नसीर अौर ओम दोस्त-दुश्मन क्यों? / जयप्रकाश चौकसे

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नसीर अौर ओम दोस्त-दुश्मन क्यों?
प्रकाशन तिथि :05 अक्तूबर 2015


सलमान खान और शाहरुख खान के बीच शीत युद्ध अरसे से चला आ रहा है और एक ही क्षेत्र में काम करने वालों के बीच आपसी प्रतिद्वंद्विता और कड़वाहट हर काल खंड में रही है। नसीरुद्‌दीन शाह और ओम पुरी, सलमान तथा शाहरुख की तरह लोकप्रिय सितारे नहीं हैं परंतु विलक्षण कलाकार हैं और उनके बीच भी रिश्ते का शीशा तड़क गया है - ऐसा स्वयं ओम पुरी ने स्वीकार किया है। सलमान और शाहरुख से अलग किस्म की कड़वाहट है नसीर और ओम पुरी के बीच, क्योंकि ये चारों विभिन्न व्यक्ति हैं और उनकी सोच भी अलग-अलग ही है। मित्रता और शत्रुता उनमें शामिल लोगों की व्यक्तिगत सोच पर आधारित होती है। शाहरुख और सलमान की सोच और रिश्ते की सतह, ओम और नसीर की सोच तथा रिश्ते से जुदा है।

दरअसल, सलमान और शाहरुख का परिचय 1991 में हुआ जब सलमान की 'मैंने प्यार किया' को सफल हुए दो वर्ष हो चुके थे और शाहरुख 'फौजी' सीरियल करके फिल्मों के द्वार पर दस्तक दे रहे थे। उनके बीच कड़वाहट संजय लीला भंसाली की 'देवदास' के निर्माण के समय हुई। ज्ञातव्य है कि भंसाली की 'दिल दे चुके सनम' और 'देवदास' दोनों की ही नायिका ऐश्वर्या राय थीं। इस मित्रता और शत्रुता की कहानी से अलग है अोम और नसीर की कहानी, जिनकी मित्रता नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, दिल्ली में अध्ययन के समय हुई। नसीर खाते-पीते परिवार से आए थे और ओम पुरी अत्यंत गरीब घर के युवा थे। नसीर कुछ खूबसूरत और ओम खुरदरा थे तथा इनके अवचेतन में भी गहरा अंतर था। गरीबी की कोख से जन्मे पुत्र प्राय: खुरदरे होते हैं, क्योंकि कमबख्त गरीबी गर्भस्थ शिशु पर ही अपना घिनौना साया डाल देती है परंतु ओम ने अपने अवचेतन में कभी कड़वाहट को जगह नहीं दी। उनके मूल चरित्र में सीखने की चाह जबर्दस्त थी और अभिनय के लिए जुनून ही उन्हें करीब लाया तथा यह मित्रता प्रगाढ़ हो गई जब दोनों ने पुणे फिल्म संस्थान मंे दाखला लिया। शांताराम के प्रभात स्टूडियो के स्थान पर पुणे संस्थान का निर्माण नेहरू की पहल और प्रेरणा से हुआ था और वहां ज्ञानी शिक्षक होते थे, गजानन जागीरदार की तरह अध्यक्ष होते थे और छात्रों में सीखने का जुनून होता था। कोई आश्चर्य नहीं कि इस महान संस्थान से नसीर, ओम, शबाना, िस्मता, केतन मेहता, विधु विनोद चोपड़ा, गोविंद निहलानी जैसे प्रतिभाशाली लोग निकले। क्या केवल नेहरू की पहल के कारण आज इस महान संस्थान को नष्ट किया जा रहा है? कारण जो भी हो लंबी हड़ताल के बाद संस्थान का वही हाल होगा, जो मुंबई की कपड़ा मिलों के मालिक और मजदूर संगठनों के स्वयंभू नेताओं के आपसी षड्यंत्र के कारण हुआ कि अधिकांश मजदूर अपने-अपने प्रांत लौट गए और उन मिलों के स्थान पर मॉल बन गए। ये पूंजीवाद की पताकाएं मॉल ही पूंजीवाद को नष्ट कर देगी, ऐसा बेंजामिन ने लिखा था।

बहरहाल, नसीर और ओम ने मेरी फिल्म 'शायद' में अभिनय किया था। अपने छात्र जीवन में लोग नसीर को तेज भागने वाला 'खरगोश' और ओम को सुस्त 'कछुआ' समझते थे और इसी खरगोश-कछुआ दौड़ की बात से प्रेरित सई परांजपे ने 'कथा' नामक फिल्म बनाई थी। नसीर के मन में मसाला तर्कहीन फिल्मों के प्रति आक्रोश था, जो उनके इन फिल्मों में अभिनय में भी छलक जाता था परंतु ओम मसाला फिल्में भी प्यार से करते थे। अत: एक दौर में यह 'कछुआ' 'खरगोश' से आगे निकल गया परंतु एक अंतरंग रिश्ते में उनसे चुक हुई और उसकी जीवन-कथा पर आधारित किताब से उनकी बदनामी हुई। नसीर की आत्म-कथा क्लासिक किताब है, जिसमें बला की साफगोई अौर एेसी भाषा है कि आक्सफोर्ड शिक्षित ने लिखी हो। आज नसीर अपने जीवन की व्यवस्था से खुश हैं, जिसका श्रेय उनकी पत्नी रत्ना पाठक को है और अब वे मसाला फिल्में भी बिना हिकारत के करते हैं, जबकि ओम के व्यक्तिगत जीवन के उत्पन्न कारणों से अब वह 'कछुआ' नहीं रहे परंतु नसीर दुविधा मुक्त 'खरगोश' हैं।

मित्रता और शत्रुता की क्लासिक कथा इतिहास आधारित प्रिंस हेनरी और सखा बेकेट के बीच है। सम्राट होने के बाद हेनरी अपने मित्र थॉमस बेकेट को यह सोचकर चर्च व्यवस्था प्रमुख बनाता है कि दोनों मित्र मिलकर संपूर्ण सत्ता प्राप्त करेंगे परंतु 'ईश्वर की चाकरी करता हुआ थामस' राजनीतिक सत्ता की नाइंसाफी से टकरा जाता है। इस पर 'बेकेट' नामक अग्रेजी फिल्म बनी है, जिसकी नकल से ऋषिकेश मुखर्जी ने 'नमकहराम' बनाई परंतु टीएस एलियट के इसी घटना पर आधारित 'मर्डर इन कैथेड्रल' में इसे नया दार्शनिक आयाम दिया है।

नसीर और ओम हेनरी व थॉमस बेकेट नहीं हैं परंतु ये एक ही 'कला मांस' के दो लोथड़े हैं और उस धुरी को खोजना कठिन है, जिसने ये दो टुकड़े किए हैं। आज समाज में भी एक अदृश्य कसाई की छुरी बहुत कुछ काट रही है।