नमक का शहर / बावरा बटोही / सुशोभित

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नमक का शहर
सुशोभित


त्रिनिदाद का एक प्रचलित लोकमिथक है कि ईश्वर के बेटों के पंख होते हैं। वे उड़ सकते हैं। दूसरे शब्दों में, जो उड़ने की क्षमता गंवा चुके हों, वे ईश्वर के बेटे नहीं हो सकते।

अर्ल लवलेस के उपन्यास 'साल्ट' का पुरोवाक् इसी मिथ को आलोकित करता है। हमें गिनी जॉन नामक एक मिथकीय चरित्र के बारे में बताया जाता है, जिसने दासता के बंधनों को तोड़ दिया था। कंखौरियों में मकई की दो रोटियाँ दबाए मांज़ानिला की चोटी पर चढ़कर वह अफ्रीका की ओर उड़ चला था।

लेकिन त्रिनिदाद में बसे अपने साथियों को उसने उड़ने की कला नहीं सिखाई थी। गिनी जॉन कहता था कि धरती का नमक चखने के कारण उसके साथी अब उड़ने में अक्षम हो गए थे। अब आकाश का फैलाव नहीं, वर्षावनों से लदे कैरेबियाई द्वीप ही उनका देश थे। वह उड़ने की कला के बारे में बात करके उन्‍हें अवमानित नहीं करना चाहता था, क्योंकि वे अब उड़ नहीं सकते थे।

सोचता हूं नमक का नाता कौन-सी नश्वरता से होगा? कौन-सी गुरुता से? देह पानी से बनती है और पानी खारा होता है : आंसुओं से लेकर समुद्रों तक। शायद इसीलिए, जहाँ-जहाँ देह है, वहाँ-वहाँ नमक है, जहाँ-जहाँ नमक है, वहाँ-वहाँ गुरुत्‍वाकर्षण। वहाँ-वहाँ परवाज़ ग़ैरमुमकिन हो जाती है।

लेकिन, नमक का यह मिथक मुझे इंजील में वर्णित ईदन के उद्यान की याद दिलाता है। और इसी के ठीक सामने मुझे याद आती है, इसको लगभग झुठलाती हुई, 'सर्मन ऑन द माउंट' के 'साल्ट एंड लाइट' पैरेबल की वह उद्घोषणा :

'तुम धरती के नमक हो, लेकिन यदि नमक अपना खारापन गंवा दे, तो उसका क्या होगा? तुम धरती की रोशनी हो, पहाड़ पर जो शहर बना है, वह छुप नहीं सकता!'

पहाड़ पर रोशनी का एक शहर, धूप जिसका दुकूल है।

पहाड़ पर नमक का एक शहर, जिसके पंख गल गए हैं।