नया फैसला, पुरानी फिल्म और शाश्वत मुद्दा / जयप्रकाश चौकसे

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नया फैसला, पुरानी फिल्म और शाश्वत मुद्दा
प्रकाशन तिथि : 21 जून 2013


मद्रास उच्च न्यायालय ने फैसला दिया है कि वयस्क पुरुष और नारी के हमबिस्तर होते ही उन्हें शादीशुदा माना जा सकता है और विवाह की सारी रीतियों का होना आवश्यक नहीं है। दरअसल, अनुभवी वकीलों का कहना है कि इस टिप्पणी को उसके वृहत संदर्भ से हटाकर देखना या किसी तरह का साधारणीकरण करना उचित नहीं है। इस मामले में मेरी याद में मेहबूब खान की १९५४ में प्रदर्शित 'अमर' ताजा हो गई है। कथासार इस तरह है कि एक छोटे शहर में दिलीप कुमार उच्च शिक्षा लेकर लौटे हैं और वकालत करते हैं। शहर के एक अमीर की इकलौती बेटी मधुबाला गरीबों को न्याय दिलाने के पक्ष में सामाजिक कार्य करती है। शहर से जुड़ी बस्ती में जयंत एक गुंडा है और उसके आतंक से सभी परेशान हैं। मधुबाला की पहल से और वकील दिलीप कुमार की दलीलों से उसे कुछ महीने की सजा होती है। वक्त के साथ आदर्शवादी मधुबाला और सत्य के लिए युद्ध करने वाले दिलीप कुमार में गहरी मोहब्बत हो जाती है और दोनों के परिवार इस रिश्ते से प्रसन्न हैं। इस प्रेम कथा में कोई खलनायक नहीं है। गरीब बस्ती में एक भोली लड़की निम्मी अपनी सौतेली मां के जुल्म हंसकर झेलती है। दरअसल, फिल्म का प्रारंभ ही निम्मी से होता है, जो परिंदों को प्यार करती है और जानवरों को इंसानों की तरह मानती है। उसके हृदय में सब के लिए करुणा है। यहां तक कि उसके पिता को सौतेली मां लाने का पश्चाताप न हो तो उन्हें भी समझाती है कि उसे मारपीट से फर्क नहीं पड़ता।

बरसात की एक रात सौतेली मां जलती हुई लकड़ी से उसे मारना चाहती है। वह भागकर दिलीप कुमार के बंगले में शरण लेती है और दोनों हमबिस्तर भी हो जाते हैं। डरी हुई निम्मी उससे चिपट गई थी और सांत्वना देते-देते जाने कैसे सांत्वना शरीर के ताप में बदल गई, जबकि फिल्म के प्रारंभिक दृश्यों में वे जानवरों के बीच गंदी-सी निम्मी को कहते हैं 'कम्बख्त कभी नहा लिया कर।'

दिलीप और मधुबाला की सगाई की रस्म में निम्मी नाचती-गाती है। कुछ महीनों बाद निम्मी के गर्भवती होने की बात जाहिर होती है और पूरे गांव के दबाव के बाद भी वह पुरुष का नाम नहीं बताती। इधर, दिलीप पश्चाताप की आग में जल रहे हैं, उधर मधुबाला उनकी परेशानी की वजह समझ नहीं पाती। गुंडा जयंत जेल से छूटकर आता है और सौतेली मां की मुट्ठी गरम करके निम्मी से विवाह करना चाहता है। मधुबाला ऐनवक्त पर जोर-जबर्दस्ती कर विवाह रोकती है। आगे की नाटकीय घटनाओं का सारांश यह है कि मधुबाला निम्मी के साथ हमबिस्तर होने वाले अपने ही प्रेमी दिलीप कुमार के गुनाह का पता लगा लेती है और उसे निम्मी से विवाह के लिए मजबूर करती है। इस अत्यंत जबर्दस्त फिल्म में रफी साहब का गीत 'इंसाफ का मंदिर है ये' लोकप्रिय हुआ था।

गौरतलब बात यह है कि जिस फ्रेंच नाटक से प्रेरित होकर मेहबूब खान ने इसे बनाया, उसमें मधुबाला द्वारा दिलीप को मुजरिम के कटघरे में खड़ा किया जाता है और जज की सलाह है कि दिलीप निम्मी से शादी कर लेता है तो उसे सजा नहीं मिलेगी अन्यथा तीन वर्ष का कठोर कारावास भुगतना होगा। दिलीप कहते हैं कि निम्मी पढ़ी-लिखी नहीं है और दोनों के सोच-विचार एवं जीवनशैली में जमीन-आसमान का अंतर है। वह स्वीकार करता है कि कमजोरी के एक क्षण में उससे गलती हुई है, परंतु सारी उम्र उसके साथ गुजारने का अर्थ उम्रकैद है। उसने मधुबाला के विश्वास को ठेस पहुंचाई है और सजायाफ्ता होने के कारण वह वकालत भी नहीं कर पाएगा, परंतु निम्मी से विवाह नहीं कर सकता।

मेहबूब खान घोर भारतीय व्यक्ति थे, उन्होंने कथा का भारतीयकरण किया, परंतु फ्रेंच नाटक में उठाए मुद्दे को नजरअंदाज नहीं कर सकते थे। दिलीप ने कोई दुराचार नहीं किया है और निम्मी उसे मन ही मन चाहती रही है अत: उसकी भी इच्छा थी। हमारे यहां अभी भी दुराचार के प्रकरणों में बचाव के वकील किसी तरह मौन स्वीकृति की बात की आड़ में अपने मुवक्किल को बचा ले जाते हैं और इसी मौन स्वीकृति को लेकर हवस की शिकार नारी से अभद्र प्रश्न पूछे जाते हैं और इसी सरेआम अपमान से बचने के लिए कई अबलाएं मुकदमा ही नहीं लड़तीं।

कई प्रकरणों में कानून ने उस विवाह को ही निरस्त घोषित किया है, जिसमें शरीर का संबंध नहीं हो पाया। एक प्रसिद्ध लेखक के अदालत में नपुंसक घोषित होने पर विवाह खारिज माना गया है। अनेक आख्यानों में गंधर्व विवाह का जिक्र है, जिसमें मालाओं के डालने मात्र से विवाह होता है और फेरों इत्यादि को अनावश्यक करार दिया गया है। सात जन्मों के संबंध में पुनर्जन्म पर किए गए दावे को भी अदालत अस्वीकार करती ै। विवाह के विविध रीति-रिवाज जाति दर जाति, क्षेत्र दर क्षेत्र बदलते स्वरूप में सामने आते हैं, परंतु सभी जगह हमबिस्तर होने को अनिवार्य माना गया है।

जनजातियों में भी विविध प्रथाएं हैं। शराब के दो कुल्हड़ युवक और युवती समाज के सामने एक-दूसरे के सिर पर डालकर विवाह कर सकते हैं। एक जनजाति में विवाह के बाद साले द्वारा छोड़े गए बाण तक पति को अपनी पत्नी को गोद में उठाकर जाना होता है और गिर जाने पर विवाह निरस्त माना जाता है। यह एक तरह से शारीरिक बल की परीक्षा है। आर. बाल्की की अद्भुत फिल्म 'चीनी कम' में युवा तब्बू अपने ६० वर्षीय प्रेमी अमिताभ को एक वृक्ष तक दौड़कर जाने का कहती है और लौटने पर कहती है कि देख रही थी, प्रेमी में कितना दम है। सभी बातों का सारांश यह है कि विवाह में हमबिस्तर होना आवश्यक है, परंतु प्रेम में नहीं है। हजारों कोस की दूरी के बावजूद प्रेम कायम रहता है और वह शारीरिक निकटता का मोहताज नहीं है। सारा मामला दो व्यक्तियों के बीच की समझदारी पर निर्भर करता है और किसी फैसले तथा फतवे से बंधा नहीं है।