नदियाँ हमारी जीवन्त देवता / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ऋग्वेद के प्रथम मंडल की दो ऋचाएँ है-

मधु वाता ऋतायते मधुं क्षरन्ति सिन्धवः ।

माध्वीर्नः सन्त्वोषधीः॥6॥

मधु नक्तमुतोषसो मधुमत्पार्थिवं रजः ।

मधु द्यौरस्तु नः पिता ॥7॥

मधुमय वायु संचरण करें। नदियों में मधुर जल प्रवाहित हो, हमारी समस्त औषधियाँ मधुरता से परिपूर्ण हों। ऊषा और रात्रि हमारे लिए मधुर हों। पृथिवी पर माधुर्य हो,पिता तुल्य आकाश मधुरता से परिपूरित हो। इतने पुराने अपौरुषेय ग्रंथ में आगे की ऋचाओं में और भी विस्तार दिया गया है। यदि हम गम्भीरता से विचार करें, तो मधुर वायु और मधुर जल पूरे माधुर्य का मूल उत्स है।

नदियाँ निर्मल जल से भरी होंगी, हरी-भरी तरु-छटा होगी। इन्हीं की मधुरता पर रात -दिन , आकाश-पृथिवी सबकी मधुरता अवलंबित है। नदी और वृक्षों का अहि-कुण्डलिनी सम्बन्ध है, जिस प्रकार सर्प और उसकी कुंडली का अटूट सम्बन्ध होता है। नदियों और वृक्षों का एकात्म सम्बन्ध है- गर्भनाल की तरह। नदियाँ वृक्षों की रक्तवाहिकाएँ हैं, प्राणिमात्र की प्राणवायु हैं। नदियों की निर्मलता जड़-चेतन सबके जीवन की धड़कन है,वनस्पति और पर्यावरण के अस्तित्व का आधार है। नदियाँ हमारी जीवन्त देवता हैं। इसका सबसे बड़ा प्रमाण है- हमारी नदियों के साथ विकसित संस्कृति। अप्रमेय का नदी केन्द्रित हाइकु -संग्रह नदियों के अस्तित्व को बचाने के लिए केवल संग्रह नहीं, बल्कि मानव मात्र के लिए उद्बोधन है। विश्व के चुने हुए रचनाकारों का नदी विषयक यह संग्रह इस विषय पर हाइकु- जगत् का प्रथम प्रयास है।