नया दौर और मनोरंजन के बदलते हुए स्वरूप / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 04 मार्च 2021
जब सिनेमाघर में फिल्म देखना मनोरंजन का एकमात्र साधन था, तब फिल्म के 25 सप्ताह चलने पर रजत जयंती, 50 सप्ताह चलने पर स्वर्ण जयंती तथा 75 सप्ताह चलने पर डायमंड जुबली समारोह मनाया जाता था। इसी तरह वर्षगांठ भी मनाई जाती रही है। रिश्तों की भी जुबली मनाई जाती है। जब राज कपूर और कृष्णा कपूर के विवाह के 38 वर्ष होने पर पारिवारिक उत्सव मनाया जा रहा था, तब खाकसार ने कहा कि 12 वर्ष बाद गोल्डन जुबली मनाई जाएगी। कृष्णा राज कपूर का हंसने-हंसाने का माद्दा जबर्दस्त था।
उन्होंने कहा कि इन वर्षों में नरगिस के 7 वर्ष और वैजंतीमाला के 3 वर्ष की फीडिंग है। ज्ञातव्य है कि कोई फिल्म अपने बलबूते 20 सप्ताह चलती हो तो निर्माता टिकट खरीदकर मुफ्त बंटवाता है। इस प्रक्रिया को फीडिंग कहा जाता था।
कुछ लोग अपनी पहली मुलाकात की वर्षगांठ मनाते हैं, पहले प्रेम-पत्र को याद किया जाता है। दरअसल खुश रहने के लिए बहाने ढूंढना जीने का अंदाज़ है। जीवन यात्रा में बहुत बाधाएं हैं परंतु मनुष्य खुशी-खुशी सामना करता है। जीवन की भीड़ भरी सड़क पर खुशी के बटुए को चुराना पड़ता है। यह जेबकतरी गुनाह नहीं है। राजकुमार हिरानी की फिल्म ‘थ्री ईडियट्स’ में रट्टा लगाकर बिना समझे परीक्षा पास करने वाला छात्र अपने मखौल उड़ाने वाले तीनों सहपाठियों को चुनौती देता है कि ‘10 वर्ष बाद हम मिलेंगे और देखेंगे कि कौन कहां पहुंचा है।’ इस तरह अपमान की वर्षगांठ की बात भी होती है। फिल्म ‘लव आज कल’ के पहले हिस्से में ही एक पात्र अपने तलाक की वर्षगांठ पर दावत का आयोजन करता है। पहली बार दिल टूटने की वर्षगांठ मनती है। यह दिल अजीब है कि जितना टूटता है, उतना ही मजबूत होता जाता है। घटनाओं की दुखद यादों को भी संभाला जाता है। जब मुंबई पर पहला आतंकवादी हमला हुआ था, तब एक रेस्त्रां में चली गोली दीवार में जा धंसी थी। दुर्घटना के बाद रेस्त्रां मालिक ने उस स्थान पर एक फ्रेम लगा दी। पर्यटक उसे देखने आते थे। एक इमारत की एक दीवार टूटी थी, मकान मालिक ने उस हिस्से की मरम्मत नहीं करवाई। पर्यटक आते रहे। कुमार अंबुज की कविता की कुछ पंक्तियां हैं, ‘एक सभ्यता का ध्वंस था वहां, कुछ लिपियां थीं और चित्रकला की प्रारंभिक स्थितियां, चट्टानों के बीच गूंजती थी वहां पूर्वजों की स्मृति, लोगों ने उजाड़ को रौंदते हुए, उसे बदल डाला था, मौज-मस्ती में, हम सबके चले जाने के बाद शायद निखार पर आएगा, उजाड़ का सौंदर्य।’
देवआनंद की फिल्म ‘हम दोनों’ के लिए साहिर लुधियानवी ने लिखा था, ‘बर्बादियों का जश्न मनाता चला गया, हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया।’ वर्तमान में फिल्म मोबाइल पर देखी जा सकती है। आज यह बताना कठिन है कि किस फिल्म को कितने लोगों ने कितनी बार देखा। जावेद अख्तर की पहली पत्नी हनी ईरानी अख्तर ने अपने मित्र से कहा कि देर रात नींद न आने पर वे उबाऊ फिल्म का वीडियो लगाती हैं, तो तुरंत ही नींद आ जाती है। फिल्म नींद की गोलियों की तरह भी इस्तेमाल की जाती है। नेताओं के भाषण के टेप भी सुला सकते हैं। एक बस्ती में सबसे अधिक आबादी थी, क्योंकि आधी रात ट्रेन गुजरती थी।
सत्यजीत राय का बालक पात्र अप्पू ट्रेन को गुजरते देखने के लिए मीलों चलता था। युवा होने पर अप्पू को कम किराए का मकान रेलवे ट्रेक के निकट मिला। अब ट्रेन की आवाज़ों ने उसकी नींद चुरा ली है। किसान आंदोलन के भी 100 दिन हो चुके हैं। क्या उनकी रात का कोई सवेरा नहीं है? हताशा के दिनों आशा की उम्मीद नहीं खोना चाहिए। साहिर लुधियानवी का गीत है, ‘अरे ओ आसमां वाले बता इसमें बुरा क्या था, खुशी के चार झोंके गर इधर से भी गुजर जाएं।’ ‘वह सुबह कभी तो होगी हमीं से होगी।’