नवाजुद्दीन सिद्दीकी और अयाज की कथा / जयप्रकाश चौकसे

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नवाजुद्दीन सिद्दीकी और अयाज की कथा
प्रकाशन तिथि :22 जनवरी 2018


नवाजुद्‌दीन सिद्‌दीकी ने फिल्मकार नंदिता दास की फिल्म 'सआदत हसन मंटो' की शूटिंग पूरी कर ली है और आजकल बाल ठाकरे के जीवन से प्रेरित फिल्म के लिए स्वयं को तैयार कर रहे हैं। जब एक कलाकार किसी भूमिका के लिए स्वयं को तैयार करता है, तब उसका रोजमर्रा का जीवन उसका अपना नहीं होता। वह तन्मयता से किरदार में डूबा रहता है। नवाजुद्‌दीन सिद्‌दीकी के लिए मंटो अभिनीत करना इस मायने में आसान था कि मंटो से आज का दर्शक कभी मिला नहीं और न ही उसने उनकी तस्वीरें देखी हैं। केवल साहित्य अनुरागी मंटो से परिचित हैं। बाल ठाकरे की तस्वीरें अनेक लोगों ने देखी है। उन्हें व्यक्तिगत तौर पर जानने वालों की कमी नहीं है। उनका परिवार आज भी राजनीति मेें सक्रिय है। ज्ञातव्य है कि गांधी की भूमिका निभाने वाले बेन किंग्सले ने महीनों तैयारी की थी। कई बार लंबे समय तक उपवास रखा था। महीनों चरखा काता था। उनके मन में यह भाव भी रहा होगा कि उसे उस व्यक्ति की भूमिका अभिनीत करनी है, जिसने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिला देती थी गोयाकि उन्हें शत्रु से प्रेम करते हुए उसे परदे पर प्रस्तुत करना था।

ज्ञातव्य है कि बाल ठाकरे ने अपना कॅरिअर एक कार्टूनिस्ट की तरह शुरू किया था। फिल्म में नवाजुद्‌दीन को बाल ठाकरे का कार्टून बनने से बचना था। नवाजुद्‌दीन बाल ठाकरे के घर जाकर हर कमरे में कुछ समय चहलकदमी करना चाहते हैं। उनके रिश्तेदारों से मिलना चाहते हैं। उन्होंने बाल ठाकरे को दिखाने वाले अनेक वृत्त चित्र अपने लैपटॉपप पर ट्रान्सफर कर लिए हैं। उन्हें यह बात भी चुभती रहेगी कि मात्र दो वर्ष पूर्व उन्हें अपने गृहनगर बुधाना में शिवसैनिकों ने रामलीला प्रस्तुत करने की आज्ञा नहीं दी थी। वहां इतना हुड़दंग हुआ कि नवाजुद्‌दीन को मुंबई लौटना पड़ा। उन्हें इसी से संतोष करना पड़ा कि सलमान खान अभिनीत 'बजरंगी भाई जान' में चरित्र भूमिका निभाने का अवसर मिला।

कुछ माह पूर्व ही नवाजुद्‌दीन की आत्मकथा 'एन आर्डिनरी लाइफ' प्रकाशित हुई थी और उस पर इतना विवाद हुआ कि उन्हें प्रकाशक से निवेदन करके अपनी किताब को बाजार से हटाना पड़ा। उस लगभग तीन सौ पृष्ठों की किताब में महज पांच पृष्ठ उन नाजुक रिश्तों का बखान करते थे, जिन पर विवाद हुआ। ज्ञातव्य है कि 1933 में जेम्स जॉयस की 'यूलिसिस' को प्रतिबंधित किया गया था। उस केस के जज वूल्जे ने अपने फैसले में लिखा था कि किसी भी कृति का उसके समग्र प्रभाव के आधार पर अाकलन किया जाना चाहिए। कहीं एक-दो पृष्ठ या कुछ पंक्तियों को उनके संदर्भ से अलग करके अाकलन नहीं किया जाना चाहिए। नवाजुद्‌दीन को फिल्म में नृत्य करने के दृश्यों से बड़ा भय लगता है। उन्हें तो फिल्म गीत गाना भी नहीं सुहाता परंतु फिल्मों में नाचने-गाने से बचा नहीं जा सकत। आजकल तो किसी बारात में भी जाना हो तो वहां नाचना पड़ता है। यह अजीबोगरीब बात है कि बारात में प्राय: यह गीत बजाया जाता है, 'मेरे देश की धरती..यह धरती है वीर जवानों की..।' हमारी बारातों में शामिल लोग स्वयं को किसी युद्ध का विजेता मानते हैं और कन्या पक्ष को पराजित पक्ष माना जाता है। जिन्हें अपने घर दो सूखी रोटी बमुश्किल मिलती है वह घराती द्वारा प्रस्तुत शुद्ध घी में बने पकवानों में भी नुक्स निकालते हैं। जहा गौर कीजिए कि दूल्हे के पास कटार या तलवार अवश्य होती है। एक विद्वान ने लिखा है कि भारत का अहिंसक होना गांधीजी का आविष्कार था।

बहरहाल, नवाजुद्‌दीन ने मुंबई में बहुत संघर्ष किया है। फाकाकशी की है और महज कुछ बिस्कुटों पर गुजारा किया है। आज वे अपनी कार से उन इलाकों से गुजरते हैं, जहां फुटपाथ पर उन्होंने रात बिताई थी। कथा है कि अयाज नामक गरीब व्यक्ति ने अपनी बुद्धि एवं परिश्रम से बादशाह के दरबार में सम्मानजनक स्थान पाया था। वह प्राय: लोगों से छुपकर एक पुराने घर जाया करता था। उससे ईर्ष्या करने वाले दरबारियों ने बादशाह से शिकायत की कि अयाज चोरी का माल वहां छिपाता है। बादशाह प्राय: कच्चे कान के होते हैं। अत: मुआयने के लिए बादशाह और दरबारी वहां गए। वहां महज एक चटाई थी और पानी का मटका था। अयाज ने स्पष्टीकरण दिया कि वह अपने आपको संतुलित बनाए रखने के लिए अपनी गरीबी के दिनों के आशियाने में रोज आते हैं, ताकि उन्हें अपनी औकात याद रहे। क्या इसी तर्ज पर नवाजु‌द्‌दीन भी अपने संघर्ष के दिनों के ठिए पर जाते हैं।