नारी के शोषण पर खगोलशास्त्रीय कविताएं / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :01 मार्च 2017
फिल्म उद्योग एकमात्र उद्योग है, जो विगत 104 वर्षों से मात्र 15 प्रतिशत सफलता के बावजूद सक्रिय है। इतना अधिक आर्थिक घाटा सहकर भी यह उद्योग जीवित है, क्योंकि इसके ग्लैमर के कारण नए पूंजी निवेशक प्रवेश करते रहते हैं। किसी भी अन्य व्यापार में खूब सफल होने वाला व्यापारी ग्लैमर की खातिर फिल्म निर्माण में प्रवेश करना चाहता है। दरअसल, सितारों की लोकप्रियता इतनी अधिक है कि उनके साथ मिलने-जुलने और फोटो खिंचवाने की चाह आदमी को इस फिल्म धोबीघाट पर ले आती है, जहां अपने सारे वस्त्र गंवाकर व्यक्ति लंगोटी में अपने घर लौट जाता है। कुछ लोग इस भय से कि उनके गृहनगर में उनका मखौल उड़ाया जाएगा, फिल्म उद्योग में जूनियर भीड़ का हिस्सा बनते हुए दिहाड़ी मजदूर हो जाते हैं और कुछ स्टूडियो के कैंटीन में वेटर हो जाते हैं। मुंबई में भारत के सारे प्रांतों के लोग रोजी-रोटी और बेहतर अवसर की तलाश में आते हैं, वहां अपना छोटा बिहार, छोटा उत्तर प्रदेश इत्यादि बसा लेते हैं। मुंबई में बिहार के इतने अधिक लोग बस गए हैं कि चौपाटी पर छट पूजा के दिन पैर रखने की जगह नहीं मिलती। इस तरह सारे देश के तीज-त्योहार मुंबई में मनाए जाते हैं। इस सत्य का दूसरा पक्ष यह है कि अनेक शहरों में एक बम्बई बाजार या मुंबई मोहल्ला भी बस गया है गोयाकि मुंबई के जामेज़म में पूरा भारत अपने अतीत और भविष्य के साथ वर्तमान क्षण में मौजूद रहता है।
एक दौर में सफल सितारे जितेंद्र को जुनून चढ़ा कि उन्हें एक भव्य चिरस्मरणीय फिल्म का निर्माण करना चाहिए। उन्होंने 'लैला मजनू' जैसी सफल एवं बहुसितारा 'संघर्ष' जैसी फिल्म के निर्देशक एचएस रवैल को अनुबंधित किया। उस महत्वाकांक्षी बहुसितारा, बहुप्रचारित फिल्म को देखने अल्पतम दर्शक पहुंचे और उस दौर में फिल्म निर्माण के साठ लाख के घाटे को चुकाने के लिए जितेंद्र को पांच वर्ष तक अनेक फिल्मों में अभिनय करना पड़ा। उस अभागी फिल्म का नाम था 'दीदार-ए-यार।' ठीक इसी तरह के हादसे प्राय: होते रहते हैं। हाल ही में फिल्मकार विशाल भारद्वाज ने स्टूडियो 18 नामक संस्था के धन से कंगना रनौट, सैफ अली खान एवं शाहिद कपूर अभिनीत 'रंगून' बनाई, जिसे देखने अत्यंत कम दर्शक पहुंचे अौर देखने वालों ने अपने ऊब जाने का विवरण ऐसे किया कि देखने की इच्छा रखने वाले दर्शक दहल गए। इसमें अभिनय करने वाले तीनों सितारों का कुल जमा मेहनताना 21 करोड़ हुआ और फिल्म निर्माण में 40 करोड़ तथा प्रदर्शन व प्रचार में 20 करोड़ रुपए राशि लगी। अत: संपूर्ण लागत 81 करोड़ हुई अौर पूंजी का अधिकांश भाग डूब गया। यह इतना बड़ा घाटा है कि कॉर्पोरेट की जगह किसी एक व्यक्ति का पूंजी निवेश होता तो कर्ज चुकाने में उसकी अगली सात पीढ़ियां बंंधुआ मजदूर हो जाती।
विशाल भारद्वाज को तो अच्छा-खासा मेहनताना मिला होगा। याद नहीं पड़ता कि अाज तक किसी भी फिल्मकार ने असफलता के बाद पूंजी निवेशक को कुछ राशि प्रतीकस्वरूप ही सही, लौटाई हो। यहां तक कि कोई शर्मसार भी नहीं होता। बड़बोली कंगना का कहना है कि उसके अनेक दृश्य फाइनल संपादन में फिल्म से हटा दिए गए हैं। शाहिद कपूर और सैफ अली खान को असफलताओं की आदत है। उन्हें कोई न कोई बकरा मिल ही जाता है। गुलजार का कोई दोष नहीं, उन्होंने बेहतरीन गीत लिखे हैं।
पूंजी निवेशक कॉर्पोरेट के दु:ख और बढ़ गए हैं, क्योंकि फिल्म की कहानी पर चोरी का आरोप लगा है और वाडिया मूवीटोन ने भी अनावश्यक मुकदमा ठोंका है कि नाडिया नाम पर उनका कॉपीराइट है। व्यक्तियों के नाम पर कोई कॉपीराइट नहीं होता। प्राय: ज्योतिष से शुभ मुहूर्त निकलवाकर फिल्म प्रारंभ की जाती है। सवाल यह है कि निर्माता, निर्देशक या नायक अथवा नायिका किसकी कुंडली दिखाई जाती है। धरती पर घट रहे जीवन पर आकाशगंगा का प्रभाव कैसे पड़ सकता है और धरती पर फैले भ्रष्टाचार एवं अन्य गलत कामों का प्रभाव भी क्या अाकाशगंगा पर पड़ता होगा? प्रदूषण के कारण अब सितारे साफ दिखाई भी नहीं देते। जीवन के घमासान में अपने हमसफर का चेहरा भी हम देख नहीं पाते।
ग्वालियर के कवि पवन करण ने धरती पर महिलाओं के साथ अन्याय व असमानता का विवरण देने के लिए खगोलशास्त्र का प्रयोग किया है। उन्होंने स्वर्ग व आकाशगंगा में उपे्षित एवं शोषित नारियों पर कविताएं लिखी हैं। मसलन, बृहस्पति की पत्नी तारा से प्रेम संबंध बनाकर चंद्र उसका अपहरण कर लेते हैं और परिणाम स्वरूप बालक बुध का जन्म होता है। सर्वणा सूर्य की पत्नी है। रेणु की दासी रेणु के रूठकर जाने के बाद सूर्य के साथ पत्नी की तरह रहने लगती है। जमदग्नि की पत्नी रेणुका के चित्रगुप्त से प्रेम संबंध थे। पिता के कहने परशुराम ने उसका सिर काट दिया था। एकचक्र की प्रेयसी, जानश्रुति की पत्नी और विप्रचित की कन्या मालिनी, जिसने मय के वार्षिक विक्रयोत्सव में रैक्व ऋषि द्वारा स्वर्ण के बदले उसके खरीदे जाने को स्वीकार करने से इनकार कर दिया गोयाकि उस खगोलीय संसार में भी महिलाओं की नीलामी चलती रही है। थॉमस हार्डी के उपन्यास 'मेयर ऑफ कैस्टरब्रिज' में भी महिला नीलामी का वर्णन है और इस तरह के कार्य के लिए इस्लाम मानने वाले कुछ देशों को यूं ही बदनाम किया जाता है। जयंती : इंद्र की पुत्री, बलि से धरती हथियाने के लिए, जिसने उसे शुक्र को सौंपा। उर्वशी सूर्य को मिलने निकली एक अप्सरा, जो बीच राह में वरुण के आग्रह पर उसके साथ चली गई। इसी तरह की अनेक कविताएं पवन करण ने लिखी हैं। हमारा भ्रष्ट एवं कामुक होना, क्यों आश्चर्यजनक है, जबकि हमारे अपने कल्पित खगोल में भी स्त्रियों के साथ इससे बदतर व्यवहार हो रहा है। पवन करण ने अनेक पुराणों को पढ़ा और मायथोलॉजी से ही अपने काव्य के पात्र गढ़े।
क्या भारत महान कभी अपनी मायथोलॉजी से मुक्त होकर अपने दयनीय वर्तमान में तटस्थ एवं तर्कप्रेरित जीवन जी सकेगा। वर्तमान के हुक्मरान इसी मायथोलॉजी के सहारे सत्तासीन हुए हैं। अत: वे तो इस धंुध को बरकरार ही रखना चाहेंगे। इंडियन एक्सप्रेस में 15 फरवरी को आशुतोष भारद्वाज का लेख है, जो कहता है कि विमुद्रीकरण भी मिथिकल कन्सट्रक्शन है।