नागरिक / सुकेश साहनी
‘‘क्या हुआ,बेटी?’’ बूढ़ी आँखों में हैरानी थी।
‘‘कैसी अजीब आवाजें निकाल रहे हैं,’’ बहू ने तिनमिनाकर कहा, ‘‘गुड़िया डरकर रोने लगी है, कितनी मुश्किल से सुलाया था उसको!’’
‘‘अच्छा!’’ उन्हें हैरानी हुई, ‘‘नींद में पता ही नहीं चला, ऐसा पहले तो कभी नहीं हुआ!’’
पैर में बँधे ट्रेक्शन की वजह से वह खुद को बहुत असहाय पा रहे थे। उन्हें गाँव की खुली हवा में साँस लेने की आदत थी। महानगरों के डिब्बेनुमा मकानों में उनका दम घुटता था। पिछले दिनों गाँव में हैडपम्प पर नहाते हुए उनका पैर फिसल गया था और कुल्हे की हड्डी टूट गई थी। खबर मिलने पर बेटा उन्हें इलाज के लिए शहर ले आया था। डाक्टरों की राय थी कि आपरेशन कर दिया जाए, ताकि वे जल्दी ही चलने फिरने लगे। दूसरे विकल्प के रूप में ट्रेक्शन था, जिसमें छह महीने तक एक ही पोजीशन में लेटे रहने के बावजूद इस उम्र में हड्डी जुड़ने की संभावना काफी कम थी, बेड सोल और पेट संबंधी विकारों का खतरा अलग से था। सभी बातों पर गौर करने के बाद बेटे ने आपरेशन कराने का फैसला किया, तो बहू ने रौद्र रूप धारण कर लिया था, ‘‘अपनी सारी बचत इनके इलाज पर लगा दोगे, तो गुडि़या की शादी पर किससे भीख माँगोगे? पड़े–पड़े जुड़ जाएगी इनकी हड्डी, फिर जल्दी ठीक होकर इन्होंने कौन- सा खेतों में हल चलाना है।’’
अंतत: उनके पैर में ट्रेक्शन बाँध दिया गया था।
सोचते–सोचते फिर उनकी आँख लग गई और वे जोर–जोर से खर्राटे लेने लगे।
‘‘हे भगवान!’’ बिस्तर पर करवटें बदलते हुए बहू भुनभुनाई।
‘‘उधर ध्यान मत दो, सोने की कोशिश करो।’’ पति ने सलाह दी।
‘‘दिन भर काम में खटते रहो,’’ वह बड़बड़ाई, ‘‘जब दो घड़ी आराम का समय होता है, तो ये शुरू हो जाते हैं। कुछ करो, नहीं तो मैं पागल हो जाऊँगी।’’
झल्लाकर वह उठा, दनदनाता हुआ वह पिता के पास पहुँचा और उन्हें झकझोर कर उठा दिया।
बेटे की इस अप्रत्याशित हरकत से वे भौंचक्के रह गए। ट्रेक्शन लगे पैर में कूल्हे के पास असहनीय पीड़ा हुई और उनके मुख से चीख निकल गई।
‘‘खर्राटे लेना बंद कीजिए,’’ पीड़ा से विकृत उनके चेहरे की परवाह किए बिना वह चिल्लाया, ‘‘आपकी वजह से घर में सबकी नींद हराम हो गई है।’’
बेटे से ऐसे व्यवहार की वे कल्पना भी नहीं कर सकते थे। थोड़ी देर तक उनकी समझ में कुछ नहीं आया, पर सच्चाई का आभास होते ही उनकी आँखें ही नहीं पूरा शरीर डब- डब करने लगा। आँखों की कोरों से कुछ आँसू निकले और दाढ़ी में गुम हो गए।
उस रात फिर उनके खर्राटे किसी को सुनाई नहीं दिए। सुबह उनका शरीर बिस्तर पर निश्चल पड़ा था। फटी–फटी चुनौती–सी देती आँखें छत पर टिकी हुई थीं।
पिता के दाह–संस्कार के बाद मृत्यु पंजीयन रजिस्टर में शहरी बेटे ने मृत्यु का कारण लिखाया–ओल्ड ऐज।
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