नदीम का बेसुरापन / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 02 नवम्बर 2013
गुलशन कुमार ने नदीम-श्रवण को अवसर दिए। उनके रचे गानों की लोकप्रियता के लिए सौ जतन किए और 'आशिकी' से उनकी सफलता की यात्रा शुरू हुई तथा एक दशक तक उन्होंने सभी स्थापित संगीतकारों को घर बैठा दिया। शिखर दिनों में नदीम का एक प्रायवेट एलबम असफल हो गया और उसे लगा कि गुलशन ने उसके लिए यथेष्ठ प्रयास नहीं किए। अपनी सफलता के नशे में चूर व्यक्ति अपनी कमतरी को कभी समझ नहीं पाता। उन दोनों में विवाद हुआ।
12 अगस्त 1997 को अपराध संगठन द्वारा गुलशन का दिनदहाड़े कत्ल कर दिया गया। इस कत्ल की तथाकथित सुपारी नदीम तथा टिप्स संगीत के मालिक ने दी थी। टिप्स के मालिक तोरानी सबूत के अभाव में बाइज्जत बरी हो गए और शायद नदीम भी हो जाते परंतु वे लंदन चले गए और परोक्ष रूप से उन्होंने पुलिस व न्याय प्रक्रिया पर संदेह प्रकट किया। विगत 16 वर्षों से वे लंदन में हैं। आज भी उनके संदेह जस के तस हैं। अपनी इस नादानी के कारण उन्होंने अपना वतन छोड़ दिया। शिखर पर पहुंचा नाम नीचे गिर गया। आश्चर्य यह है कि 16 वर्ष से विदेश में एक साधारण आदमी का जीवन ढोते हुए भी उन्होंने अपने पूर्वाग्रह नहीं त्यागे। इस तरह की स्वयं को नष्ट करने वाली जिद तथा अपनी प्रतिभा पर अहंकार ने उन्हें यह दिन दिखाए। भारत के संगीत क्षेत्र में सफलता पाने का यह अर्थ नहीं कि विदेश में आप पूजे जाएंगे। भारत एकमात्र देश है जहां बहुत आसानी से आदमी स्टार स्टेटस पा लेता है। विदेशों में यह खेल मुश्किल है।
उन्होंने आज तक अपना बड़बोलापन नहीं छोड़ा है। उन्होंने किसी से कहा कि उन्हें ए.आर. रहमान से अधिक धन मिलना चाहिए और रहमान को संगीतकार के बजाय वे मात्र टेक्निशियन कह रहे हैं। ए.आर. रहमान को ऑस्कर मिला है और उन्होंने अनेक विदेशी फिल्मों में पाश्र्व संगीत भी दिया है। अपने शिखर दिनों में भी नदीम पाश्र्व संगीत क्षेत्र में कमजोर थे। इसी तर्ज पर उनका दावा है कि उनके पास अपनी बेगुनाही के 219 सबूत हैं। इतना प्रबल पक्ष होते हुए भी वे भारत नहीं आ रहे हैं क्योंकि उन्हें भारतीय व्यवस्था पर यकीन नहीं है। इस तरह की मानसिकता के साथ उनका लंदन या दुबई में रहना ही ठीक है। आज उन्हें सख्त अफसोस है कि वे अपने बूढ़े माता-पिता की सेवा नहीं कर पा रहे हैं। नदीम उन्हें भी लंदन बुलाकर उनकी खिदमत कर सकते हैं। आजकल कुछ निर्माता नदीम से संपर्क में हैं और उसकी वापसी के लिए बेकरार हैं। गुजश्ता सालों में उनकी संचार माध्यमों के इस्तेमाल से कुछ भारतीय फिल्में की थीं परंतु नदीम-श्रवण का जादू समाप्त हो गया है। वे सरेआम अपनी घर आने की बेकरारी की बात करते हैं, जिसकी तह में यह तथ्य हो सकता है कि वे लंदन में गुमनाम जिंदगी से तंग आ गए हैं।
उन्हें देश नहीं, उनकी शिखर दिनों की लोकप्रियता और स्टार स्टेटस बुला रही है। लोकप्रियता का जायका कभी छूटता नहीं है। प्रशंसक एक ऐसी हकीकत है जिसके बिना कोई सितारा, सितारा नहीं और हम अपनी ही हस्ती से बेखबर हैं और बेवजह अपनी दीवानगी का प्रदर्शन करते हैं। यह हमारी दीवानगी ही है कि गर्दिश में धूल खाने वाले सितारा हो गए हैं। कितनी आसानी से हम सितारों और नेताओं पर यकीन कर लेते हैं। नदीम को अपने प्रसिद्ध नदीम होने का झूठा अहंकार डुबा गया। उसे लगा कि हर देश की जमीन उसके कदमों का इंतजार कर रही है। अपने बारे में इस तरह के अफसानों पर यकीन करने के कारण अनेक लोगों को कष्ट होता है।
अनेक लोग तमाशबीन भीड़ को अपना परम भक्त मान लेने की भूूल कर लेते हैं। नदीम ने विदेश में बैठकर देश की बेईमान व्यवस्था की बात दोहरा कर अपने अनेक दुश्मन बना लिए हैं। एक प्रतिभाशाली व्यक्ति का अपनी जिद का शिकार होना दुखद है। यह भी जानना चाहिए कि 16 वर्ष तक लंदन जैसे महंगे शहर में उनका खर्च किसने दिया या भारत की उनकी बचत लंदन कैसे पहुंची या उन्हें दुबई से धनराशि मिली?