नायक की साइड किक का दमखम / जयप्रकाश चौकसे

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नायक की साइड किक का दमखम
प्रकाशन तिथि : 24 दिसम्बर 2018


मोहम्मद जीशान अयूब ने नायक के मित्र की भूमिकाएं अभिनीत की हैं और आनंद एल राय उन्हें अपनी सभी फिल्मों में अवसर देते हैं। इरफान और नवाजुद्दीन की तरह उन्हें बेहतर अवसरों की तलाश है और वे इसी परम्परा के अभिनेता हैं। हिंदुस्तानी सिनेमा में नायक का एक मित्र होता है, जो उसके लिए सफर को आसान बनाता है और प्राय: उसकी पिटाई भी होती है। इन कलाकारों की रोजी-रोटी इसी तरह की नियमित रूप से मिलने वाली भूमिकाओं से चलती है। कमल कपूर और इफ्तिखार साहब ने अनेक फिल्मों में पुलिस इंस्पेक्टर की भूमिका से अपने परिवार को पाला। इफ्तिखार साहब की कार जब सड़कों से गुजरती थी तब ट्रैफिक पुलिस वाले उन्हें असली इंस्पेक्टर की तरह सलाम करते थे। फिल्मों में एक ही तरह की भूमिकाएं करने को 'टाइपकास्ट’ कहा जाता है। उन्हें अन्य भूमिकाओं में आम दर्शक स्वीकार नहीं करता।

इसी तरह फिल्मकार अपने ब्रांड से पहचाने जाते हैं। हाल ही में रोहित शेट्टी ने बयान दिया है कि वे लीक से हटकर फिल्में बनाने से डरते हैं। गोयाकि वे भी 'टाइप’ से बंधे हैं। उनकी फिल्मों में कारें हवा में उछल जाती हैं और अग्नि पिंड की तरह जमीन पर गिरती हैं। पुरानी फिल्म के दृश्यों को नई फिल्मों में लेते हुए कभी-कभी स्टॉक शॉट से भी काम चलाया जाता है, जिसके द्वारा शूटिंग करने से बचा जा सकता है। ठीक इसी तरह पार्श्व संगीत में दोहराव होता है और इसके 'म्यूजिक बैंक’ होते हैं। राज कपूर की 'प्रेम रोग’ के पार्श्व संगीत का इस्तेमाल कई सीरियलों में किया जाता है। हमारे यहां कॉपीराइट एक्ट अनगिनत सुराखों वाली छलनी की तरह है। हमें मौलिकता से भय लगता है। राज कपूर और शंकर-जयकिशन की टीम अपने पार्श्व संगीत से अगली फिल्मों की धुनें बना लेते थे। 'घे घे, घे घे, घे रे साहिबा’, 'ओ बसंती पवन पागल’ और 'जाने कहां गए वो दिन’, ‘आवारा’ तथा ‘श्री 420’ के पार्श्व संगीत में सुन सकते हैं। शंकर-जयकिशन, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल और कल्याणजी-आनंदजी जैसी जोड़ियों में एक जोड़ीदार पार्श्व संगीत का विशेषज्ञ माना जाता था। दरअसल, इन जोड़ियों के पास इतनी अधिक फिल्में होती थीं कि वे काम बांट लेते थे। एक गीत बनाता था तो दूसरा पार्श्व संगीत रिकॉर्ड करता था। केवल अपने प्रिय फिल्मकारों के लिए वे मिलकर काम करते थे। शंकरजी शराब नहीं पीते थे, अत: जल्दी सोने चले जाते थे। उनके संगीत कक्ष में वे सुबह 8:00 बजे से 2:00 बजे तक काम करते थे और जयकिशन रंगीली तबीयत के व्यक्ति थे, अतः देर से उठते थे और संगीत कक्ष में दोपहर को 2:00 बजे आते थे। शंकरजी अपने किए गए काम का ब्योरा उन्हें देकर चले जाते थे। कल्याणजी और आनंदजी भाई दोनों ही शराब नहीं पीने वाले व्यक्ति थे। उनमें आनंदजी को पार्श्व संगीत देने में विशेष योग्यता प्राप्त थी। हाल ही में दिए गए साक्षात्कार में संगीतकार प्यारेलाल ने कहा कि राज कपूर को संगीत का इतना ज्ञान था कि प्यारेलाल ने उनसे कहा कि उन्हें स्वयं ही अपनी फिल्मों का संगीत देना चाहिए।

फिल्म संगीत में समूह ध्वनियों का प्रयोग किया जाता है, जिन्हें कोरस गायक कहते हैं। इनमें कुछ 'पाश्चात्य कोरस’ कहलाते हैं, कुछ 'देशी’। वर्तमान समय में तो कंप्यूटर जनित ध्वनियों के प्रयोग के कारण पूरा ध्वनि अंकन विभाग अलग ढंग से काम करता है। एआर रहमान ने हॉलीवुड की फिल्मों के पार्श्व संगीत में ठेठ हिंदुस्तानी वाद्य यंत्रों का इस्तेमाल किया है। एक अमेरिकन फिल्म में पुलिस द्वारा अपराधी का पीछा किए जाने के दृश्य के लिए पार्श्व संगीत में मात्र तबले का उपयोग किया है और गजब का प्रभाव उत्पन्न किया है। अमेरिकन फिल्म 'थर्ड मैन’ से प्रेरित संजय दत्त और कुमार गौरव अभिनीत फिल्म 'नाम’ बनी है। 'थर्ड मैन’ के फिल्मकार यूरोप में लोकेशन खोजने के लिए दौरा कर रहे थे और स्पेन के एक कम आबादी वाले शहर के एक रेस्तरां में उन्होंने वाद्य यंत्र बजाने वालों की एक धुन को टेप कर लिया। उसी के अधिकतम इस्तेमाल के लिए 'थर्ड मैन’ में पुलिस-अपराधी चेज दृश्य को खूब लंबा किया गया था ताकि उस धुन का पार्श्व संगीत में इस्तेमाल कर सकें। कुछ वर्ष पश्चात जेम्स बॉण्ड फिल्में बनना प्रारंभ हुईं तो उसी धुन को थोड़े परिवर्तन के साथ फिल्म की सिग्नेचर धुन बनाया गया। हर जेम्स बॉण्ड फिल्म के प्रारंभ में उसका इस्तेमाल किया गया है। फिल्मों में ध्वनि के आगमन के बाद फिल्म का स्वरूप ही बदल गया और अभिनय शैली भी अत्यंत प्रभावित हुई। मूक सिनेमा के कालखंड में अभिनेता अपनी भाव भंगिमा में अतिरेक करते थे, जो भाव प्रदर्शन के लिए आवश्यक था। अब इस क्षेत्र में किफायत को गुण माना जाता है।

यथार्थ जीवन में भी दो मित्रों के बीच एक 'जूनियर’ की तरह माना जाता है। वह 'सीनियर’ को अपना नायक मानता है और उसके साए की तरह चलता है। व्यवस्थाओं में भी किसी को नेता मानकर कोई व्यक्ति उसकी 'परछाई’ बन जाता है। व्यवस्था संचालन में यह 'हमसाया’ ही बहुत घपले करता है। अनुसरण करने का यह अर्थ नहीं होना चाहिए कि व्यक्ति अपनी स्वतंत्र विचार शैली को तज दे। वैचारिक मतभेद के बावजूद जो रिश्ता कायम रहे, उस दोस्ती कहना चाहिए।