नन्हे-मुन्ने बच्चे, तेरी मुट्ठी में क्या है? / जयप्रकाश चौकसे

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नन्हे-मुन्ने बच्चे, तेरी मुट्ठी में क्या है?
प्रकाशन तिथि : 08 नवम्बर 2021


प्राय: बाल भूमिकाओं में अभिनय करके सराहे जाने वाले कलाकार युवा होकर असफल रहे हैं। मसलन चार्ली चैपलिन की फिल्म ‘द किड’ में सराहे गए बाल कलाकार जैकी कूगन बाद में असफल हुए। महबूब खान की ‘मदर इंडिया’ के बाल कलाकार की ‘सन ऑफ इंडिया’ फिल्म पसंद नहीं की गई। राज कपूर की ‘बूट पालिश’ की बाल कलाकार बेबी नाज और रतन कुमार को प्रशंसा मिली परंतु युवा होकर बेबी नाज नायिका ना बन सकीं जबकि एक फिल्म में उन्हें राजेश खन्ना की बहन की भूमिका से संतुष्ट होना पड़ा था। शेखर कपूर की फिल्म ‘मासूम’ में बाल कलाकार जुगल हंसराज को भी आगे चलकर बड़ी भूमिकाएं नहीं मिलीं। यश चोपड़ा की ‘मोहब्बतें’ में जुगल थे परंतु फिल्म तो अमिताभ बच्चन और शाहरुख खान अभिनीत पात्रों के बीच टकराव की फिल्म थी और श्रेय इन्हीं को मिला। दूसरी ओर ‘मासूम’ में बाल कलाकार की भूमिका निभाने वालीं कलाकार उर्मिला मातोंडकर ने युवावस्था में रामगोपाल वर्मा की कुछ फिल्मों में अभिनय किया और उन्हें सराहा भी गया। आजकल वे राजनीति में सक्रिय हैं।

शशि कपूर ने राज कपूर की ‘आवारा’ में बाल कलाकार के रूप में प्रशंसा पाई। युवा होने पर उन्होंने लंबी पारी खेली। शशि कपूर ने अमिताभ के बड़े भाई की भूमिकाएं कई फिल्मों में की हैं, जबकि शशि उनसे उम्र में छोटे थे।

दरअसल, फिल्म निर्देशक कलाकारों के पात्र रचते हैं और उनके व्यवहार को तय करते हैं। कलाकार, कठपुतली की तरह होते हैं और उनके काम निर्देशक ही तय करता है। इसलिए साहित्य में जो स्थान लेखक का है, फिल्म में वह स्थान निर्देशक का होता है। बाल कलाकार युवा होने पर अपने बचपन में मिली लोकप्रियता को अनुशासित नहीं कर पाते। विगत में उनके अभिनय पर बजाई गई तालियां ताउम्र उनके कानों में गूंजती रहती हैं। गोयाकि बच्चों के साथ फिल्म बनाते समय निर्देशक को अपने व्यक्तित्व में दुबके हुए बच्चे को दुलार करके सतह पर लाना पड़ता है। बोनी कपूर की फिल्म ‘मिस्टर इंडिया’ में शेखर कपूर ने बच्चों से विश्वसनीय भूमिकाएं अभिनीत करवाई थीं। शम्मी कपूर अभिनीत फिल्म ‘ब्रह्मचारी’ में नायक अनाथ बच्चों की परवरिश करता है और ‘मिस्टर इंडिया’ में भी नायक इसी तरह का काम करता है। दोनों फिल्मों में बस इतनी ही समानता रही है।

बाल मनोविज्ञान महत्वपूर्ण विषय है और इस क्षेत्र में शिक्षक का मिलना बहुत कठिन होता है। बच्चों के लिए पाठ्यक्रम रचना भी अत्यंत कठिन काम है। दरअसल उम्र के हर दौर में मनोवैज्ञानिक से परामर्श किया जाना चाहिए, जबकि प्रचलित धारणा यह है कि पागलपन के इलाज के लिए ही मनोचिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए।

प्राय: पागल को संतुलित करने के लिए इलेक्ट्रिक शॉक दिया जाता है ताकि मस्तिष्क में वैचारिक तत्व व्यवस्थित हो जाएं। ज्ञातव्य है कि आमिर खान की फिल्म ‘तारे जमीं पर’ के बाल कलाकार को बहुत सराहा गया था। केंद्र सरकार ने ‘बाल चित्र निगम’ नामक संस्था की स्थापना भी की थी। तपन सिन्हा जैसे महान डायरेक्टर ने भी इस संस्था के लिए फिल्म बनाई थी।

रंगमंच और नाट्य कला भारतीय सांस्कृतिक इतिहास में महत्वपूर्ण रही हैं। कालिदास और शूद्रक के नाटक मंचित किए गए। ग्रीक थिएटर का इतिहास भी महत्वपूर्ण रहा है। कालिदास और शूद्रक की रचनाएं कालातीत हैं। जब जीवन ही रंगमंच माना गया है, तब रंगमंच को पाठ्यक्रम में शामिल किया जा सकता है। अवाम को यह काम खुद ही करना होगा। बहरहाल, बचपन की पाठशाला बड़ी महत्वपूर्ण है। खो-खो, कबड्‌डी से लेकर फुटबॉल और क्रिकेट तक के खेलों में बचपन की मासूमियत होती है। दरअसल माता-पिता और बच्चों के बीच एक समझदारी विकसित होनी चाहिए।