नन्हा मुहम्मद दीन / रूडयार्ड किपलिंग

Gadya Kosh से
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वह एक पुरानी, खुरदुरी घिसी हुई पोलो गेंद थी, जो मेण्टल पीस पर पाइपों के साथ रखी हुई थी। खिदमतगार इमाम दीन उन पाइपों को साफ कर रहा था।

“क्या हुजूर को इस गेंद की जरूरत है?”

इमाम दीन ने आदरपूर्वक पूछा।

हुजूर को उसकी कोई जरूरत नहीं थी, उनके पास कूड़ा इकट्ठा करने को जगह नहीं थी, पर यह पोलो गेंद एक खिदमतगार के क्या काम आएगी?

“हुजूर की दुआ से, मेरा एक छोटा-सा बेटा है। उसने यह गेंद देखी है और वह इससे खेलना चाहता है। मैं इसे अपने लिए नहीं चाहता।”

कोई एक लम्हे के लिए भी नहीं सोच सकता था कि मोटा बुड्ढा इमाम दीन पोलो-गेंद से खेलना चाहेगा। वह उस पुरानी गेंद को लेकर बरामदे में चला गया। बरामदे से खुशी की किलकारियों, नन्हे पैरों की ठुमक और जमीन पर लुढ़कती गेंद की ठक-ठक आवाज सुनाई दी। निश्चय ही वह छोटा बेटा दरवाजे के बाहर अपने इस अनमोल खजाने को पाने की आकांक्षा से खड़ा इन्तजार कर रहा था। मगर उसने यह पोलो-गेंद देखी कैसे?

अगले दिन जब मैं नियमित समय से आधा घण्टा पहले ही दफ्तर से लौटा तो मुझे डाइनिंगरूम में एक नन्ही हस्ती की उपस्थिति का आभास हुआ। मैंने देखा, वह एक छोटा गोल-मटोल बच्चा था जिसने इतनी छोटी कमीज पहन रखी थी कि वह उसके आधे पेट को ही ढक पाती थी। वह मुँह में अँगूठा दिये कमरे में चारों ओर घूमता हुआ वहाँ की चीजों का जायजा ले रहा था। निश्चय ही यह वही ‘छोटा बेटा’ था।

मेरे कमरे में उसका कोई काम नहीं था। मगर वह अपनी खोजों में ऐसा डूबा हुआ था कि उसे मेरे दरवाजे में खड़े होने का कोई एहसास नहीं हुआ। मैं कमरे में घुसा, तो वह इतना घबरा गया कि लगभग बेहोश-सा हो गया। वह हाँफता हुआ जमीन पर ही बैठ गया। उसकी आँखें और मुँह फैल गये। मैं जानता था अब क्या होनेवाला है, अतः वहाँ से बाहर भागा। तभी पीछे से जोर से रोने की आवाज सुनाई दी। वह चीख नौकरों के क्वार्टर तक इतनी तेजी से पहुँची, जितनी तेजी से मेरा कोई हुक्म भी नहीं पहुँचा था। दस सेकेण्ड में ही इमाम दीन डाइनिंग रूप में पहुँच गया। और तब तेज चीखों की आवाज सुनाई दी। जब मैं वहाँ पहुँचा तो इमाम दीन उस नन्हे अपराधी को डाँट रहा था और वह नन्हा अपराधी अपनी कमीज के अधिकांश को रूमाल बनाये हुए था।

इमाम दीन बोला, “यह लड़का बदमाश है-बहुत बदमाश है। जरूर ही यह अपनी करतूतों की वजह से किसी दिन जेल जाएगा।” नन्हे अपराधी ने फिर-जोर-से रोना शुरू कर दिया और इमाम दीन मुझसे बार-बार माफी माँगने लगा।

मैंने कहा, “बच्चे से कह दो, साहब नाराज नहीं हैं। और उसे ले जाओ!” इमाम दीन ने मेरा माफी फरमान उस नन्हे अपराधी को सुना दिया, जिसने अब तक अपनी पूरी कमीज मोड़कर गर्दन के चारों ओर लपेट ली थी। उसकी तेज चीखें अब सुबकियों में बदल गयी थीं। दोनों दरवाजे की ओर बढ़े। इमाम दीन ने जाते-जाते कहा, “इसका नाम मुहम्मद दीन है। और यह बदमाश है!” जैसे नाम भी उसके अपराध का ही हिस्सा है। वर्तमान खतरा टल जाने पर मुहम्मद दीन ने अपने पिता की बाँहों में ही सर घुमाया और कहा, “यह सच है कि मेरा नाम मुहम्मद दीन है, ताब, पर मैं बदमाश नहीं हूँ, मैं आदमी हूँ।”

उस दिन से ही मेरी और मुहम्मद दीन की पहचान हो गयी। उसके बाद वह कभी मेरे डाइनिंग रूम में नहीं आया, मगर बगीचे की तटस्थ भूमि पर हम बराबर मिलते थे, हालाँकि हमारी बातचीत उसकी ओर से ‘तलाम ताब’ और मेरी ओर से ‘सलाम मुहम्मद दीन’ तक ही सीमित थी। रोज मेरे ऑफिस से लौटने पर छोटी-सी सफेद कमीज पहने एक गोल-मटोल छोटा-सा बदन लता से ढँकी हुई उस लकड़ी की जाली के पीछे से उभरता था। रोज ही मैं अपने घोड़े को वहाँ धीमा कर देता था, ताकि उसके सलाम के जवाब में दिया गया मेरा उत्तर अस्पष्ट न रहे या ऐसा न लगे कि वह उपेक्षा से दिया गया है।

मुहम्मद दीन का कोई दोस्त नहीं था। वह कम्पाउण्ड में भटकता रहता था-जैतून की झाड़ियों में अपनी ही रहस्यमय दुनिया में एक दिन दूर पर मुझे उसकी कारीगरी का कुछ नमूना नजर आया। उसने पोलो गेंद को जमीन में आधा गाड़ दिया था और उसके चारों ओर गेंदे के छह फूल गोलाकार लगा दिये थे। उस गोले के बाहर एक चौकोर सरहद खिंची हुई थी-लाल ईंटों और चीनी मिट्टी के टुकड़ों को एक के बाद एक लगाकर और इसके भी चारों ओर मिट्टी का घेरा बना हुआ था। रहट से पानी खींचने वाले मिस्त्री ने इस नन्हे कारीगर को बढ़ावा दिया था। उसने कहा था, यह तो बच्चों का खेल है। इससे मेरे बगीचे की सुन्दरता कुछ अधिक बिगड़ेगी नहीं।

भगवान जानता है कि उस बच्चे की कारीगरी को बिगाड़ने का मेरा कभी कोई इरादा नहीं था। मगर, उस शाम बगीचे में टहलते हुए अनजाने ही मैंने उसे नष्ट कर दिया। इससे पहले कि मैं कुछ जान पाता, मेरे पैरों ने गेंदे के उन फूलों, मिट्टी के ढेर और साबुन की डिब्बी के उन टुकड़ों को पूरी तरह कुचल दिया था-इस तरह कि फिर से उस घरौंदे के निर्माण की कोई सम्भावना ही नहीं रह गयी थी। अगली सुबह मैंने मुहम्मद दीन को अपनी उस नष्ट दुनिया के समीप धीमे-धीमे रोते पाया। किसी ने निर्दयतापूर्वक उसे बता दिया था कि साहब बगीचा बिगाड़ने के कारण उससे बहुत नाराज हैं। और उन्होंने गाली देते हुए उस सब कूड़े को छितरा दिया था। मुहम्मद दीन एक घण्टे तक उस घरौंदे को एकदम मिटा देने की चेष्टा करता रहा और उस शाम जब मैं ऑफिस से लौटा तो उसने आँसू भरे चेहरे से माफी माँगने के-से स्वर में कहा-तलाम, ताब। मेरी पूछताछ के बाद इमाम दीन ने मुहम्मद दीन को बतलाया कि साहब ने उसे कुछ भी करते रहने की छूट दे दी है। तब उस बच्चे ने अपने गेंदे के फूलों और पोलो-गेंद से बनाये घरौंदे को फिर से खोजना शुरू कर दिया।

कुछ माह तक वह गोल-मटोल, नन्हा बालक जैतून की झाड़ियों और मिट्टी के घरौंदों के उस छोटे-से संसार में विचरता रहा। वह हमेशा बेयरे द्वारा फेंके गये बासी फूलों, छोटे-छोटे, चिकने, गोल पत्थरों, काँच के टूटे टुकड़ों और कदाचित मेरे ही मुर्गे से निकले पंखों से सुन्दर घरौंदे बनाता और सजाता रहता था। वह हमेशा अकेला ही भटकता रहता था और अपने में ही मस्त रहता था।

एक दिन एक सुन्दर-सी सीप उसके अन्तिम घरौंदे के निकट गिराई गयी। मुझे उम्मीद थी कि मुहम्मद दीन इससे कोई असाधारण घरौंदा बनाएगा। और मुझे निराशा नहीं हुई। लगभग एक घण्टे तक वह गम्भीरता से उसे हाथ में लेकर सोचता रहा और फिर वह खुशी से गा उठा। उसने मिट्टी का घरौंदा बनाना शुरू किया। वह वास्तव में एक आश्चर्यजनक घरौंदा होता। वह लगभग दो गज लम्बा और एक गज चौड़ा था। मगर वह घरौंदा कभी पूरा नहीं हो पाया।

अगले दिन मेरे ऑफिस से लौटने पर न मुझे उस लताकुंज के पास मुहम्मद दीन खुद नजर आया और न ही उसका ‘तलाम, ताब’ सुनने को मिला। मैं उसका अभ्यस्त-सा हो गया था। और उसके न होने से बेचैन-सा हो गया। अगले दिन इमाम दीन ने बताया कि बच्चे को थोड़ा बुखार है और उसे कुनैन चाहिए। उसके लिए दवा और अँग्रेज डॉक्टर का इन्तजाम किया गया।

“इन छोकरों में कोई दम नहीं होता,” इमाम दीन के क्वार्टर से निकलते हुए डॉक्टर ने कहा।

एक सप्ताह बाद, हालाँकि मैं उस स्थिति से बचना चाहता था - मुझे इमाम दीन अपने एक दोस्त के साथ मुसलमानों के कब्रगाह की ओर जाता नजर आया। वह अपनी बाँहों में सफेद कपड़े में लिपटे नन्हे मुहम्मद दीन को लिये हुए था।

फ्रांसीसी