नाम शबाना नहीं, तापसी पन्नू है / जयप्रकाश चौकसे

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नाम शबाना नहीं, तापसी पन्नू है
प्रकाशन तिथि :03 अप्रैल 2017


तापसी पन्नू सितारा नहीं, विलक्षण कलाकार हैं। पुरुष केंद्रित समाज और सिनेमा में कुछ महिलाएं सेंध मार रही हैं और सेंध मारने के नियम को भी तोड़ रही है। सेंध मारने के प्रशिक्षण के समय सिखाया जाता था कि सेंध मारकर पहले पैर भीतर डालना चाहिए, क्योंकि सिर डालने पर घर का कोई जागा हुआ सदस्य बाल पकड़कर भीतर खींच सकता है और पकड़े जा सकते हैं। मनोज बसु के उपन्यास 'रात के मेहमान' में सेंध मारने की विधा पर यथेष्ठ प्रकाश डाला गया है परंतु उस किताब में यह नहीं लिखा है कि अगर व्यवस्था ही सेंध मारे तो क्या करना है? वह हमारे अच्छे दिनों की किताब है। तापसी पन्नू, कंगना रनौट, स्वरा भास्कर इत्यादि को दीपिका पादुकोण या प्रियंका चोपड़ा की तरह करोड़ों रुपए का मेहनताना नहीं मिलता परंतु उनकी प्रतिभा से सिनेमा का परदा खूब रोशन हो जाता है।

ढाई घंटे की इस फिल्म में जो बीस मिनट तापसी पन्नू परदे पर नहीं होती हैं, वे काटे नहीं कटते। उसके चुम्बकीय व्यक्तित्व का लाभ भव्य बजट की फिल्म बनाने वाले संभवत: इसलिए नहीं लेते कि वे अपने अभिनय से नायक को बौना साबित कर सकती हैं। पटकथा लेखक व फिल्मकार ने हमें 'वेडनस डे' में आश्चर्यचकित किया था और 'बुधवार' से शुरू होकर वे 'इतवार' तक पहुंच गए हैं। थ्रिलर विधा दूसरे विश्वयुद्ध में पेरिस में प्रारंभ हुई जब नाज़ी कब्जे में रहते हुए फ्रांस में देशप्रेम व मानवीय मूल्यों वाली फिल्में थ्रिलर की तरह बनाई जाती थीं। थ्रिलर विधा में हर किस्म के दर्शक की रुचि होती है। उनका सनसनीखेज स्वरूप दर्शक को बांधे रखता है। इस फिल्म की बुनावट और कसावट कुछ ऐसी है कि इसमें मध्यांतर का व्यवधान खल जाता है। कोई अनावश्यक दृश्य नहीं है और संवाद इतने प्रभावोत्पादक हैं कि तालियां बजाने से आप स्वयं को रोक नहीं पाते। मसलन एक प्रशिक्षक कहता है कि मरने के लिए तैयार हो तो शागिर्द व्यंग्य से कहती है, 'सर आप इतने मोटीवेशनल (प्रेरक) कैसे हैं! '

सभी देशों के अपने गुप्तचर विभाग होते हैं। देश के भीतर गुप्तचरी करने से अधिक जोखिम का काम शत्रु देश में या उसके खिलाफ किसी अन्य देश में काम करना है। सलमान खान अभिनीत 'टाइगर' में जो काम पुरुष करते हैं, वे काम इस फिल्म में एक नारी करती है। दूसरे विश्वयुद्ध के समय माताहारी नामक एक विख्यात महिला गुप्तचरी के शिखर पर पहुंची थी।

इस फिल्म की नायिका ने अपने बचपन में अपने शराबी पिता को मार दिया था, क्योंकि वह उसकी मां को बिना सबब रोज मारता था। इसका प्रभाव उसके पूरे जीवन पर पड़ता है और वह अपने एक प्रेमी की सहायता से उस प्रभाव से मुक्त होने का प्रयास करती है तो कुछ मदांध राजनेता के सुपुत्र उसके प्रेमी को मार देते हैं। ये त्रासद घटनाएं उसके दिल में इस्पात भर देती हैं और अब वह चलता-फिरता बम है। तापसी पन्नू ने उसके इन क्षणों को जीवंत कर दिया है। उनकी चाल से ही उनके चरित्र का यह इस्पात नज़र आता है। फिल्म में उनके लिए पोशाक भी बड़ी सावधानी से चुनी गई है। अब तापसी पन्नू मॉडेस्टी ब्लैज़ के पात्र को अभिनीत करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। उनकी एक झलक ही उसके फौलादी इरादों का परिचय देती है। फिल्मकार ने अनुपम खेर को तो अपने 'वेडनस डे' की जुगाली स्वरूप फिल्म में लिया है।

इस थ्रिलर में गुप्तचर विभाग के आला अफसर को अन्य देश में एक खतरों से भरा कारनामा करने का आदेश देना है और नियमानुसार उसे उसके लिए अपने मंत्री से आज्ञा लेनी होती है। वह मंत्री के सचिव को फोन करता है और अपनी आदत के अनुसार वह कहता है कि मंत्रीजी व्यस्त है और कोई अत्यंत महत्वपूर्ण बात है तो वह मंत्री जी से संपर्क करा सकता है। वह अफसर अपने मंत्री के निकम्मेपन को जानता है तो वह कहता है कि कोई महत्वपूर्ण बात नहीं है परंतु अगले ही क्षण अपने गुप्तचर को आदेश देता है कि दुश्मन देश के गुप्तचर के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है। उसने आवश्यक आदेश व अनुमति प्राप्त कर ली है। यह दृश्य हमारे मंत्रियों की जहालत व निकम्मेपन को उजागर करता है। कई बात ऐसा लगता है कि जाहिल मंत्रियों के बिना भी देश का काम चल सकता है। महत्वपूर्ण निर्णय लिए जा सकते हैं।

इस फिल्म के खलनायक का व्यक्तित्व प्रभावशाली है। उसका प्रस्तुतीकरण समान्य मनुष्य की तरह किया गया है और वह प्राण, अमजद खान तथा अमरीश परी से बिल्कुल जुदा सामान्य व्यक्ति लगता है। प्राय: खलनायक के परदे पर आते ही पार्श्व संगीत उसकी मौजूदगी को रेखांकित करता है परंतु इस फिल्मकार ने एेसा कुछ नहीं किया है। यह फिल्म बड़े सधे हुए लोगों ने बनाई है। अक्षय कुमार ने यह जानते हुए यह फिल्म स्वीकार की कि वे फिल्म के आधे से भी कम भाग में परदे पर नज़र आते हैं। यह पूरी तरह से तापसी पन्नू की फिल्म है परंतु जितना नज़र आते हैं, भले लगते हैं। अक्षय कुमार के पास एक एंटीना है और अच्छी फिल्म के संकेत उन्हें मिल जाते हैं।

वर्तमान में कंगना रनौट, स्वरा भास्कर, तापसी पन्नू और अनुष्का शर्मा को लेकर शांताराम की 'जीवन ज्योति' को बनाया जा सकता है, जिसमें व्यवस्था के सब दरवाजे बंद होने पर चार नारियां शस्त्र चलाना सीखकर दुष्ट पुरुषों को दंडित करती हैं।

एक सुपरसितारा जितनी प्रारंभिक भीड़ सिनेमाघर की ओर खींचता है, उससे कहीं अधिक ये प्रतिभाशाली महिलाएं खींच सकती हैं।