नदी की सैर / सुधा भार्गव
बरसात का मौसम था। टप--टपाटप बूंदें गिरने लगीं। पेड़ पर बैठे चिड़ा-चिड़ी को यह बड़ा अच्छा लग रहा था। पर कुछ देर में चिड़िया को ठंड लगने लगी। चिड़ा ने उसे अपने पंखों के नीचे दुबका लिया।
पेड़ के नीचे बहती नदी में कागज की नाव लहरों के साथ उछलकूद मचाए हुए थी। चिड़ा का मन चंचल हो उठा।
बोला -चल प्यारी चिड़िया ,नाव में बैठकर नदी की सैर करें।
-नदी की सैर ! मुझे तो कंपकंपी छूट रही है और तुझे सैर की पड़ी है।
-तू नहीं जाएगी तो मैं भी नहीं जाऊंगा। चल न ---बड़ा मजा आयेगा। चिड़ा ने उसे राजी करने की कोशिश की।
चिड़िया उसका जी नहीं दुखाना चाहती थे इसलिए उसके साथ उड़ चली। दोनों नाव में बैठ गए। लेकिन यह क्या--नाव तो डावांडोल होने लगी। चिड़िया घबरा गई -चिड़ा --चिड़ा मैं तो डूब जाऊँगी।
-डूबेगी कैसे ?मैं तुझे डूबने ही नहीं दूंगा।
चिड़िया में थोड़ी हिम्मत आई। हवा का रुख जिधर होता नाव उधर ही चल देती। एक बार तो लहर से नाव को ऐसा झटका लगा कि चिड़िया गिरते -गिरते बची।
वह चिल्लाई -चिड़ा कुछ करो --नाव पलट जाएगी।
नाव के आगे चिड़ा को पीपल के पत्ते पड़े दिखाई दिये। उसने अपनी चोंच से दो उठा लिए। एक चिड़िया को पकड़ा दिया और दूसरा अपने पास रखा।
बोला -इसे अपने पंजे में फंसा ले और चप्पू की तरह पानी काट। मैं नाव के आगे के हिस्से पर बैठता हूँ और तू पीछे के हिस्से पर बैठ। दोनों चप्पू चलाएँगे तो नाव नाक की सीध में चलती चली जाएगी।
चिड़ा की बात सच ही निकली। चिड़िया स्नेह से बोली -तू तो बड़ा चतुर है।
चिड़ा अपनी तारीफ सुनकर फूल गया।
नाव किनारे से बहुत दूर हो गई। चारों तरफ पानी ही पानी -दोनों की आँखें अचरज से फैल गईं। चिड़िया ने अपने पंजों के नीचे गीलापन महसूस किया। छूकर देखा -नाव गीली हो गई है।
परेशान सी बोली -हमारी नाव में किसी भी समय पानी भर सकता है ,फिर तो इसके तले में बड़ा सा छेद हो जाएगा। उसमें से हम निकालकर नदी में समा जाएंगे।
-सब डूब जाएँ पर हम नहीं डूबेंगे। डूबने के लिए पानी कम पड़ जाएगा।
-मुसीबत के समय तुझे मज़ाक सूझ रहा है !
-अच्छा ,तुझे एक जादू दिखाता हूँ।
-ओह ,तो तू जादूगर भी है।
-कुछ भी समझ ,देख मेरा जादू !
-चिड़ा ने अपने हाथ का पत्ता नाव के आगे डाल दिया।
-अरे नाव हिलने लगी ,पानी कैसे कटेगा । चप्पू को तो पानी में डाल दिया। चिड़िया तो चिल्लाती रह गई और चिड़ा ने पलक झपकते ही उसके पंजे से दूसरा पत्ता भी झपट कर पहले पत्ते के ऊपर सावधानी से रख दिया।
-जल्दी से कूद। पत्तों पर बैठ जा। अब तू पानी के साथ बहती चली जाएगी। आनाकानी न कर।
-अरे वाह !तूने तो मेरे लिए पानी का जहाज बना दिया। लेकिन तुझे छोड्कर नहीं जाऊँ।
-देर मत कर। और हाँ --किनारा देखते ही इस जहाज को छोड़ देना।
-किनारे तक कैसे जाऊँगी ?
-लो सुन लो ---थोड़ा आराम क्या मिल गया ,चाल ही बदल गई। उड़ना ही भूल गई ---तेरे पंख किस मर्ज की दवा हैं।
-लो मैं चली पर तेरी चिंता मुझे हरदम सताएगी। तुझे कूछ हो गया तो ---। आँखों में चिड़िया पानी भर लाई।
-मुझे कुछ नहीं होगा। जादूगर हूँ न !तू जहां कहीं भी होगी ,ढूँढ निकालूँगा।
-चिड़िया उड़कर पत्ते पर बैठ गई।।
अपने जहाज से वह चिल्लाई --चीं---चीं (जल्दी आना )
-चिड़ा बोला -चीं --चीं (जल्दी आऊँगा )अपना ध्यान रखना।
चिड़िया के जाने के बाद चिड़ा ने देखा -नाव के पास ही खूबसूरत सी लाल -नीली मछली तैर रही है। उसने उससे विनती की --मछली बहन मुझे नदी पार करा दो।
-मैं नदी पार तो करा दूँगी पर बीच -बीच में डुबकी लगाना मेरी आदत है। मछली ने आँखें मटकाईं।
-तुम डुबकी लगाओ, कौन मना करता है !
-तुम बह गए तो--।
-मैं पानी में बह नहीं सकता ,कलाबाजी जो जानता हूँ।
-कौन सी कलाबाजी !
-अभी क्यों बताऊँ !डुबकी लगाते समय खुद देख लेना।
-ठीक है , बैठ जाओ मेरी पीठ पर। लेकिन कुछ उल्टा -पूलता हो गया तो चिड़िया से कह देना -मुझे दोष न दे।
मछली चिड़ा की कलाबाजी देखने को उतावली थी। जैसे ही चिड़ा उसकी पीठ पर बैठा उसने तो डुबकी ले ली। चिड़ा ज़ोर से उछला और नदी से पाँच फीट की ऊंचाई पर गोलाई में चक्कर काटने लगा। मछली को शैतानी सूझी। जिस जगह उसने डुबकी ली वहाँ प्रकट नहीं हूई बल्कि उससे कूछ दूरी पर पानी की बूंदें झाड़ते हुये अपना सिर पानी से बाहर निकाला। चिड़ा की पैनी नजर से वह बच न सकी। वह धम्म से उसकी पीठ पर आन धमका। मछली चौंक पड़ी। वह तो चिड़ा को चौंकाना चाहती थी मगर यहाँ तो उल्टा ही हो गया।
-अरे तुम तो उड़ते -उड़ते गज़ब का फुदकते हो।
-यही तो मेरे कलाबाजी है
-मान गई तुम्हारी चतुराई लेकिन तब भी जल से तुम्हारी ज्यादा दोस्ती ठीक नहीं। मैं तो जल की रानी हूँ और तुम ठहरे नभ के राजा ! एक दूसरे से बराबरी करना ठीक नहीं। चिड़िया किनारे पहुँच चुकी थी पर उसकी नजर चिड़ा पर ही थी। वह मछली की पीठ पर बैठा पानी का आनंद ले रहा था। लहरों से उसके पंजे और पंख भीग गए थे। चिड़िया को लगा -कुछ देर मेरा चिड़ा पानी से और खिलवाड़ करता रहा तो जरूर उसे ठंड लग जाएगी।
वह बादलों की तरह गरजी -चिड़ा --बीमार होने का इरादा है क्या। सुबह उठते ही वैसे भी तेरी आं---छीं--आंक्छी शुरू हो जाती है। खो --खों करके खाँसना और शुरू कर देगा। उड़कर तुरंत मेरे पास आ जा। मैं कब से तेरा इंतजार कर रही हूँ।
अब तो चिड़ा का पानी में रुकना मुश्किल हो गया और बोला -मछली रानी तुमने मेरी बहुत मदद की। इसके लिए धन्यवाद ! बड़ी देर हो गई है ,मुझे चलना चाहिए।
चिड़ा आकाश की ओर उड़ चला और मछली ने भी पानी में डुबकी लगा दी।
चिड़ा के पेड़ पर उतरते ही चिड़िया बोली - मेरे ख्याल से हो गई बहुत सैर !अब चलें ?
-नदी की सैर तो हो गई पर हमारी बातें तो खतम नहीं हुईं। असल में मेरी चिड़िया बहुत अच्छी है। उसी के कारण आज इतना आनंद आया।
-ओह इतनी चापलूसी !तो सुनो ,मेरा चिड़ा भी बहुत अच्छा है ,पल -पल मेरा ध्यान रखता है।
-प्यार की बेला में नोंक -झोंक बिलकुल नहीं --। मुझे तो लगता है हम दोनों ही अच्छे हैं। अच्छे को अच्छा साथी।