नशा शराब में होता तो नाचती बोतल... / जयप्रकाश चौकसे

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नशा शराब में होता तो नाचती बोतल...
प्रकाशन तिथि : 08 मई 2020


लॉकडाउन के समय ‘उत्तम प्रदेश’ और कुछ अन्य स्थानों पर शराब की दुकानें खोली गईं। इस कदर लंबी कतारें लगीं कि एक लतीफा यूं बना कि एक भारतीय ने बताया कि शराब खरीदने वालों की कतार इतनी लंबी थी कि वह काठमांडू पहुंच गया। शराब की दुकानें खोली गईं, क्योंकि सरकार को अपने प्रचार के लिए धन की आवश्यकता है। सौ रुपए की शराब पर सत्तर रुपए कोरोना टैक्स लगाया गया। जब सरकार शराब बंदी करती है तब अवैध शराब की भट्ठियां भभकने लगती हैं। शाहरुख खान अभिनीत फिल्म ‘रईस‘ में अवैध शराब बेचने वाले पात्र को महिमामंडित किया गया है। विगत सदी के आठवें दशक में इंदौर में अवैध जहरीली शराब पीने से सैकड़ों लोग मर गए तो कुछ अंधे हो गए। शायर कासिफ इंदौरी की मृत्यु जहरीली शराब पीने के कारण हुई थी। उनका शेर कुछ इस तरह है- ‘सरासर गलत है मुझ पर इल्जामे बलानोशी, जिस कदर आंसू पिए हैं, उससे कम पी है शराब’। यह संभव है कि कमजोर पड़ती हुई स्मृति के कारण शब्द आगे-पीछे हो गए हों, परंतु आशय स्पष्ट है। यह सारा प्रकरण खाकसार की फिल्म ‘शायद’ का एक हिस्सा बना।

वर्तमान दौर के सितारे शराब नहीं पीते। जिम जाकर जिस्म की मांसपेशियों को मजबूत बनाना उनका नशा है। अमिया चक्रवर्ती की फिल्म ‘दाग’ में दिलीप कुमार ने लतियल शराबी की भूमिका अभिनीत की थी। देव आनंद ने ‘शराबी’ नामक फिल्म में अभिनय किया और राज कपूर ने ‘मैं नशे में हूं’ में अभिनय किया। अगले दौर के धर्मेंद्र शराब पीना पसंद करते रहे। उनके समकालीन मनोज कुमार ने सरेआम शराब नहीं पी, क्योंकि वे अपनी भारत कुमार छवि की रक्षा करना चाहते थे। राजेंद्र कुमार कभी-कभी थोड़ी सी पीते थे, परंतु ‘संगम’ के बनते समय उन्हें इसमें आनंद आने लगा था। अगली पीढ़ी के राजेश खन्ना, संजीव कुमार, ऋषि कपूर शौकीन रहे हैं। राकेश रोशन और प्रेम चोपड़ा ने हमेशा पीने को संतुलित रखा। वे बहके, परंतु लड़खड़ाए नहीं। जितेंद्र शौकीन रहे और क्षमता भी अच्छी खासी थी, परंतु अपनी पुत्री एकता के आग्रह पर उन्होंने तौबा कर ली।

नरगिस, नूतन और मधुबाला शराब से दूर रहीं, परंतु मीना कुमारी हमेशा ही पीती रहीं। मीना कुमारी ‘नाज’ के नाम से शायरी भी करती थीं। धर्मेंद्र भी शायरी करते हैं। संगत इस तरह भी उजागर होती है। धर्मेंद्र से अंतरंगता के दौर में वे खुलेआम पीने लगीं। यह सत्य नहीं है कि ‘साहब बीवी और गुलाम’ की छोटी बहू पात्र को अभिनीत करते समय उन्होंने पीना शुरू किया था। उनकी पार्श्व गायिका गीता दत्त इसका बहुत शौक रखती थीं। दोनों की ही मृत्यु ‘सिरोसिस ऑफ लिवर’ नामक बीमारी के कारण हुई। मीना कुमारी का शेर- ‘सब लोग ही प्यासे रह जाएं, पैमाने कुछ इस तरह छलक, आंख ने कसम दी आंसू को, गालों पर हर दम यूं न छलक’।

संगीतकार शंकर और गीतकार हसरत ने कभी नहीं पी, परंतु जयकिशन और शैलेंद्र शौकीन रहे। संगीतकार सी. रामचंद्र और भगवान दादा अतिरेक कर जाते थे। नीरज और निदा फाजली भी शौकीन रहे। हरिवंशराय बच्चन ने शराब पर खूब लिखा है, परंतु उन्हें तौबा किए अरसा गुजर गया था। प्रकाश मेहरा की फिल्म के एक गीत का आशय था कि अगर शराब में नशा होता तो नाचती बोतल। इसी आशय को जुदा अंदाज में मेहमूद अभिनीत फिल्म में यूं अभिव्यक्त किया है- ‘मुत्थू कोड़ी कवारी हड़ा, जो होता नशा तो नाचता दारू का घड़ा’। शहरी लोग बोतल में शराब रखते हैं। ग्रामीण लोग घड़े में शराब रखते हैं। बस्तर की जनजातियां सल्फी पीती हैं। एक वृक्ष के फल से सल्फी बनती है और वृक्ष ही परिवार का पालन-पोषण करता है। दरअसल यह भरम है कि महंगी शराब उतना नुकसान नहीं करती जितनी सस्ती शराब। स्कॉटलैंड की शराब लकड़ी के बैरल में रखते हैं और वह लकड़ी शराब सोंखती नहीं। छह वर्ष तक रखी शराब को रेड लेबल कहते हैं। बारह वर्ष तक संजोई हुई शराब को ब्लैक लेबल कहते हैं। निदा फाजली ने ‘शायद’ फिल्म के लिए गीत लिखा- ‘दिनभर धूप का पर्वत काटा, शाम को पीने निकले हम, जिन गलियों में मौत छिपी थी, उनमें जीने निकले हम’।