नारी ह्रदय की श्याम-श्वेत गाथा / जयप्रकाश चौकसे

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नारी ह्रदय की श्याम-श्वेत गाथा
प्रकाशन तिथि : 08 मार्च 2011



हंस के विषय में किंवदंती है कि मृत्यु के पूर्व वह अपना मधुरतम गाता है, जिस कारण किसी कलाकार की श्रेष्ठ और अंतिम रचना को स्वान सॉन्ग कहते हैं । एक और कथा हंस से जुड़ी है कि एक सुंदर और पवित्र आत्मा हंस के शरीर में शापित होने के कारण कैद है और सच्चे प्रेमी के आगमन पर मुक्त होगी। सच्चा प्रेम हृदय में लिए एक राजकुमार को काले रंग की बुराई की प्रतीक हंसनी भरमा देती है और श्वेत रंग की हंसनी की मृत्यु हो जाती है। गोयाकि प्रेम के अभाव में पवित्रता निष्क्रिय और मृत समान है। इस कथा पर अनेक फिल्में, नाटक और बैले पश्चिम में प्रस्तुत हुए हैं। इस वर्ष अनेक ऑस्कर जीतने वाली 'ब्लैक स्वान' में अर्थ की अनेक परते हैं और फिल्म के भीतर की नृत्य-नाटिका में एक ही नायिका को श्याम-श्वेत दोनों हंसनियों की भूमिका का निर्वाह करना है। यह वही शाश्वत अवधारणा है कि हर मनुष्य के हृदय में अच्छाई और बुराई का द्वंद्व जारी रहता है।

ज्ञातव्य है कि लियोनार्डो डा विंची ने अपनी अमर कृति 'द लास्ट सपर' के लिए जिस व्यक्ति को क्राइस्ट की छवि के लिए चुना था, कुछ वर्षों के अंतराल के बाद उसी व्यक्ति को जुडास की छवि के लिए चुना और पवित्रता का आभास देने वाले इसी व्यक्ति ने अंतराल के वर्षों में कत्ल किया था और सजायाफ्ता मुजरिम हो चुका था। जिंदगी श्याम-श्वेत ही है और रंग फंतासी हैं। बहरहाल इस फिल्म में नृत्य-नाटिका के निर्देशक और नायिका के बीच का रिश्ता और निर्देशक की सृजन प्रक्रिया के प्रसंग बहुत गहरी संवेदना के साथ प्रस्तुत हैं। वह बार-बार नायिका से कहता है कि उसके पास प्रतिभा, संयम और अनुशासन है परंतु स्वयं को पूरी तरह से भूमिका में झोंकने का माद्दा नहीं है। गोयाकि संयम आवश्यक है परंतु वह संपूर्ण अभिव्यक्ति के मार्ग में बाधा डालता है। यह इस फिल्म में अभिनव और बहुत गहरा विचार है। इसी फिल्म में कला में संपूर्णता (परफेक्शन) की इच्छा और मृत्यु का संबंध भी दिखाया गया है। फिल्म में रेखांकित किया गया है कि मनुष्य में स्वयं को हानि पहुंचाने की असीमित शक्ति होती है। अनेक महान कलाकारों ने खुदकुशी की है। शेक्सपियर लिखते हैं, 'टे्रजडी ऑफ एरर्स, गॉड वॉट, द एनिमी लाइज विदिन-मेरे साथ यह दुखांत क्यों ईश्वर, जवाब मिलता है कि शत्रु तुम्हारे भीतर रहता है।' जीवन के सहज प्रवाह में सारे बांध हमारे अपने द्वारा रचे गए हैं। क्या नदी पर बांध उसे संयमित और अनुशासित करने की चेष्टा में उसके सहज प्रभाव को रोकना नहीं होता? यह कितनी अजीब बात है कि संयम बनाम सहज प्रवाह का द्वंद्व सहवास में भी नजर आता है। यह फिल्म अनेक सतहों पर प्रवाहित है। नायिका अपनी तथाकथित प्रतिद्वंद्वी को कत्ल करने के भ्रम के बाद ही नई ऊर्जा से ब्लैक स्वान करने वाले अंश को अभिनीत करती है। यथार्थ की सतह पर कहीं कोई कत्ल नहीं हुआ, कोई लाश नहीं है। परंतु नायिका की आंखों में खून के डोरे हैं, जो 'ब्लैक स्वान' की भूमिका में प्राण फंूक देते हैं। उसने अपने भीतर के भूत को मारा है, डर को मारा है। अंतिम एक्ट के समय वह दर्शकों में अपनी मां को बैठा देखती है। मां का ख्याल है कि उसका उभरता कॅरियर उसकी कोख में नायिका के आने के कारण समाप्त हुआ था। जबकि उस समय उसकी उम्र 28 की थी और कॅरियर का संध्या काल था। मां ने अपने इसी काल्पनिक द्वंद्व की खातिर बेटी को प्यार करते हुए नफरत भी की है और उसे ईष्र्या भी है। इस फिल्म की नायिका को समझने में निदा फाजली की पंक्तियां मदद कर सकती हैं-

'जीवन शोर भरा सन्नाटा, जंजीरों की लंबाई तक सारा सैर-सपाटा।

हर मुट्ठी में उलझा रेशम, डोरे भीतर डोरा, बाहर सौ गांठों के ताले, अंदर कागज कोरा।

काजल, शीशा, परचम सारा, चारों ओर चट्टानें हाहिल (रुकावटें), बीच में काली रात,

रात के मुंह में सूरज, सूरज में कैदी सब हाट (बाजार), नंगे पैर अकीदे सारे, पग-पग लागे कांटा, जीवन शोर भरा सनाट्टा।