नायक नहीं खलनायक है तू / जयप्रकाश चौकसे

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नायक नहीं खलनायक है तू
प्रकाशन तिथि : 26 दिसम्बर 2019


कुछ फिल्मों के नायक संभवत: अधिक मेहनताना पाकर खलनायक की भूमिका अभिनीत करते हैं। अक्षय कुमार ने शंकर की रजनीकांत अभिनीत फिल्म में खलनायक की भूमिका अभिनीत की। सुभाष घई की "खलनायक" नामक फिल्म में संजय दत्त यह कर चुके हैं। होल कैन के उपन्यास "मैन ऑफ द मैटर" से प्रेरित महबूब खान की "अमर" में दिलीप कुमार अपराधबोध से ग्रसित पात्र की भूमिका कर चुके हैं। राज कपूर ने "बेवफा" नामक अशोक कुमार और नरगिस अभिनीत फिल्म में नकारात्मक भूमिका की थी। चाल में रहने वाली अनाथ नरगिस को मजदूरी करके अपने चाचा के लिए शराब की बोतल लानी पड़ती थी। जिस दिन मजदूरी कम मिलती, उस दिन उसका पड़ोसी राज कपूर उसे शराब खरीदने के लिए पैसा देता है।

इत्तेफाक से प्रसिद्ध पेंटर अशोक कुमार नरगिस को मॉडल बनाकर पेंटिंग करते हैं। वे पेंटिंग्स का प्रदर्शन करते हैं और पेंटिंग्स ऊंचे दामों में बिकती है। अशोक कुमार और नरगिस एक-दूसरे को पसंद करने लगते हैं। यहां तक कि उनके विवाह का निर्णय भी कर लिया जाता है। उठाईगिरा राज कपूर लंबा हाथ मारकर सूट पहने उनके जीवन में प्रवेश करता है। राज कपूर और नरगिस के बीच प्रेम हो जाता है। अशोक कुमार नरगिस को सावधान करते हैं कि राज कपूर के इरादे नेक नहीं हैं। प्रेम दीवानी इस आरोप पर विश्वास नहीं करती। राज कपूर पर चोरों के सरदार का हुक्म चलता है। सरदार चाहता है कि अशोक कुमार और नरगिस के घर से हीरे-जवाहरात लेकर राज कपूर भागे।

क्लाइमेक्स में राज कपूर गहनों का बक्सा लेकर भाग रहा है। उसके सरदार को भी वह बक्सा नहीं देता। गुंडे और पुलिस दोनों ही उसके पीछे भाग रहे हैं। नरगिस उसे गोली मार देती है, परंतु बक्सा खाली था। उसमें हीरे-जवाहरात नहीं थे। राज कपूर अपने सरदार को धोखा दे रहा था, क्योंकि नरगिस से उसे प्यार हो गया था। इसी तरह की कथा पर राज खोसला ने देव आनंद और सुचित्रा सेन अभिनीत फिल्म "बंबई का बाबू" बनाई थी। इस फिल्म में एक अमीर घराने के बच्चे को साधुओं के वेश में अपराधियों द्वारा अपहरण करने की बात है। वह अपराध की अंधेरी दुनिया में पाला पोसा जाता है। उसका पात्र देवआनंद निभाता है। बहरहाल चोरी के उद्देश्य से देव आनंद को उस परिवार में बेटा बनाकर भेज दिया जाता है। सुचित्रा सेन परिवार की कन्या है। देव अानंद जानता है कि सुचित्रा सेन उसकी बहन नहीं है और मन ही मन उसे प्यार करने लगता है। एक रात सुचित्रा सेन अपने इस भाई का पीछा करती है और अपराधियों की बात सुनती है। अपराध सरगना देव आनंद को आदेश देता है कि सुचित्रा सेन के विवाह के लिए सोने के गहने खरीदे गए हैं। इसी मौके का लाभ उठाकर देव आनंद चोरी करे, परंतु देव आनंद इनकार करता है कि उसे पुत्र मानने वाले उम्रदराज लोगों को वह धोखा नहीं दे सकता। अपराध सरगना अपने साथियों की मदद से गहने चुरा लेता है। घर में बारात आने को है और गहने चोरी जा चुके हैं। देव आनंद चोरों का पीछा करता है। मारधाड़ होती है। बारात के आने के पहले ही देव आनंद गहने वापस ले आता है। विदाई गीत "चल री सजनी अब क्या सोचे, कजरा ना बह जाए रोते रोते..." सचिन देव बर्मन की अमर रचना है।

बहरहाल विदाई के समय सुचित्रा सेन देव आनंद से कहती है कि वह उसकी सच्चाई जान गई थी, परंतु देखना चाहती थी कि वह कहां तक गिर सकता है। इतने दिनों तक देव आनंद परिवार में रहते हुए भी "बाहरी" बना रहा और शादी के बाद वह "बाहरी" हो गई। देव आनंद को अब परिवार का सच्चा सदस्य बनना है। इस फिल्म के क्लाइमैक्स में ओ हेनरी नुमा ट्विस्ट एंड भी है। देव आनंद का मित्र पुलिस इंस्पेक्टर है। उसे देव आनंद पर नजर रखने का काम दिया गया है। देव आनंद के बेहतर इंसान बनने के बाद वह पुलिस अफसर वहां से चला जाता है। वह जान गया है कि अब देव आनंद कभी अपराध जगत में प्रवेश नहीं करेगा। इस फिल्म में एक पेंच यह भी है कि देव आनंद यह जान चुका है कि इस परिवार का घर से भगाया गया युवा जबरन अपराध के दलदल में भेजा गया था और आपसी झगड़े में उसने ही उसकी हत्या की थी। इस तरह वह अपने पाप का प्रायश्चित्त करता है। दोस्तोवस्की के अमर उपन्यास "क्राइम एंड पनिशमेंट" से प्रेरित रमेश सहगल की फिल्म "फिर सुबह होगी" में गरीब नायक वकालत पढ़ रहा है। एक महाजन की हत्या उसे हो जाती है। यह गैर इरादतन इत्तफाक था, परंतु अपराध बोध से वह हमेशा ग्रसित रहता है। उसने कोई सुराग नहीं छोड़ा है परंतु उसकी अंतरात्मा उसे पल-प्रति पल दंडित करती है। फिल्म में खय्याम और साहिर लुधियानवी ने सार्थक गीत संगीत की रचना की थी। उपरोक्त सभी फिल्मों में नायक अपने आप से लड़ता है। वह अपने भीतर की बुराई को नष्ट करना चाहता है। इन नायकों के मन की सीनेट में "इम्पीचमेंट" का मुकदमा हमेशा चलता रहता है।