नारी: शक्ति हो तुम / अनुलता राज नायर
पौराणिक और प्रागैतिहासिक काल से आरम्भ करते हुए यदि आज तक स्त्रियों के विषय में विचार करें तो सरस्वती, लक्ष्मी और दुर्गा से लेकर, वैदिक काल की अपाला, घोषा, सावित्री और सूर्या जैसी ऋषिकायें, उपनिषद काल की गार्गी और मैत्रेयी जैसी विदुषियाँ , मध्यकाल और पूर्व-आधुनिक काल की अहिल्या बाई, रज़िया सुल्तान, लक्ष्मी बाई और चाँद बीबी जैसी शासक सम्पूर्ण नारी शक्ति को बेहद सुन्दर और सशक्त रूप से परिभाषित करती हैं|
फिर इतने गौरवान्वित इतिहास वाली नारी उन्नीसवीं सदी के आते आते इतनी अधिकारविहीन और निर्भर कैसे हो गयी ? आखिर नारीवाद के तहत नारियों के उत्थान की आवश्यकता हुई क्यूँ ?
“शक्ति रूपी” दुर्गा याने दुर्ग, अर्थात अभेद्य| जो सुरक्षित है जो शक्तिशाली है, ईश्वरीय है, श्रेष्ठ है और जो माँ है| दुर्गा शिव की ऊर्जा हैं उनकी अभिव्यंजना हैं| शिव स्थिर और अपरिवर्तनीय हैं , ब्रह्माण्ड की प्रक्रियाओं से अप्रभावित हैं, इसलिए दुर्गा ही कर्ता हैं जो मानवजाति की पाप और विपत्तियों से रक्षा करती हैं और उन्हें क्रोध, पाप, घृणा, अहं लोभ और अहंकार से बचाती है| दुर्गा केवल ईश्वरीय शक्ति नहीं है बल्कि उन्होंने सृष्टि की रक्षा के लिए देवों की सम्पूर्ण शक्ति को ग्रहण किया|
पार्वती के तन से मुक्त होकर दुर्गा शक्ति बनीं और शुम्भ निशुम्भ का नाश किया| दुर्गा ने “काली” का सृजन किया रक्तबीज के संहार के लिए| आज जब सैकड़ों रक्तबीज फैले हैं तो नारी के भीतर भी तो काली का वास है ! काली की शक्ति ने समूचा ब्रह्माण्ड दहला दिया था तब उनके क्रोध को शांत करने के लिए स्वयं शिव उनके पैरों तले आये| आधुनिक समाज ने जाने अनजाने स्त्रियों को सिखाया अपनी क्षमताओं अपनी शक्तियों को कम आंकना| स्त्रियाँ जूझती रही हैं अपनी स्त्रियोचित समस्याओं से, फिर वे चाहे कामकाजी हों, श्रमिक हों या घरेलू हों और भूलती गयीं कि उनके भीतर शक्ति का वास है, वे जननी हैं, सृष्टिकर्ता हैं| नारी दुर्गा है, प्रेम है वात्सल्य है| ये देवदार के एक वृक्ष की तरह सघन और सुदृढ़ है जिससे लिपट कर अनेक बेलें पल्लवित होती हैं.
हर क्षण अपने धैर्य की परीक्षा देती नारी अबला नहीं, पीड़ित नहीं, भोग्य भी नहीं| कविवर जयशंकर प्रसाद ने अपनी महाकृति “कामायनी” में लिखा है –
नारी ! तुम केवल श्रद्धा हो,
विश्वास –रजत-नाग पगतल में,
पियूष स्त्रोत सी बहा करो
जीवन के सुन्दर समतल में|
त्रिदेव अर्थात ब्रह्मा विष्णु महेश की सम्मिलित शक्तियों से दुर्गा बनीं और उन्होंने महिषासुर का वध किया. देवों ने उन्हें अस्त्र-शस्त्र और विभिन्न शक्तियां प्रदान कीं. शिव ने त्रिशूल, विष्णु ने अपना चक्र और वरुण देव ने शंख दिया.इंद्र ने वज्र और ऐरावत दिए.पर्वतराज ने उन्हें वाहन के रूप में शेर दिया जिसकी गर्जना से समुद्र में उफान आ गया था| शक्ति के इस स्वरुप के देख महिषासुर भयभीत हुआ और अपनी रक्षा हेतु अनेक रूप धरे और अंत में महिष अर्थात भैंसे के रूप में दुर्गा के हाथों मारा गया.
हर स्त्री के भीतर अलौकिक दृष्टि होती है सिंह, हाथी या भैसे में छिपे राक्षस को पहचान पाने की, बस उसे पहचानना है स्वयं अपने भीतर छिपी इस शक्ति को.
दुर्गा की तरह स्त्री में भी देवों सी शक्ति है, ऋषियों सा धैर्य और ज्ञान है.वो आलोकित करती है चारों दिशाओं को, मगर उसे ख़याल रखना होगा कि दीप तले अँधेरा न होने पाए. वो स्वाभिमानी हो अभिमानी नहीं. अंधविश्वासों और रूढ़ियों को तोड़ने का साहस करे.शिक्षित और सुसंस्कृत समाज की नींव का पत्थर बन नारी आज अपने भविष्य की इमारत को स्वयं सुदृढ़ कर सकती है.
राष्ट्रकवि मैथलीशरण गुप्त जी ने कहा भी है-
"एक नहीं, दो-दो मात्राएँ, नर से बढ़कर नारी"