नहीं भीगता अब... माँ का प्यार / ममता व्यास
मेरी एक मित्र मंदबुद्धि बच्चों का स्कूल चलाती हैं, पिछले दिनों उनके पास एक महिला बहुत ही जल्दी में आई तीन-चार साथी भी उनके साथ थे। उन महिला का एक बेटा था जो मंदबुद्धि था जिसे कुछ भी होश नहीं था, वो कहीं भी किसी भी समय अपने कपडे गंदे कर देता था, मात्र आठ साल के बेटे से वो महिला अति परेशान थी। वो मेरी मित्र से बोली इसे आप अपने पास ही रखो मुझसे नहीं संभलता है ये। मित्र बोली लेकिन ये आपकी जिम्मेदारी है आप इसे नहीं समझेगी तो कौन समझेगा? वो बड़ी बेशर्मी से बोली, अरे वाह ...ये मुसीबत घर पर रहेगी तो मैं बाहर कैसे निकल सकूँगी। मेरी मित्र अवाक रह गयी।
सिर्फ यही नहीं अपने आसपास मैंने ऐसी बहुत सी माँएँ देखी है जिन्हें अपने बच्चों से कोई मतलब नहीं, महंगे खिलौने, मोबाइल और बाइक देकर वो निश्चिन्त हैं । वो नहीं जानती उनके बच्चे कहाँ जा रहे हैं, वो अपनी दुनिया में खोयी हैं उन्होंने कभी अपने बच्चों को कोई कहानी नहीं सुनाई, कभी कोई संस्कार नहीं दिए, कभी बच्चों की मन की बात नहीं सुनी और ना कभी उनकी दोस्त बनी । अपने बच्चों को अपनी आजादी का सबसे बड़ा दुश्मन मानती है ये, उनमे कोई सम्वेदना नहीं और न ही वो अपने बच्चों में प्रेम के बीज रोपती हैं ना उन्हें रिश्तो की बुनावट सिखाती हैं । ये खुदगर्ज माँ सिर्फ अपने बारे में सोचती हैं । हर गली मोहल्ले में उगते "झूला -घर " और "प्ले स्कूल " इसके उदहारण हैं कि अब माँ, बच्चे की परवरिश में अपना समय नष्ट करना नहीं चाहती, वो उन्हें अपना दूध नहीं पिलाती और ना बच्चों के दुःख से उसका अब आँचल ही भीगता है । माँ जो एक पवित्र भावना है, संवेदना है, कोमल अहसास है | तपती दोपहरी में मीठे पानी का झरना है इक खुशबू है वो माँ जो कभी मिटती नहीं| देह मिट भी जाये तो अपने बच्चों की देह में रूह बन कर सिमट जाती है| उनके लब पर दुआ तो कभी मन में अहसास बन कर ढल जाती है |
आज मैं उस माँ की बात नहीं कर रही जो बेसन की रोटी पर खट्टी चटनी जैसी लगती थी | आज उस माँ की बात भी नहीं जिसका बेटा परदेश में रोता था तो देश में उसका प्यार भीग जाया करता था| मैं मेक्सिम गोर्की की माँ की बात भी नहीं कर रही और ना जीजा बाई की जिसने एक बालक को शिवाजी बना दिया |
आज बात है, आज के दौर की, आज की नारी की आज की माँ की आधुनिक भारतीय नारी की | वो अब खुद गीले में सोकर अपने बच्चे को सूखे में सुलाने की भूल नहीं करती| वो अब अपने बच्चे को खुद से दूर झूले में सुलाती है| नींद में खलल नहीं पड़े इसलिए दूध की बोतल चिपका दी जाती है| ये आधुनिक माताएं अपने शौक के लिए पैसों के लिए अपनी कोख भी किराए पर देने में नहीं चूकती| अपने स्वार्थों के लिए ये कोख में ही अपनी बेटी का गला घोट डालने में ज़रा संकोच नहीं करती| अपने अवसर, अपने करियर की खातिर ये बच्चों को "आया" के हवाले कर चल देती है| बच्चों से पीछा छुड़ाने के लिए उन्हें बहुत छोटी उमर में ही प्ले स्कूल में छोड़ देती है| गए वो दिन जब माँ-- दो तीन बर्ष की उमर तक के बच्चों को घर में ही पढ़ाया करती थी |
संस्कारों, जीवन मूल्यों के पाठ अब घरों में नहीं पढाये जाते| बच्चों को अब रातों को कोई कहानियाँ नहीं सुनाई जाती ना कोई लोरी | अपने काम अपने शौक और अपने फायदे को देखने वाली इन माँओं के पास अपने बच्चों के लिए कोई समय नहीं | ऐसा नहीं है की उन्हें अपने बच्चों की चिंता नहीं है | दिन में एक दो बार फोन करके वो "आया" से अपने बच्चों का हाल जरुर पूछ लेती हैं | बच्चे भी अब माँ से ज्यादा अपनी दूध की बोतल और आया को प्यार करते हैं | थोड़े बड़े होकर वीडियों गेम और फिर नेट और मोबाईल उनके साथी बन जाते है | जितनी दूर माँ हो रही है बच्चों से, उतने ही दूर बच्चे भी हो रहे हैं माँ से | यही वजह है की जितने झूलाघर रोज खुल रहे हैं उनसे कहीं ज्यादा ओल्ड एज होम बनाये जा रहे हैं |
आधुनिक जीवन शैली और पुरुषों की नक़ल करने के चक्कर में महिलाओं ने खुद को अपने स्त्रियोंचित गुणों से दूर कर लिया है | महिलाओं में पुरुषों की तरह शराब और सिगरेट पीने का चलन भी आम बात है | चिंता ये है की जो युवतियां अपनी राते "पब" में शराब और सिगरेट के धुएं में बिताती हैं | क्या कल ये युवतियां एक अच्छी पत्नी या इक अच्छी माँ बन सकेगी ? क्या फिर कोई मुनव्वर राना ये कह पायेगे कि “मैं जब तक घर नहीं जाता मेरी माँ सजदे में रहती है" ये कैसी महिलाए हैं? ये कैसी भविष्य की माँएँ हैं? जिनके दिल में किसी के लिए प्रेम नहीं, वात्सल्य नहीं ये सिर्फ खुद से प्रेम करती हैं| खुद के सुखों की खातिर अपना घर परिवार बच्चे सब कुछ इक झटके में तोड़ देती हैं, छोड़ देती है | {रोज बिखरते परिवार इसका उदाहरण है}
अक्सर मैंने देखा है, शादी पार्टी या कोई होटल या रेस्टोरेंट में ये महिलायें कभी भी अपने बच्चों को गोद में नहीं उठाती| इनके पति बच्चों को देखते हैं या आया को साथ रखती हैं| बच्चे रोये या बिलखते रहे इन्हें परवाह नहीं |इनकी साड़ी या मेकअप खराब नहीं होना चाहिए | अपने बच्चों को अपनी गोद में रखने में इन्हें अब शर्म आती है | आजकल पिताओं को मैंने बच्चों की ज्यादा परवाह करते देखा है | यदि वास्तव में माँ की कहानियों और लोरियों में ताकत होती , पकड़ होती तो युवा पीढ़ी इस कदर भटकती नहीं | कहीं न कहीं कोई कमी जरुर है जिसे बच्चे बहार जाकर पूरी कर रहे है | दोस्तों में, नशे में वो सुकून तलाश रहे है जो उन्हें घर में ही मिलना चाहिए था | माँओं को सोचना होगा की क्यों बेटे बेटियाँ उनसे दूर हो रहे हैं? क्या बेटे के दुःख से उनका आँचल अब भी भीगता है या उन्होंने अपने बच्चों की उगंली छोड़ दी है बेटे के परदेश में रोने पर भी उसका प्यार क्यों भीगता ? यदि माँ की पकड़ ढीली हो गयी तो क्या कोई बेटा परदेश में ये बात महसूस कर सकेगा:
“मैं रोया परदेश में, भीगा माँ का प्यार
दुःख ने दुःख से बात की, बिन चिठ्ठी बिन तार”