नरगिस फाखरी का कसूर क्या है ? / जयप्रकाश चौकसे

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नरगिस फाखरी का कसूर क्या है ?
प्रकाशन तिथि : 04 सितम्बर 2013


इम्तियाज अली की 'रॉकस्टार' गैर पारंपरिक कथा होने के बावजूद रणबीर कपूर और रहमान के कारण लाभ कमाने वाली फिल्म मानी गई। इसके गीत भी बहुत सराहे गए, जबकि कुछ गानों का कथा से कोई लेना-देना नहीं था, मसलन 'साड्डा हक ऐत्थे रख' एक क्रांतिकारी गीत लगता है और दो दशक पूर्व पंजाब में पढ़ाकू विद्यार्थियों ने यूनियनबाज के खिलाफ यह नारा लगाया था। वे परीक्षा देना चाहते थे और यूनियनबाज परीक्षा स्थगित करना चाहते थे। इसी तरह 'कतिया करूं, सारी सारी रात' नारी वेदना का गीत है, जिसे सूत की तरह धुनका जाता है, परंतु फिल्मांकन कुछ और था। बहरहाल, रणबीर कपूर के अभिनय ने गहरा प्रभाव उत्पन्न किया और अविश्वसनीय कथा भी यकीन दिलाने लगी।

इस फिल्म की नायिका नरगिस फाखरी की चर्चा फिल्म निर्माण के समय से ही प्रारंभ हो गई थी। किसी भी कपूर के साथ किसी भी नरगिस का नाम आने पर मीडिया राज कपूर-नरगिस की बात करने लगता है, जिन्होंने ९ वर्ष तक सत्रह फिल्मों में साथ काम किया और परदे पर उनके प्रेम दृश्य २४ फ्रेम प्रति सेकंड की सिनेमाई हदें तोड़ते-से लगते थे और फिल्म 'श्री ४२०' का 'प्यार हुआ इकरार हुआ' गीत भावना की तीव्रता के कारण अविस्मरणीय बन गया है। हिंदुस्तानी दर्शकों के सामूहिक अवचेतन में राज-नरगिस प्रेम-प्रकरण एक किवदंती की तरह स्थापित हो चुका है।

बहरहाल, 'रॉकस्टार' में रणबीर कपूर द्वारा प्रस्तुत भावना की तीव्रता नरगिस फाखरी के सिर पर से गुजर गई, उसने प्रयास किया, परंतु बात नहीं बनी। नरगिस फाखरी सुंदर हैं, परंतु उनके अवचेतन की बुनावट में भावना दूर तक शायद नहीं पहुंच पाती। अनेक लोगों के हृदय की बुनावट ही ऐसी होती है कि भावना का स्पर्श नहीं हो पाता और वे यह भी जानते हैं कि यह अवसर भावुक होने का है, परंतु ऐसा नहीं कर पाते। यह बात पत्थर दिल होने की नहीं है। कई लोगों के सहृदय होने के बावजूद आंसू सूख जाते हैं। कुछ लोग दर्द अलग ढंग से महसूस करते हैं और 'आंसू उनके दिल की जुबान' नहीं होते।

नरगिस फाखरी को 'रॉकस्टार' की कामयाबी के बाद काम नहीं मिला और हाल ही में 'मद्रास कैफे' की सफलता के बाद भी नरगिस फाखरी को लाभ नहीं मिल रहा है। सच तो यह है कि शूजित सरकार की इस फिल्म में छोटी-से-छोटी भूमिका करने वाला कलाकार प्रशंसित हुआ है, परंतु सबसे कम प्रशंसित फाखरी हैं, जबकि वे महत्वपूर्ण पात्र हैं और उन्होंने भरपूर प्रयास भी किया है। लंदन में बसी, युद्ध के मैदानों से रिपोर्ट देने वाली लड़की सख्त-जान और साहसी ही होती है। वह 'दुल्हनिया' या 'छोटी बहन' नहीं हो सकती। नरगिस फाखरी की स्वाभाविक भावहीनता इस भूमिका के लिए मददगार ही मान सकते हैं और भूतपूर्व प्रधानमंत्री का कत्ल नहीं रुक पाने पर वे दुखी भी दिखाई देती हैं।

नरगिस फाखरी पहली महिला नहीं हैं, जिनका कॅरियर सफल फिल्मों में काम करने के बाद भी नहीं बना। नादिरा ने दिलीप कुमार के साथ सफल 'आन' में काम किया, परंतु नायिका की भूमिकाएं नहीं मिलने पर उन्होंने 'श्री 420' और 'दिल अपना प्रीत पराई' में नकारात्मक भूमिका की। फरीदा जलाल ने भी सफल फिल्मों में काम किया, परंतु उन्हें नायिका के अवसर नहीं मिले। कुमकुम, सिम्मी, चांद उस्मानी, अमृता सिंह, नाज इत्यादि लोग हैं। सिम्मी, नरगिस फाखरी और नादिरा के मामले में यह कह सकते हैं कि उनके बौद्धिक होने की छवि के कारण अनेक फिल्मकार अपनी कमतरी के कारण उनसे खौफ खाते थे और जिससे प्यार नहीं कर पाएं, उसे फिल्म में क्यों लें - ऐसी सोच रही है।

असल बात यह है कि लोकप्रियता का रसायन अजीब होता है। हम कभी समझ ही नहीं पाते कि कोई भी प्रतिभाशाली व्यक्ति उतना सफल नहीं होता, जितना होना चाहिए। सामूहिक अवचेतन संभवत: अदृश्य तरंगों से संचालित होता है। जाने कब, कौन, कैसे अवाम को भाने लगता है। इतना ही मकान, दुकान इत्यादि में भी तरंगें होती हैं। कई स्थानों पर आपको अच्छा लगता है, तो कुछ काटने को दौड़ते-से लगने का अहसास पैदा करते हैं।