नायक खलनायक भूमिकाओं का उलटफेर / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 19 दिसम्बर 2013
कल आदित्य चोपड़ा की आमिर खान, कटरीना कैफ अभिनीत धूम तीन प्रदर्शित होने जा रही है। प्राय: हमारी भव्य फिल्मों के प्रचार के लिए सितारे एक महीने तक विभिन्न शहरों में जाते हैं और टेलीविजन पर प्रसारित हर कार्यक्रम में शिरकत करते हैं। आदित्य चोपड़ा और आमिर ने इस फिल्म के लिए ऐसा कुछ नहीं किया और इस बात की चर्चा हो रही है गोयाकि नए ढंग से प्रचार हो रहा है। आदित्य चोपड़ा ने अभी तक अत्यंत संक्षिप्त हिस्से ही प्रचारित किए हैं और कोई गीत भी पूरा नहीं दिखाया गया है। उनका विचार है कि करोड़ों खर्च करके बनाया उच्च गुणवत्ता वाला माल मुफ्त में क्यों दिखाया जाए। धूम ऐसे भी एक ब्रांड है तथा ठंड और क्रिसमस तथा नववर्ष आगमन की छुट्टियां प्रारंभ होने जा रही हैं। प्राय: फिल्मों में सप्ताहांत के पश्चात सोमवार से गुरुवार तक टिकिट के दर कम कर दिए जाते हैं परन्तु इस फिल्म के नहीं किए जाएंगे। उन्हें अपने काम पर इतना भरोसा है कि उन्हें प्रचार की कवायद नहीं करना है और आज प्रथम दिन ही अग्रिम बुकिंग अत्यंत जोरदार हो रही है।
धूम की तरह एक्शन फिल्में विदेशों में अरसे से बनाई जा रही हैं परन्तु भारत मेें इनका सिलसिला जॉन अब्राहम और बिपाशा बसु और अभिषेक बच्चन अभिनीत धूम के साथ शुरू हुआ। धूम दो रितिक तथा ऐश्वर्या राय के साथ बनाई गई और अब आमिर खान, संभव है कि 'धूम चार' सलमान खान के साथ बनाएं। इस तरह की फिल्में इतनी महंगी बनती हैं कि केवल शिखर सितारा ही इन्हें आर्थिक रूप से सुरक्षित रख सकता है। इस फिल्म की तीन माह की शूटिंग शिकागो में की गई क्योंकि जिस तरह के उपकरण और सुविधाएं चाहिए थीं वे केवल शिकागो में ही उपलब्ध थीं। इस तरह की हैरतअंगेज कारनामों वाली फिल्मों का निर्माण आसान नहीं होता।
फिल्म का नायक और नायिका सर्कस के ट्रेपीज कलाकार हैं अत: आमिर खान और कटरीना कैफ को अपना जिस्म विशेष तरह ढालना पड़ा और कई बार जिस्म सही नहीं बन पाने के कारण शूटिंग स्थगित की गई। आमिर खान ने गजनी के लिए भी एक वर्ष तक अपने जिस्म में फौलाद भरने का सा परिश्रम किया था। कटरीना कैफ ने साधना की। दरअसल हर समर्पित कलाकार भूमिकाओं के अनुरूप अपने जिस्म को बार-बार बदलता है गोयाकि जिस्म की बांसुरी पर आवश्यकता अनुसार छिद्र घटाता, बढ़ाता है जैसे पन्नालाल घोष ने एक ऑपरेशन करा कर उंगलियों के बीच के अंतर को साधा था। इस तरह के समर्पित कलाकारों को अपने बुढ़ापे में इन सब कवायदों की कीमत चुकानी पड़ती है जैसे हजार डंड-बैठक लगाने वाले पहलवान का बुढ़ापा कठिनाई से भरा होता है क्योंकि अंतडिय़ों को खुराक की आदत हो जाती है जिसे पचाने की अब क्षमता नहीं रह जाती तो उनका जिस्म जंगल में पड़ी बांसुरी की तरह हो जाता है जिसमें बदमाश हवाओं के चलने से दर्द के सुर निकलते हैं।
बहरहाल गौरतलब है कि इस तरह की एक्शन फिल्मों में अपराध करने वाला पात्र ही नायक होता है और कानून के रखवाले की भूमिका चरित्र भूमिका हो जाती है। दर्शकों की सहानुभूति भी इसी पात्र के साथ होती है और सिनेमा का आजमाया हुआ फॉर्मूला कि हमेशा अच्छाई की जीत बुराई के ऊपर हो, पलट दिया जाता है। खलनायक के कारनामों पर तालियां बजाई जाती हैं। फिल्मों के फॉर्मूले में ही उलटफेर नहीं किया जाता, भारतीय राजनीति में भी यह किया जा रहा है। जल से जमानत पर रिहा नेता के गले में फूल मालाएं डाली जाती हैं, घर आने पर पर आरती उतारी जाती है। मतों के ध्रुवीकरण के लिए हजारों कत्ल किए जाते हैं और ये लोग सत्ता से नवाजे जाते हैं। आज समझ आता है कि इस औघड़ दुनिया के सच्चे विवरण के लिए कबीर ने उलटबासियों का प्रयोग क्यों किया। राजकपूर की श्री 420 का नायक औंधी दुनिया को सीधा देखने के लिए शीर्षासन करता है।