नामवर सिंह / परिचय
नामवर सिंह की रचनाएँ |
जीवन
डॉ. नामवर सिंह का परिचय
नामवर सिंह के वारे में अमृता प्रीतम ने ‘रसीदी टिकट’ में लिखा हैः-
‘‘मार्च 1972 ममें जब हिन्दी समालोचक नामवर सिंह को साहित्य अकादेमी का अवार्ड मिला उन्होंने पांच मिनट के एक भाषण में कहा कि आलोचना का कृत्य मैने इसलिये चुना कि घर में कुद सजाने से पहले इसकी मिट्टी धूल झाड लू। यह आलोचना की अच्छी व्याख्या है पर एकांकी है, और मैं कितनी ही देर सोचती रही इसका दूसरा पहलू जिसने पल पल देखा और भुगता है कोई उससे क्या व्याख्या पूछे अगर साहित्य एक धर है और इसकी मिट्टी धूल झाडना आलोचना तो क्या अपने अन्दर की मिट्टी दूसरे की दहलीजों में झोकने वाली रूचि या झाड पोछ की आड में वस्तुुओं की तोड फोड को भी आलेाचना कहेंगे।’’
डॉ. नामवर सिंह का जन्म 1 मई ( या 28 जुलाई) 1927 को वाराणसी जिले के जीयनपुर नामक गाँव में हुआ । काशी विश्वविद्यालय से उन्होने हिन्दी में एम.ए.और पी.एच डी . की । 82 वर्ष की उम्र पूर्ण कर चुके नामवरजी विगत 65 से भी अधिक वर्षो से साहित्य के क्षेत्र में हैं । पिछले 30-35 वर्षों से वे भारत के विभिन्न क्षेत्रों में जाकर व्याख्यान भी दे रहे हैं।
अध्यापन : अध्यापन कार्य का आरम्भ काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से (1953-1959) जोधपुर विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के प्रोफेसर और अध्यक्ष(1970-74 ) आगरा विश्वविद्यालय के क.मु.हिन्दी विद्यापीठ के प्रोफेसर निदेशक (1974) जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली में भारतीय भाषा केन्द्र के संस्थापक अध्यक्ष तथा हिन्दी प्रोफेसर (1965-92) और अब उसी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर इमेरिट्स । महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति ।
सम्पादन : “आलोचना” त्रैमासिक के प्रधान सम्पादक।
“जनयुग”साप्ताहिक (1965-67) और “आलोचना” का सम्पादन(1967-91)
2000 से पुन: आलोचना का सम्पादन ।
1992 से राजा राममोहन राय पुस्तकालय प्रतिष्ठान के अध्यक्ष ।
अब तक साहित्य अकादमी पुरस्कार 1971 ।
सम्मान: हिन्दी अकादमी दिल्ली के “शलाका सम्मान”(1991)
उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान के “ साहित्य भूषण सम्मान (1993) से सम्मानित ।
कृतियाँ : 1996 बकलम खुद ,
हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योग ,
पृथ्वीराज रासो की भाषा,
आधुनिक साहित्य की प्रवृत्तियाँ,
छायावाद, इतिहास और आलोचना ।
सम्पादित ग्रंथ :
कहानी:नई कहानी ,
कविता के नये प्रतिमान,
दूसरी परम्परा की खोज,
वाद विवाद सम्वाद, कहना न होगा ।
चिंतामणि भाग-3 ,
रामचन्द्र शुक्ल संचयन ,
हजारीप्रसाद द्विवेदी:संकलित निबन्ध,
आज की हिन्दी कहानी,
आधुनिक अध्यापन रूसी कवितायें ,
नवजागरण के अग्रदूत : बालकृष्ण भट्ट ।
आलेखः-अशोक कुमार शुक्ला