नहले पर दहला / रघुविन्द्र यादव
Gadya Kosh से
" शेर के आतंक से परेशान जंगल के जानवरों ने शेर से भेंट करके तय किया कि हर रोज़ एक जानवर शेर के भोजन के लिए खुद उसके पास जाएगा और शेर किसी को नहीं मारेगा।
कुछ दिन बाद एक खरगोश की बारी आई तो वह देर से गया। गुस्से से तमतमाए शेर ने कहा "एक तो तू छोटा सा ऊपर से देर से आया है।"
"क्या करता महाराज, रास्ते में दूसरा शेर मिल गया था, बड़ी मुश्किल से बचकर आया हूँ।"
"हमारे क्षेत्र में दूसरा शेर? चलो दिखाओ।"
"महाराज इस कुएँ में है।"
शेर ने झांककर देखा तो परछाई दिखी। दहाड़ा तो कुएँ से भी आवाज आई। शेर ने कहा "हाँ भई, शेर तो है, मगर ये तो बिलकुल मेरे जैसा दिखता है और दहाड़ता भी मेरी ही तरह है, ज़रूर मेरा ही भाई है जो शायद बचपन में कुएँ में गिर गया होगा। चलो जंगल में जाकर कहो आज से एक नहीं दो जानवर भेजेंगे, एक मेरे लिए और दूसरा मेरे भाई के लिए।"