नमकहराम / लिअनीद अन्द्रयेइफ़ / प्रगति टिपणीस
एक लड़का था, बहुत अच्छा । नाम उसका था पेत्या । उसकी माँ उससे भी अच्छी थी । वह उसे हमेशा कुछ न कुछ नई बात सिखाती रहती थी और नई से नई जानकारियाँ देती रहती थी । वो दोनों एक बड़े-से घर में रहते थे, जिसके अहाते में मुर्ग़े-मुर्ग़ियाँ घूमा करते थे । मुर्ग़ियाँ उनको अण्डे देती थीं और मुर्ग़े उनके खाने के काम आते थे । साथ ही वहाँ एक छोटा-सा बछड़ा भी रहता था, जिसे सभी लोग बहुत प्यार करते थे । उस बछड़े का नाम था — वासिन्का । उस बछड़े को इसलिए खिला-पिला कर बड़ा किया जा रहा था ताकि बाद में उसके गोश्त से पेत्या के लिए कबाब और कटलेट बनाए जा सकें ।
एक दिन माँ कुछ नई और दुनियावी बातें सिखाने के लिए पेत्या को अहाते में ले गई और बोली :
— देखो, यह बछड़ा कितना प्यारा है ! पेत्या, ज़रा इसे सहलाओ ।
पेत्या ने उसे प्यार से सहलाया । बछड़ा बहुत ख़ुश हुआ और उसने दूध पीने की इच्छा जताई । उसकी वह इच्छा पूरी भी कर दी गई ।
बेटे को सिखाना जारी रखते हुए माँ बोली :
— देखो, पेत्या। यह अभी दूध पी रहा है और बाद में हम तुम्हारे लिए इसके कबाब बनाएँगे, बशर्ते तुम अच्छे और आज्ञाकारी बच्चे बने रहोगे ।
पैर घसीटते हुए पेत्या आगे बढ़ा और बोला :
— अम्मा ! तुम मुझे हमेशा कोई न कोई नई बात सिखाती हो । मुझे बहुत अच्छा लगता है । अम्मा ! आज मुझे, ज़रा, यह बताओ कि बछड़े के किस हिस्से से तुम मेरे लिए कबाब बनाओगी ?
माँ यह देखकर बहुत ख़ुश हुई कि उसका बेटा कितना होशियार है । उसने बछड़े की ओर इशारा किया और बोली :
— पेत्या, ध्यान से देखो और हमेशा यह बात याद रखना । इसकी पसलियों के नीचे वाले इस हिस्से से हम तुम्हारे लिए चॉप बनाएँगे । तुम्हें चॉप पसन्द हैं, न ?
—अम्मा, मुझे वो सब बहुत पसन्द है, जो तुम मुझे बनाकर खिलाती हो ।
वह बछड़ा उनकी बातें सुनकर डर गया था और सोच रहा था :
— हे भगवान, ये लोग कैसी बातें कर रहे हैं, मुझे इनकी बातें सुनकर कितना डर लग रहा है !
माँ ने अपने बेटे का माथा चूमा और उसको आगे बताना जारी रखा :
— और बछड़े के इस हिस्से से हम तुम्हारे लिए शामी कबाब बनाएँगे । और इसकी जीभ से, — बछड़े, ज़रा अपनी जीभ तो दिखाना, हम वह पकवान बनाएँगे जिसे हम अदरक की चटनी से खाते हैं; और इसके भेजे और टांगों को उबालकर हम जेली जमा लेंगे और इसकी...
पेत्या माँ को टोकते हुए बोला :
— अम्मा, मुझे पता है कि इसकी पूँछ से हम चाबुक बनाएँगे ।
माँ हँस पड़ी और पेत्या से होशियारी की बात करते-करते वे दोनों घर लौट आए और गाय के दूध की चाय पीने लगे । वहीं वह बेचारा बछड़ा वासिन्का उनकी बातें सुनकर डर के मारे थरथरा रहा था और सोच रहा था :
— हे भगवान, मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि ये लोग मुझे खाना चाहते हैं। यह बात कितनी डरावनी है ! नहीं, इससे तो अच्छा होगा कि मैं कहीं जंगल में भाग जाऊँ और अपनी जान बचाऊँ ।
लेकिन तभी उसकी अन्तरात्मा उसे धिक्कार उठी और दृढ़ आवाज़ में उससे बोली :
— तुम कितने नमकहराम हो ! वे लोग तुम्हारे गोश्त से उस अच्छे लड़के पेत्या के लिए कबाब बनाना चाहते हैं और तुम यहाँ से भाग जाना चाहते हो। यह तो बहुत ओछी बात है, कमीने ! नमकहराम !
लेकिन वासिन्का अपनी अन्तरात्मा की बात न सुन सका। उसने खूँटे से रस्सी तोड़ी और जंगल की ओर भाग गया । उस मूर्ख को लग रहा था कि वह बच जाएगा । लेकिन जंगल में तो भेड़िये होते हैं, भेड़ियों ने उसे पकड़ा और चीर-फाड़कर खा गए। वह नमकहराम ख़ुद को बचाने चला था और भेड़ियों के बारे में भूल गया था !
इसीलिए तो कहते हैं कि कभी नमकहरामी मत करो, नहीं तो भेड़िये तुम्हें खा लेंगे । —
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : प्रगति टिपणीस
भाषा एवं पाठ सम्पादन : अनिल जनविजय
मूल रूसी भाषा में इस कहानी का नाम है — (Леонид Андреев — Негодяй)