
बहुरा कहलकय, -'हम्में की कहतिये, हमरा सें कोय सामना-सामनी नय नेॅ कही रहलो छेलय। कनफुसकी आरू जौं सामना कहवो करतय तेॅ की, यहाँ अदालत कचहरी में लोग आपनो बयान बदली रहलो छै तेॅ हमरा बदलै ला नय आवे छै? कही देवय कि हम्में नय खैयले छिये किरिया, संउसे गाय निगली जैइवय।'
अमरौतिया कुछु नय बोललकय। बहुरां खाय के हाथ थरिये में धोय लेलकय। आरू थरिया खटिया तर खिसकाय के पटाय गेलय। अमरौतिया थरिया लै के जुटठो बर्तन में राखै ला गेलय।
सांझ होय रहलो छेलय। सूरज भगवान अखनी डुबलो नय छेलय मतरकि डूबे सें पहिले केरो लालिमा हुनका पर छाय रहलो छेलय। किरणों के तेजी थोड़ो कम होय गेलो छेलय। सूरज के देखि के अमरौतिया ने मने-मन परनाम करलकय, जेना कही रहलो छेलय कि हे भगवान हमरो देखिहो।
सबटा बर्तन साफ करी के अमरौतिया उलटाय देलकय। राती नय रांधबै, दिनके भात छै, वही खाय लेबय। माय तेॅ नहिये खैयते अखनी, खैयला के बाद माय अकसर नहियें खाय छै।
ओसरा पर अइले अमरौतिया तेॅ देखलकय कि माय तेॅ ठररो फोड़ि रहलो छै। सही सांझ सुती गेलय माय। अमरौतिया दीया-बाती करी लेलकय आरू अपनो बिछौना पर चुपचाप बैठी गेलय। अखनी सें रात भर अमरौतिया नटुआ केरो याद में ऊख-विख करी के समय काटतय। इ बिहा सें ओकरा यही सौगात मिललो छै। नै कहै लायक, नै सहै लायक बिहा केरो पीड़ा।
नटुआ के धीरे-धीरे सबटा खिस्सा मालूम होय गेलो छेलय। यहू कि ओकरा खतरा छै। आरू यहू कि जखनी तक बखरी सलोना गाँव के लोग ओझा नय बुलवैले छै। तखनिये तक ऊ बचलो छै। जेन्हैं ऊ बात उठतय आरू गाँव वाला लोगसिनी जुटतै तखनिये ओकरो खोज होतय। अमरौतिया केरी माय तेॅ आपनो जान बचाय ला हमरो जीभ काटिये देतय। मतरकि अमरौतिया के जीवन अंधार होय जैइतय। हमरो बाप माय के बुढ़ापा के सहारा खत्म होय जैयतय। यहै चिन्ता में ऊ अनमनो रहै छेलय। सब नाच गाना भुलाय गेलो छेलय आरू मन मंझान करले रहे छेलय। माय बाप कतनो फुसलावै-बहलावै, पहलका रंग बात करवावे के कोशिश करै तेॅ नटुआ नय बोलै। सोचै छेलय नटुआ कि अब हम्में बच्चा नहीं रही गेलो छियै। हमरो अप्सरा रंग सुन्दरी कनियाइन वहाँ हमरो यादो में तड़पी रहलो छै। हम्में अलगे बेचैन छी, दुनिया केरो कुछु नय सुहाय छै। अरे बिहा गौना में साल दू सालो के अंतर तेॅ होइबे करै छै। मतरकि इ बेचैनी के कारण दोसरो छै। एक तरफ निस्कलुष प्रेम जे संयोगवश पति-पत्नी बनी गेला के बाद उत्पन्न होलो छेलय। आरू दोसरो तरफ जीभ काटै के डर, मौत के डर। दुर्योग तेॅ इहो छेलय कि जे निष्कलुष प्रेम के श्रोत छेलय वहीं मौत के डर के भी श्रोत छेलय माने कि एक्के आदमी के चलते जीवन में प्रेम अइलय आरू ओकरा साथे साथ जीभ काटे के डर भी।
असमंजस में परान होय गेलो छेलय। सोचै छेलय नटुआ कि बाबू तेॅ कहै छै कि ऊ गाँव नय जा, ऊ लड़की के भूली जा। हम्में तोरो दोसरो बिहा करवाय देबो, मतरकि ओकरा छोड़ी के दोसरे बिहा करवाइये देतय तइयो हम्में बहुरा के जमाय छियै, इ बात कटी जइतय की? आरू जब हम्में ओकरो जमाय छियै तब हमे जाँऊ चाहे नय जाँव, हमरो जीभ कटवे करतय। यही से नय जाना कोय उपाय छै? नय गेला पर मानि ला हम्में तेॅ दोसरो बिहा करी लेबय आरू सुखो सें रहे लागवय मतरकि अमरौतिया तेॅ बिना कोय गलती के तपस्या करते रहतय आरू जखनी जीभ काटी देलो जइतय तखनी हमरो दोसरकी कनियाइन भी रांड होय जइतय। एकरा सें हम्मे दू-दू कनियाइन के दुःख दै वाला होय जइबो। से बखरी सलोना नय जाना या अमरौतिया के भुलाय जाना उपाय नय छै। इ डाइनपनो से मुक्ति पावे के उपाय तेॅ कोय बड़का गुणवंत ओझा सें ही जानलो जाय पारै छै। नटुआ सोचलकय कि मैनमा खबास सें पूछै छियै आपनो मनो के बात देखियै की कहै छै।