नायक नहीं खलनायक हूं मैं / जयप्रकाश चौकसे

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नायक नहीं खलनायक हूं मैं
प्रकाशन तिथि : 18 दिसम्बर 2020


हिंदुस्तानी फिल्मों में नायक से अधिक खलनायक की छवियों में परिवर्तन हुए हैं। हर कालखंड में अच्छाई और बुराई की अपनी सीमाएं होती थीं। सामाजिक मूल्यों को फिल्मी पात्रों के चरित्र में समोया जाता है। मसलन राज कपूर की ‘आवारा’ में खलनायक अपना व्यक्तिगत बदला लेने के लिए जज की पत्नी का अपहरण करता है। पर उसके गर्भवती होने का पता चलने पर उसे वापस घर पहुंचवा देता है। जज को शंका है कि अपराधी ने उसकी पत्नी के साथ कुछ बुरा अवश्य किया होगा। जज की बहन इस शंका को इतनी हवा देती है कि जज अपनी पत्नी को घर से निकाल देता है। गीत है ‘जुलम सहे भारी, जनकदुलारी, गगन महल का राजा देखो कैसा खेल दिखाए, फिरे है मारी-मारी, जनकदुलारी।’ नेहरू युगीन फिल्मों में खलनायक भी दुष्कर्म नहीं करते थे।

प्राण ने खलनायक का पात्र अभिनीत करते हुए लंबी पारी खेली। प्रेम चोपड़ा ने बतौर खलनायक नारी का अपमान किया। अमरीश पुरी ने अपने अभिनय में क्रूरता शामिल की। मोगैंबो अत्यंत लोकप्रिय हुआ। अमजद खान अभिनीत गब्बर पहला डाकू पात्र रहा जो धोती के बदले जींस पहनता है। हाथ में तंबाकू और चूना मलता हुआ खैनी बनाता है। पटकथा सुनकर धर्मेंद्र और अमिताभ बच्चन दोनों ही गब्बर अभिनीत करना चाहते थे। भीष्म जैसे महापुरुष की मौजूदगी में भी राज दरबार में द्रोपदी के चीर हरण का प्रयास हुआ। हमारे सभी खलनायक नायिका के चीर हरण का प्रयास करते दिखाए गए हैं।

तापसी पन्नू अभिनीत ‘नाम शबाना’ का खलनायक अपनी प्लास्टिक सर्जरी कराकर नई पहचान बनाता हुआ प्रस्तुत किया गया है। जेम्स बॉन्ड फिल्मों के खलनायक टेक्नोलॉजी में प्रवीण हैं और वे उनके लोगों को शारीरिक कष्ट देने के विभिन्न तरीके आजमाते हैं। हिटलर और उस जैसे अन्य कालखंड के तानाशाह मानसिक कष्ट पहुंचाते हैं।

अंग्रेजी फिल्म ‘लिपस्टिक’ से प्रेरित ‘इंसाफ का तराजू’ फिल्म में राज बब्बर अभिनीत खलनायक की तुलना में दुर्योधन बच्चा सा दिखता है। मधुर भंडारकर की ‘पेज-3’ और ‘फैशन’ के खलनायक कॉर्पोरेट जगत में उच्च पदों पर काम करने वाला अफसर हैं। किसान की फसल को खरीदने का एकाधिकार भी कॉर्पोरेट के हाथ जाए ऐसे कानून का विरोध हो रहा है कॉर्पोरेट किसान को ₹100 रुपए देगा और अवाम को वही अनाज हजार रुपए में खरीदना होगा। मिनिमम प्राइस को अधिक रखना मात्र दिखावा है। महंगाई बढ़ेगी अवाम को बहुत कष्ट झेलना होगा। भविष्य में आने वाली वैश्विक मंदी इस तरह धीमी चाल से हमारी ओर बढ़ रही है कि उसने अपने पैरों में कोई पायल नहीं बांधी है कि अवाम उसके घुंघरुओं को सुन सके। तालियां सुनने के अभ्यस्त मंदी की पदचाप कैसे सुन पाएंगे।

‘बंदिश बैंडिट्स’ का खलनायक अपनी समानांतर प्रतिभा को छोटा करने के लिए परिवार के सदस्यों पर बंदिश लगाता है। नसीरुद्दीन शाह अभिनीत यह खलनायक प्रतिभा को कुचलने का काम करता है। नसीरुद्दीन शाह, आमिर अभिनीत फिल्म ‘सरफरोश’ में महान गजल गायक है। यह भूतपूर्व जागीरदार अपने रजवाड़े के हाथ से निकल जाने के कारण पड़ोसी दुश्मनों से हथियारों की तस्करी करता है। राकेश रोशन की ‘कृष’ शृंखला में भी नसीर ने एक खलनायक की भूमिका अनोखे अंदाज में अभिनीत की थी।

वर्तमान में फिल्मों के पूंजी निवेशक कॉर्पोरेट हैं। अतः उनको खलनायक की भूमिका में फ़िल्मकार कैसे प्रस्तुत कर सकता है। मणिरत्नम ने अभिषेक बच्चन और ऐश्वर्या राय अभिनीत ‘गुरु’ में कॉर्पोरेट होंचू के पात्र के प्रति सहानुभूति जगाने का कार्य किया था। आम आदमी शेयर बाजार में पूंजी का निवेश करता हुआ स्वयं ही अपना खलनायक रच रहा है। आज टोरंटो में किसान हड़ताल के समर्थन में जुलूस निकाला जा रहा है। अनेक देश अपना समर्थन दे रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में हमारी साख गिर रही है। ₹साख रुपए के गिरे हुए मूल्य से भी कम होती जा रही है। सत्ता क्यों फिक्र करे, उसका वोट बैंक सुरक्षित है।