नहीं रहेंगे अगर जंगल / बलराम अग्रवाल

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नृत्य एवं संगीतपरक काव्य नाटिका

नहीं रहेंगे अगर जंगल / बलराम अग्रवाल
(वन-सम्पदा संरक्षण पर आधारित संगीतमय, अभिनेय काव्य-नाटिका)

इस काव्य-नाटिका का प्रमुख-पात्र ‘बड़बोला’ अन्य पात्रों की तुलना में ऊँचे कदवाला गोल-मटोल दिखनेवाला होगा। शेष पात्र जितने छोटे कद और हल्की काठी के हों, उतना ही अच्छा है। मंच पर जंगल व उसके पेड़-पौधों, फलों-फूलों एवं पक्षियों की रचना नाटिका में कल्पित जंगल के अनुरूप निर्देशक स्वयं तय करेंगे। पेड़ों, पक्षियों और फलों-फूलों को भी जीवित व सक्रिय पात्रों का रूप दिया जा सकता है। मंच के 80 प्रतिशत पिछले हिस्से को जंगल के लिए तथा शेष 20 प्रतिशत हिस्से को जंगल के अतिरिक्त नैरेशन आदि अन्य गतिविधियों के लिए मुक्त रखा जा सकता है।


पात्र-

बड़बोला

शेर

शेरनी

भेडि़या

भालू

चीता

बन्दर

हाथी

जिराफ

शावक (शेर, हिरन, भालू, हाथी के बच्चे)

पेड़

फूल

पक्षी (तोता, कौआ, चील आदि )

(इन सभी को अपनी सुविधानुसार बढ़ा-घटा सकते हैं)


मंच पर आगे के 20 प्रतिषत भाग पर ही प्रकाश है। मंच के शेष 80 प्रतिषत जंगल-सज्जित हिस्से को या तो परदों के पीछे ढककर रखा गया है या अंधकार में। ‘बड़बोला’ का प्रवेश मंच के अग्रिम भाग में होता है। उस पर स्पॉट-लाइट का प्रयोग भी कर सकते हैं।

‘बड़बोला’ का स्वर- मैं बड़बोला गोल-मटोला।

गोल-गोल मैं चलता-फिरता

एक जगह पर कभी न रुकता

मुझको जितना चाहो बाँधो

बन्द करो या जकड़ो थामो

कल्पनाओं के छोर पकड़कर

घूमूँ दुनिया लुढ़क-लुढ़ककर

कभी-कभी मैं भागूँ सरपट

कभी-कभी मैं चलूँ सरककर।

एक बार की बात बताऊँ-

मैं बौने-जंगल में पहुँचा...

इस अन्तिम पंक्ति के साथ ही इस 20 प्रतिषत मंचभाग पर प्रकाश धीमा या लाल रंग का होता चला जाता है तथा जंगल-सज्जित 80 प्रतिषत मंचभाग धीरे-धीरे प्रकाशमान होता जाता है। ‘बड़बोला’ का संवाद जारी रहता है।


पेड़ वहाँ पर दो-दो फुट के

मैं सारे पेड़ों से ऊँचा

छोटी टॉफी-जितना आम

और कटहलकृजितना बादाम!

नीबू-नीबू से तरबूज

और मटर-जितना अमरूद

शेर...

एक दहाड़ के साथ शेर मंच पर जंगल की ओर से प्रवेश करके आगे के हिस्से में आ जाता है और अपना नृत्य प्रस्तुत करके पुनः जंगल में गुम हो जाता है।


भेडि़या...

आवाज करते हुए भेडि़या प्रवेश करता है तथा शेर की ही भाँति नृत्य प्रस्तुत करके जंगल में चला जाता है।


भालू...

आवाज करते हुए भालू का प्रवेश तथा शेर व भेडि़ये की ही भाँति नृत्य प्रस्तुत करके जंगल में चले जाना।


चीता...

दहाड़ते हुए चीते का प्रवेश तथा शेर, भेडि़या व भालू की ही भाँति नृत्य प्रस्तुत करके जंगल में चले जाना।


शेर, भेडि़या, भालू, चीता-

जैसे कोई बड़ा पपीता।

छोटे जूते-जितने बन्दर

खों-खों की आवाज करते हुए बन्दरों का प्रवेश तथा पहले वाले अन्य जानवरों की ही भाँति नृत्य प्रस्तुत करके जंगल में जाकर बैठ जाना।


छोटे जूते-जितने बन्दर

कूद रहे थे यहाँ-वहाँ पर।

मुझे देख सब डरकर भागे

मैं पीछे वो आगे-आगे।।

अन्तिम दो पंक्तियों के साथ ही भयावह संगीत-ध्वनियाँ। ‘बड़बोला’ कहानी सुनाते हुए जंगल में प्रवेश करता है। जानवरों में भगदड़ मच जाती है। जानवरों के डरकर भागने की ध्वनियाँ—


जंगल-भर में भागम-भा...ऽ...ग

जैसे फै...ऽ...ल गई हो आ...ऽ...ग

संगीत और भगदड़ तेज होती जाती हैं। इस भगदड़ में शेर का एक बच्चा एक गड्ढे में गिर पड़ता है और बाहर निकलने के लिए छटपटाने लगता है। उस बच्चे का, शेरनी का और ‘बड़बोला’ का अभिनय तथा सहायक-ध्वनियाँ निम्न पंक्तियों के अनुरूप चलती रहती हैं।

एक शेरनी का बच्चा

गिरा जहाँ गहरा गड्ढा

जैसे-ही मैं वहाँ रुका

उसे उठाने हेतु झुका

निडर शेरनी ऐंठ गई

शेरनी के ऐंठने-गुर्राने का स्वर—


निडर शेरनी ऐंठ गई

गड्ढे के तट बैठ गई

पहले तो वह गुर्राई

शेरनी के ऐंठने-गुर्राने का पुनः स्वर—

फिर बकरी-सी मिमियाई-

गड्ढे के दूसरे छोर पर बैठी शेरनी का ‘बड़बोला’ के आगे नृत्य एवं प्रार्थना। अन्य जानवर भी उसका अनुसरण करते हुए नाचते और गाते हैं-

जय हो, जय हो हे स्वामि तुम्हारी

सुनो अरज हमारी

तुम दाता हो हम हैं भिखारी

सुनो अरज हमारी

इस बालक पे कर दो दया जी

सुनो अरज हमारी

गायन का यह स्वर मद्धम पड़ते-पड़ते समाप्त हो जाता है। नृत्य जारी रहता है। ‘बड़बोला’ पुनः कथा बतानी प्रारम्भ करता है।

बड़बोला’ का स्वर: निडर शेरनी ऐंठ गई

गड्ढे के तट बैठ गई

पहले तो वह गुर्राई

फिर बकरी-सी मिमियाई-


शेरनी का स्वर: हैं जंगल के राजा आप

सबके जीवनदाता आप

हम सबके बस आप गुरु हैं

इस जंगल के महाप्रभु हैं

इसका जीवन दान करो

जंगल का कल्यान करो


बड़बोला’ का स्वर: मैंने शावक उठा लिया

उसे हाथ पर बिठा लिया

फिर थोड़ा-सा दुलराया

अंगुलियों से सहलाया

शावक का भय भाग गया

उसका साहस जाग गया

बहुत कृतज्ञ था शायद वो

लगा चाटने उँगली को

उधर शेरनी खुश होकर

उछली, मेरे पैरों पर

आ बैठी, मैं जान गया

माँ का दिल पहचान गया।

पूछा-‘बेटे को लोगी?

बोलो, मुझको क्या दोगी?’

बोली...ऽ...


शेरनी का स्वर: बोलूँ-आप तो ईश्वर हैं

हम सब के सब नश्वर हैं

बड़बोला’ का स्वर: मैंने कहा-दहाड़ो तो

इसको जरा पुकारो तो

शेरनी का स्वर: बोलूँ-कोई लाभ नहीं

पहुँचेगी आवाज नहीं

आप व्योम-से ऊँचे हैं

हम सब कितने नीचे हैं।

बड़बोला’ का स्वर: उधर जानवरों ने सोचा-

सभी जानवरों का

सम्मिलित-स्वर: रानी को है कुछ खतरा

जीना पड़े अगर डरकर

तब-मर जाना ही बेहतर

आओ, इस पर टूट पेंड़

या फिर जल में डूब मरें

'बड़बोला’ का स्वर: ऐसा करके सभी विचार

पलट पड़े करने को वार

बैठ शेरनी पैरों पर

देख रही थी सब तेवर

एकदम नीचे कूद पड़ी

जानवरों पर टूट पड़ी

बोली...

शेरनी का स्वर: बुद्धू! जरा निहारो तो

मन में तनिक विचारो तो

देवदूत के हाथ मेरा

नन्हा शावक खेल रहा

गर यह शत्रु रहा होता

मेरा पुत्र डरा होता

प्यार न होता बच्चे से

क्यों निकालता गड्ढे से?

संकट के इस समय मगर

साथ दिया तुमने डटकर

मुझपर यह उपकार रहा

तुम सबका आभार रहा

मैं और यह मेरा शावक

तुम सबके जीवन-रक्षक

बने रहेंगे जीवनभर

खेलो, खाओ, रहो निडर।

बड़बोला’ का स्वर: फिर वह मेरी ओर मुड़ी

कदमों में आ हुई खड़ी

बोली...

शेरनी का स्वर: भगवन, आपकी मानुष जात

करती वन-जंगल पर घात

सारे जंगल काट दिए

वन्य-पशू बरबाद किए

किसी भी पक्षी का स्वर: कौआ-मैना-तोता-चील

सब पंछी बेघर बे-नीड़

सम्मिलित स्वर : कहाँ रहें हम दीन अनाथ

लेकर इन बच्चों को साथ

आज तो हमको हे मानव

दिखते हो जैसे दानव

या तो जंगल काटोगे

या फिर हमको मारोगे

शेरनी का स्वर : लेकिन आप हैं दयानिधान

मानव होकर भी भगवान

भगवन, हमको माफ करो

जंगल का कल्यान करो

सम्मिलित स्वर : ना काटो जंगल को आप

ना मारो पशुओं को आप

एक नहीं दो-चार हजार

जो चाहें लेकर उपहार

अपने महानगर में आप

जाकर रहें, हरें संताप।

बड़बोला’ का स्वर: मैंने उनसे भेंट-स्वरूप

पाईं चीजें अजब अनूप

पेड़ नारियल के दो-चार

आम, पपीता, सेब, अनार

और कटहल के पेड़ लिए

जेबों में रख लिए खड़े

शावक को मैं छोड़ वहीं

लौट चला अपनी नगरी।।

चलते ही एक मृग-छौना

बोला-

मृग-छोने का स्वर: दुनिया को समझा दो ना

नहीं रहेंगे गर जंगल

नहीं मिलेगी ऑक्सीजन

नहीं मिलेगा वर्षा-जल

सूख जाएगा धरती-जल

फूलों का स्वर: फूल नहीं खिल पाएँगे

पक्षियों का स्वर: पंछी सब मिट जाएँगे

तितलियों का स्वर: रंग-बिरंगी तितलीयाँ

पक्षियों का स्वर: ची-ची गाती ये चिडि़याँ

सब का सम्मिलित स्वर: लुप्त सभी हो जाएँगी

कागज पर रह जाएँगी

इस पंक्ति को गाते हुए वे पशुओं, पक्षियों, पेड़ों और फूलों के कागज पर बने बैनरों का प्रदर्शन करते हुए ‘बड़बोला’ के चारों ओर नाचते-घूमते हैं।


बड़बोला का स्वर: फिर बोला वह मृग-छोना

मृग-छोने का स्वर: दादा, नाम बता दो ना...

बड़बोला का स्वर: मैं बोला-हे मृग-बच्चे

चिकने और सुन्दर-सच्चे

मुझको कहते-बड़बोला

कुछ मोटू और कुछ गोला

सुन सबने नारा बोला—

सभी जानवरों का जय बड़बोला गोल मटोला!

सम्मिलित-स्वर : जय बड़बोला गोल मटोला!!

इन नारों के साथ ही प्रकाश मद्धिम होते-होते दृश्य का लोप हो जाता है।