नागार्जुन / परिचय

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 नागार्जुन की रचनाएँ     

जीवन-वृत्त

जन्म 1911, निधन: 5 नवम्बर 1998 जन्म स्थान ग्राम तरौनी, जिला दरभंगा, बिहार, भारत उपनाम यात्री, नागार्जुन अपने समकालीन मैथिली कवियों से अलग हैं। अलग ढब के कवि।

उनकी प्रमुख रचना

उनके स्वयं कहे अनुसार उनकी 40 राजनीतिक कविताओं का चिरप्रतीक्षित संग्रह ‘विशाखा’ आज भी उपलब्ध नहीं है। संभावना भर की जा सकती है कि किसी छिटफुट रूप में प्रकाशित हो गयी हो, किंतु वह इस रूप में चिह्नित नहीं है। सो कुल मिलाकर तीसरा संग्रह अब भी प्रतीक्षित ही मानना चाहिए। हिंदी में उनकी बहुत-सी काव्य पुस्तकंे हैं। यह सर्वविदित है।

उनकी प्रमुख रचना-भाषाएं मैथिली और हिंदी ही रही हैं। मैथिली उनकी मातृभाषा है और हिंदी राष्ट्रभाषा के महत्व से उतनी नही जितनी उनके सहज स्वाभाविक और कहें तो प्रकृत रचना-भाषा के तौर पर उनके बड़े काव्यकर्म का माध्यम बनी। अबतक प्रकाश में आ सके उनके समस्त लेखन का अनुपात विस्मयकारी रूप से मैथिली में बहुत कम और हिंदी में बहुत अधिक है।

अपनी प्रभावान्विति में ‘अकाल और उसके बाद’ कविता में अभिव्यक्त नागार्जुन की करुणा साधाारण दुर्भिक्ष के दर्द से बहुत आगे तक की लगती है।

मैथिली-भाषा-आंदोलन

फटेहाली महज कोई बौद्धिक प्रदर्शन है। इस पथ को प्रशस्त करने का भी मैथिली-श्रेय यात्राी जी को ही है। उनके पूर्व तक, मैथिली लेखक-कवि के लिए भले मैथिली-भाषा-आंदोलन की ऐतिहासिक विवशता रही हो, लेकिन कवि-लेखक बहुधा इस बात और व्यवहार पर आत्ममुग्ध ढंग से सक्रिय थे कि ‘साइकिल की हैंडिल मे अपना चूड़ा-सत्तू बांधकर मिथिला के गांव-गांव जाकर प्रचार-प्रसार करने में अपना जीवन दान कर दिया। इसके बदले में किसी प्राप्ति की आशा नहीं रखी। मातृभाषा की सेवा के बदले कोई दाम क्या ?’

मैथिली और हिंदी का भाषिक विचार उनका हू-बहू वैसा नहीं पाया गया जैसा आम तौर से इन दोनों ही भाषाओं के इतिहास-दोष या राष्ट्रभाषा बनाम मातृभाषा की द्वन्द्वात्मकता में देखने-मानने का चलन है।

नागार्जुन रचनावली

सात बृहत् खंडों में प्रकाशित नागार्जुन रचनावली है जिसका एक खंडμयात्राी समग्र जो मैथिली समेत बांग्ला, संस्कृत, आदि भाषाओं में लिखित रचनाओं का है। मैथिली कविताओं की अबतक प्रकाशित यात्राी जी की दोनों पुस्तकें क्रमशः ‘चित्रा’ और ‘पत्राहीन नग्न गाछ’ (साहित्य अकादेमी पुरस्कृत) समेत उनकी समस्त छिटफुट मैथिली कविताओं के संग्रह हैं।

मैथिली के कवि / विविध सम्मान

यह बात ज़ोर-शोर से कही जा सकती है कि मैथिली के कवि के रूप में यात्राी जी का काव्य कालिदास और विद्यापति का ही आधुनिक मार्क्सवादी परिष्कार और विकास है। आज मिथिला-समाज में यात्राी कविता का पर्याय बन चुके हैं। निषेघ और स्वीकार दोनों ही स्तरों पर अपने जीवन काल में ही वह किंवदंती बन गये थे, विलक्षण और श्रेष्ठ अर्थों में भी।

विविध राष्ट्रीय मैथिलीशरण गुप्त सम्मान सहित अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कार एवं सम्मान‎ से सम्मानित