नाटक में नृत्य और अंतरिक्ष के प्रयोग / जयप्रकाश चौकसे

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नाटक में नृत्य और अंतरिक्ष के प्रयोग
प्रकाशन तिथि : 10 अक्तूबर 2019


बेंगलुरू में 28 सितंबर को एक अनोखा नाटक मंचित किया गया, जिसमें टेक्नोलॉजी का प्रयोग किया गया। मंच के पिछले हिस्से पर एक परदा था, जिस पर फिल्म दिखाई जा सकती है। 'अंतरिक्ष संचार' ने विज्ञान, कला एवं कुछ और विधाओं को मिलाकर एक प्रस्तुति दी। यहां तक कि थ्री डी टेक्नोलॉजी का प्रयोग भी किया गया। कला और संस्कृति क्षेत्र में कोई सरहद नहीं होती। जब एक सदी का अंतिम दिन आता है और रात बारह बजे हम दूसरी सदी में प्रवेश करते हैं, तो विगत सदी की कुछ बातें अगली सदी में कायम रहते हुए नई सदी की नई प्रवृत्तियों से गलबहियां करती नजर आती हैं। बदलती हुई सदियों के बीच कोई सीमेंट और पत्थर की दीवारें नहीं होतीं। बस दीवार पर लगे कैलेंडर में पृष्ठ पलट दिए जाते हैं। चौकोर आकार की घड़ी में भी कांटे गोल ही घूमते हैं। महान गणितज्ञ रामानुजन की मां सीता देवी भरतनाट्यम में प्रवीण थीं। उनकी नृत्य मुद्राओं को देखते समय रामानुजन के मन में अंतरिक्ष के रहस्य जानने की इच्छा जागी। नृत्य मुद्राएं शून्य में रेखा चित्र बनाती हैं। गणित की शाखाएं हैं अंक गणित, बीज गणित और रेखा गणित। मनुष्य कल्पना अंतरिक्ष के भी परे जा सकती है। विज्ञान की हर खोज पहले कल्पना ही लगती है। निरंतर प्रयोग द्वारा उसे सत्य सिद्ध किया जाता है। बाथ टब में एक वैज्ञानिक के मन में विचार आया और वह 'यूरेका यूरेका' चिल्लाते हुए निर्वस्त्र ही प्रयोगशाला में पहुंच गया। मैडम क्यूरी प्रयोग करते-करते, असफल होते-होते निराश हो गईं और प्रयोग बंद करने का निश्चय करके वे आरामकुर्सी पर बैठ गईं। उनकी थकी हुई पलकों पर निद्रा की रंगीन तितली बैठ गई। एक पहर बाद जागकर उन्होंने विचार किया कि एक और प्रयास करते हैं। सफलता ने इस तरह उनके माथे पर दस्तक दी और वे सफल हो गईं। जैसे आप मरक्यूरी (पारे) को हाथों में थाम नहीं सकते, वैसे ही कल्पना मुट्‌ठी में बंद नहीं हो सकती। शायद इसीलिए कंजूस व्यक्ति कल्पना नहीं कर पाते, क्योंकि वे सिक्कों से भरी मुट्‌ठी खोल नहीं सकते। बंद मुट्‌ठी कुंद बुद्धि का ही प्रतीक है।

यह अनोखी प्रस्तुति एक मंदिर प्रांगण में प्रस्तुत की गई। पूजा इस तरह भी की जा सकती है। मायथोलॉजी को चुनाव प्रचार का हिस्सा बना लिया गया है परंतु उसका प्रयोग विज्ञान अनुसंधान में भी किया जा सकता है। मायथोलॉजी का प्रयोग करके मिथ मेकर सत्ता प्राप्त कर सकता है और निर्मम यथार्थ को मिथ बनाकर तर्कहीनता के गुब्बारों से अंतरिक्ष ढंक लेने का हंसोड़ प्रयास भी करता है। बहरहाल, 1895 में ल्यूमिअर बंधुओं ने चलती-फिरती तस्वीरें लेने वाले कैमरे की ईजाद की। उनके प्रदर्शन में दर्शक के रूप में जॉर्ज मेलिए भी उपस्थित थे। उन्होंने 1902 में 'जर्नी टू मून' नामक फिल्म बनाई। इस तरह फिल्म का रिश्ता विज्ञान फंतासी से बना और 1967 से स्टीवन स्पिलबर्ग ने अंतरिक्ष फिल्मों का निर्माण प्रारंभ किया। उनकी फिल्म 'ई.टी.' इस विधा की मील का पत्थर सिद्ध हुई। राकेश रोशन ने भी अंतरिक्ष से आए प्राणी को लेकर फिल्म बनाई। उन्होंने उसे 'जादू' कहकर संबोधित किया। उनकी फिल्म में दिखाए गए कंप्यूटर में 'ओम' की ध्वनि जोड़कर उन्होंने उसे मायथोलॉजी से भी जोड़ दिया। यह कॉकटेल सफल भी रहा। महान कलाकार उदयशंकर ने 'कल्पना' नामक फिल्म बनाई थी, जिसकी कथा एक नृत्य कार्यक्रम के गिर्द घूमती है, जिसमें भारत की तमाम नृत्य शैलियों को प्रस्तुत किया गया था। उदयशंकर के अल्मोड़ा स्थित नृत्य स्कूल में फिल्मकार गुरुदत्त ने भी शिक्षा ग्रहण की थी। गुरुदत्त अपनी फिल्मों के गीत और नृत्य विलक्षण ढंग से प्रस्तुत करते थे। बहरहाल, बेंगलुरू के कार्यक्रम में जयालक्ष्मी ने नृत्य किया और उनके पुत्र अविनाश कुमार ने मंच सज्जा की। दक्षिण भारत में आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम राजनीति से पूरी तरह मुक्त होते हैं। दक्षिण भारत में सबसे अधिक मंदिर हैं और उनके परिसर में कार्यक्रम सतत प्रस्तुत किए जाते हैं। इतना ही नहीं पूरे भारत में सबसे अधिक एकल सिनेमाघर भी दक्षिण भारत में हैं। शेष भारत की प्रांतीय सरकारें सिनेमाघरों की संख्या बढ़ सके ऐसे प्रयास ही नहीं करतीं। एक छोटी-सी बात यह है कि बंदूक का लाइसेन्स पिता की मृत्यु के बाद बेटे के नाम सहज ही किया जाता है परंतु सिनेमाघर के मालिक की मृत्यु के बाद लाइसेन्स निरस्त हो जाता है और उत्तराधिकारी को नए सिरे से प्रयास करने होते हैं। टेलीविजन पर प्रस्तुत नृत्य प्रतियोगिता में भाग लेने वाले अजीबोगरीब प्रस्तुति देते हैं। नृत्य प्रस्तुत करने वाला एक्रोबेटिक्स करता है। कमरतोड़ बेतुकी मुद्राओं को सराहा जाता है। प्रतिभा पर पाबंदी है परंतु उसके आणविक विस्फोट को रोका नहीं जा सकता।