नटुआ दयाल, खण्ड-8 / विद्या रानी

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एक रात मैनमा के लै केॅ नटुआ कोठा पर चललो गेलय आरू आपनो जिनगी के जेतनाय पेंच वें समझी रहलो छेलय, सबटा खोली के बताय देलकय आरू पूछलकय, 'डाइन के किरिया से बचे ला कौउन उपाय छै रे मैनमा? तोहें कुछ जाने छैं कैन्हें कि अब तेॅ वह उपाय ज़रूरी छै आरू कोय रास्ता नय छै।'

मैनमा बोललकय, 'नटुआ भाय हम्में तेॅ कोय ओझा-गुनी के नय जाने छियै मतरकि तोरो समस्या केरो हल इ टुटपुंजिया ओझा सिनी के पास नय हौतय। एक तेॅ ऊ खलबल डाइन, दोसरो गाँव भरी सें दुश्मनी। एकरो उपाय तेॅ कोय बड़का ओझा के पास ही होतय जाने छैं। हम्में सुनले छियै कि तिरिया राज कामरू कामाख्या में बड़का-बड़का ओझा सिनी रहै छै। उहाँ अगर तोहें चल्लो जैयभो तेॅ तोरा उपाय मिली जइथौं।'

'अरे मैनमा कामरू कामाख्या तेॅ बड्डी दूर छै रे वहाँ केना जइवय।'

नटुआ बोललके.

मैनमा नेॅ जबाव देलकय, ' न जैइभो तेॅ समय के इंतजार करौ। जखनी जीभ कटतौं तखनी मरी जइहो मरना तेॅ एक नेॅ एक दिन

छेवे करै। '

नटुआ कहलकय, 'ठीक कहै छैं मैनमा हम्में सोचे छियौ। कामरू कामख्या ही चललो जाय छी। जब तॉय बखरी सलोना के सब्भे टा लोग हमरो बिहा के बारे में जानी के कुछु करतय, ताब तॉय हम्में यहाँ सें फुर्र होय जइवय। वहाँ कुशल गुणवंत ओझा सें उपायो सीखी लेवय आरू ऊ देश घुमियो लेवय।'

मैनमा बोललकय, 'आबन अयल्हो रास्ता पर। हम्में दुनु टिकट के पैसा लै के चुपचाप भागवय। माय बाबू के कहभो तेॅ हुनका सिनी काने लागथौं आरू जाय के काम नय हुआ पारतै। से खाली पैसे टा लैक निकलो। गरमी के तेॅ दिन छै। चैत वैशाख के महीना रजाई कम्बल केरो तेॅ ज़रूरते नय छय।'

यहे ले दुनु सोची विचारी के जाय के बात तय करी लेलकय। उ समय आजको रंग कत्ते नी रेलगाड़ी नय चलै छेलय। यहाँ से कटिहार जाय ला, जहाज घाट में नावो पर चढ़ि के गंगा पार करै छेलय। आरू इ छोटी लाइन केरो गाड़ी पकड़ी के बड़ी दिनों में तिरिया राज पहुँचे पारे छेलय। बड़ी कठिन जातरा होय छेलय कामाख्या केरो। नटुआ आरू मैनमा दुनु वहाँ जाय ला जे सोची विचारी रहे छेलय से हमेशा साथे साथ घुमे छेलय। माय-बाबू सोचे छेलय कि मैनमा नटुआ के मोन बहलावे छै ठीके छै मोन तेॅ बटरावे ला नेॅ पड़तय।

एहे रंग दिन जाय रहलो छेलय कि एक दिन नटुआ आरू मैनमा दुनु गायब होय गेलय। दुखरन ने खूब खोजी-खोजी केॅ काने लगलय, दूर-दूर तक खोजवैलकै, बहुरा कन भी आदमी भेजलकय, मतरकि नटुआ-सिनी के नय मिलना छेलय तेॅ नय मिललय। दुखरन आरू ओकरो कनियाइन दुनु बेटा के वियोग में पागल हुअ लगलय। गाँव वाला सिनी समझाय-समझाय के हारी गेलय आसरा दै छेलय कि देखो नटुआ ओतनाय बुद्धु नय छै कि कन्हौं चल्लो जइतय ज़रूर कोय कारणो सें गेलो छै फिकिर नय करौ आविये जइथौं। मतरकि जेकरा ऊपर दुख पड़ै छै वही नेॅ बूझे छै, 'जाके पॉव नेॅ फटै वेवाई से की जानै पीर पराई.' नटुआ केरो माय बापो के दुख पहाड़ो रंग होय गेलो छेलय, के काटतिये के बॉटतिये। केन्हौं करी के दिन जाय रहलो छेलय। गाँव भरी के लोग ओकरा शान्ति रखैला समझावे ला आवै छेलय। दुखरन बोले छेलय कि ऐन्हों बेटा सें तेॅ निपुत्तर रहना ठीक छै।

बड़ा-बुजुर्ग बोले छेलय कि एना नय बोलो दुखरन। ओकरो भी तेॅ जान साँसत में पड़लो छै, यही ला नी भागलो-भागलो फिरै छै। एक नेॅ एक दिन अइवे करथौं। नटुआ-माय तेॅ छटपटाय-छटपटाय के खाली कुलदेवी सं-गुहार करै छेलय छाती पीटी-पीटी के काने छेलय दुनु जीव के परान विकल छेलय।

हुंड नटुआ मैनमा संग जे तिरिया राज जाय रहलो छेलय तेॅ रास्ता तेॅ बड़ा कठिन छेलय। मतरकि जबे ठानि लेले छेलय तेॅ ठानिये लेले छेलय, नाव, जहाज, गाड़ी, पैदल चलते, थकते जब कामरू कामाख्या पहुँचलय उ जग्घो सें पहिने एकठो नदी अइले। ऊ नदी के पार करे ला नाव पकड़ना छेलय। दुनु नावो पर बैठी के ऊ पार जावे लगलय तेॅ मैनमा नाव वाला सें पुछलकय, ' हे हो माय इ कौन नदी छै? गंगा तेॅ नय लगे छै।

नाव वाला बोललकय, 'इ ब्रह्मपुत्रा छै आरो नदी नय नद छै मानो कि पुरूष नदी।'

नटुआ तेॅ अचंभित होय गेलय। पुरूष नदी भी होय छै ऊ जानबे नय करै छेलय बोललकय तहीं सें देखी नेॅ रहलो छैं मैनमा।

एकरो पाट कत्ता चौड़ा छै आरू लहरो एना चली रहलो छै जेना उमताय गेलो रहे।

मैनमा देखलको ठीके कहे छै। ऐत्ता चौड़ा पाट बाला नदी, जेकरो किनारे देखी रहलो छिये नारियल, सुपाड़ी आरू बड़का-बड़का कत्तानी गाछ। चारो तरफ छै हरा भरा आरू आदमी सिनी भी गोरो-गोरो सुन्दर-सुन्दर। वैं-नेॅ े तेॅ खाली कोसी आरू गंगा नदी देखले छेलय जेकरा में गंगा तेॅ ज्यादातर शांत बहै छेलय। कोसी नदी कहियो-कहियो हड़बड़ाय के बहै छेलय जेना अगिया वैताल होय गेलो हुआ, मतरकि इ ब्रह्मपुत्रा तेॅ आपनो विशालता में मनो के मोही रहलो छै आरू लगै छै कि तिरिया राज के घेरी के सुरक्षितो करै के भार ओकरा पर छै। ब्रह्मपुत्रा पार करी के जखनी दुनु जाबे लगलय तेॅ सड़क आरू सड़क पार करला पर देखै छै बड़का-बड़का पहाड़, ऊँचो। गजब बनावट छै तिरिया राज के दुनु कामाख्या मंदिर के पता पूछी के हुन्ने जावे लगलो। वहाँ जाय के देखलको कि यहो तेॅ पहाड़ छै आरू चढ़े के कोय साधने नय, पैदले जाय ला पड़तय तेॅ दुनु पैदले जावे लगलय। दु-तेॅ ीन चक्कर चढ़ला के बाद देखलकय नटुआ नेॅ कि तरह-तेॅ रह के साधु, पंडित, ओझा-सिनी वहाँ पहुँचलो छै। जगह-जगह पर साधना होय रहलो छै। एकरा तेॅ ऐन्हों आदमी केरो ही खोज छेलय। जेकरा से कुछु सीखे, मतरकि कामरू राज के मुख्य जगह कामाख्या मंदिर पहुँची के, बीच रास्ता में नय। दुनु भुखलो-पियासलो चढ़ते गेलय एक-एक अजूबा देखले गेलय। देखलकय नटुआ कि एकगो कुंइयां में सब्भै लोग झांकी रहलो छै। ओकरो भी मोन होलय कि देखियो की छिकै। देखलकय तेॅ दुनु के मोन धक सें रही गेलय। देखलकय तेॅ आँखि पर विश्वास नय होय रहलो छेलय। ऊ कुइयाँ सुखलो छेलय और ओकरो अंदर एकठो जटा-जूट धारी आदमी दीया जलाय के कोय मंत्रा के साधना करी रहलो छेलय। दुनु नं एक दोसरो के मुँह देखलको आरू वहाँ सें भागी के ऊपर मंदिर तक चढ़ै लगलो। इ दुनु के नया आदमी देखी के एकठो पंडित केरो गुमाश्ता ओकरासिनी के साथे लगी गेलय आरू पूछे लगलय कि तोहं सिनी के छौ, कथी ला अयलो छौ, कहाँ जाना छौं। नटुआ तेॅ गामो देहातो के

सीधा आदमी सीधे-सीधे कही देलकय, 'हमरासिनी इहाँ कुछ देखेला आरू कुछु सीखैला अयलो छी।'

गुमाश्ता बोललकय, 'कहो तो एकठो बढ़िया घर दिखा दे जहाँ रहने के लिए भी मिलेगा और सीखने के लिए भी।'

नटुआ आरू मैनमा दुनु एक दोसरा के मुँह देखे लगलो। की करौं की नय करौं फिनु दोसरो देश में केकरो नेॅ केकरो पर विश्वास करैला ही पड़तय इ सोची के दुनु ऊ गुमाश्ता संग चललो गेलय। वैं-नेॅ एकठो खूब बढ़िया घोर, जे पहाड़ो पर रंगलो टीपलो बनलो छेलय, वहाँ लै गेलय आरू ओकरा सिनी के रहे-सहे के इंतजाम करी देलकय। ऊ घरो में सात बहिन रहै छेलय आरू सातो एकसे बढ़ी केॅ एक मंतरिया। एकठो नेॅ फुसलाय के कहलक कि क्या सीखने आये हो हम तुमलोगों को सब कुछ सिखा देंगे।

एकरा सिनी ला एकरा से बढ़िया आरू की होतिये कि रहना, खाना, सीखना सब एक्के जगह आरू पैइसो भी बहुत ज़्यादा नय दुनु रहे लगलो। कुछु दिन सिखाय पढ़ाय के साते बहिने एक नया खेल शुरू करलकय। ओकर मैनमा ओतना अच्छा नय लगे छेलय आरू नटुआ ओतनाय अच्छा लगे छेलय। उ सिनी मिली के पारी बांधि लेले छेलय। जे बहिन दिन में सिखावे छेलय वही बहिन राति में ओकरा आपने लाल-लाल बिछौना पर सुतावे छेलय आरू ओकरा साथे काम क्रीड़ा करे छेलय। मैनमा वहीं कन्हौं घुसी के रहे छेलय। आरू नटुआ के रूपो पर तेॅ सातो बहिन लोभाय गेलो छेलय। इ दुनु केरो ऐन्हों मति मारी देने छेलय कि कुछु यादे नय रहलय कि हमें के छियै, कथी ला अइलो छिये, आरू की करना छै। एकदम्मे भेंड़ा बनाय के राखि लेले छेलय। एकठो कठपुतली, जे सातो बहिन सिनी ने सिखाय छेलय से-से करै सीखै आरू जेजे करवाय छेलय से-से करै छेलय।

यही रंग दिन जाय लगलय, कामाख्या के पहाड़ो पर इ रंग कत्तानी लोग अलग-अलग तंत्रा साधना में लगलो रहे छेलय, साधु सन्यासी आरू मंतरिया सिनी के तेॅ भीड़। मंदिर के गर्भगृह सें लै के संउसे परिसर में जगह-जगह अलग-अलग रंग केरो साधु मिलथियों। कतानी, बकरा, पाठा, भैंसा सबके बलि पड़तियौं मने कि संउसे वातावरणे लगे छेलय जेना मंतर मारलो छै। मतर कि वहाँ केरो वातावरण एतनाय पवित्रा लगे कि मैनमा और नटुआ के मोन करे कि ऊ वहीं रही जाय, वहीं काम करे। उ सातो बहिन इ दुनु के पूजा करे के बहाने सब ठींया घुमाय छेलय। पूजा पाठ करवाय छेलय आरू एकदम्म आपनो वशो में राखै छेलय। इ रंग करते-करते केतना दिन बितले यहो दुनु के समझो में नय आवि रहलो छेलय।

एक दिन दुनु असकरे एकांतो में बैठलो गप करै छेलय तेॅ नटुआ ने कहलकय, 'मैनमा तोरा कत्ता मंतर याद होलौ आरू की-की सिखलैं।' मैनमा कहलकय, -'धौ मालिक हम्में तेॅ राति सीखी लै छियौं आरू भोरे भुलाय जाय छियौं। तोरो की हाल छौं।'

नटुआ कहलकय, 'हम्में तेॅ सीखिये रहलो छिये आरू कत्ता दिन सीखे ला पड़तय नय जाने छिये। मतरकि इनका सिनी बहुत बढ़िया छै। सोच, एतना बढ़िया सें राखि के खिलाय-पिलाय करी गुनो सिखाना कोय खेल बात तेॅ नहिये नी छै।'